भारतीय फिल्म एवं टीवी संस्थान पुणे के छात्रों के समर्थन में पुरस्कार वापसी की घोषणा करनेवाले फिल्मकार आनंद पटवर्धन ने कहा कि अनुपम खेर का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर झुकाव कोई दबी-छुपी बात नहीं है। पटवर्धन ने शनिवार को जनसत्ता से कहा, ‘यह कोई छुपी बात नहीं है। खेर को भाजपा के शासनकाल में सेंसर बोर्ड के प्रमुख के पद पर बिठाया गया। उनके कार्यकाल में गुजरात हिंसा पर बनी ‘फाइनल सोल्यूशन’ और ‘चांद बुझ गया’ जैसी फिल्मों को प्रमाण पत्र पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। ‘चांद बुझ गया’ पर तो सिर्फ इसलिए प्रतिबंध लगा दिया गया था कि उसमें एक किरदार की शक्ल नरेंद्र मोदी से मिलती थी।’

पटवर्धन का कहना है कि 2004 में जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई तो अनुपम खेर की ‘ट्यून’ बदल गई। वह ‘फाइनल सोल्यूशन’ और ‘चांद बुझ गया’ जैसी फिल्मों को पास करवाने का श्रेय लेने लगे। जबकि सच्चाई यह थी कि हम लोगों ने सरकार पर दबाव डाला था। अनुपम खेर ने तब नई कमेटी बनाई जिसके बाद फिल्म पास हुई।

पटवर्धन ने अभिनेता शाहरुख खान की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने जोखिम उठाकर सच कहा है। खान की फिल्मों में बहुत पैसा लगता है लिहाजा निर्माता के लिए बड़ा जोखिम होता है। मगर उन्होंने अपनी बात कही। शनिवार को इंडिया मार्च में कितने फिल्मवाले जमा हुए, देख सकते हैं। फिल्मवाले हमेशा से ही राजनीति से दूरी बनाए रखते आए हैं। शाहरुख खान ने अपने जन्मदिन पर दिए साक्षात्कारों में कहा था कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। जिसके उनकी आलोचना के सुर तेज हो गए थे।

‘द इंडिया मार्च’ पर टिप्पणी करते हुए पटवर्धन ने कहा कि अपनी बात कहने का उनका लोकतांत्रिक अधिकार था। जैसे पुरस्कार वापस करने का हमारा अधिकार था। वे हमारी भर्त्सना कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि सरकार से हमें बातचीत करनी चाहिए थी। लेकिन उन्हें बता दें कि हमने एक महीने पहले प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र लिखकर फिल्म संस्थान के छात्रों की परेशानियों से अवगत करवा दिया था। मगर क्या हुआ। महीने भर बाद भी सरकार ने कोई पहलकदमी नहीं की।