जिस तरह चोर पुलिस का वर्षों से चोली-दामन का साथ रहा है, ठीक वैसे ही अपराध और कानून पर बनी फिल्मों का सिलसिला सालों से रहा है। 1960 में कानूनी दांव पेच पर बनी फिल्म का नाम कानून ही था। अदालत कक्ष पर बनी इस फिल्म को दर्शकों ने इतना पसंद किया कि इसके बाद आज तक ऐसी ही फिल्में लगातार बन रही हैं। इस तरह की फिल्में ना सिर्फ शिक्षा देती हैं, बल्कि सामान्य लोगों को जघन्य अपराधों से बचने के लिए जागरूक भी करती हैं। यही वजह है की अपराध और कानून पर आधारित फिल्मों को हमेशा से दर्शक सराहते रहे हैं। सिर्फ फिल्में ही नहीं, बल्कि छोटे पर्दे पर अपराध आधारित कार्यक्रम, जैसे सीआइडी, क्राइम पेट्रोल, सावधान इंडिया आदि के अलावा अपराध और कानून पर कई सारी वेब सीरीज भी बन रही हैं।
बॉलीवुड फिल्मों में हमेशा से ही नाटकीयता का बोलबाला रहा है। इसके कारण कानून और न्यायालय कक्ष में नाटकीयता आधारित फिल्मों में आक्रामक तरीके से वकील का न्यायाधीश के सामने बहस करना, कभी कोर्ट में सबूत के नाम पर आक्रामक हो जाना, इतना ही नहीं फिल्म जॉली एलएलबी मैं कोर्ट कक्ष के अंदर वकील का कव्वाली शैली में गाना, जज बने सौरभ शुक्ला का हास्य- व्यंग्य भरा बयान देना, मेरी जंग फिल्म में कोर्ट में अनिल कपूर का जज के सामने जहर पीना, क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता.. में वकील बने गोविंदा का जज के सामने भरी अदालत में अपने आप को आग लगा लेना , फिल्म दामिनी में सनी देओल का जज के सामने चीख-चीखकर तारीख पर तारीख संवाद बोलना जैसे कई नाटकीय दृश्य कानून पर आधारित फिल्मों में दिखाए गए हैं।
फिल्मी इतिहास में न्यायालय कक्ष नाटकीयता पर आधारित कई ऐसी फिल्में बनी हैं जो आज भी दर्शकों के जेहन में हैं। इनमें अमिताभ बच्चन अभिनीत अंधा कानून, चेहरे, पिंक, बदला, सनी देओल अभिनीत राजकुमार संतोषी निर्देशित दामिनी, ऋ षि कपूर अभिनीत मुल्क, अक्षय खन्ना अभिनीत आर्टिकल375, राज बब्बर पद्मिनी कोल्हापुरी अभिनीत इंसाफ का तराजू, वीर जारा, ऐतराज, शाहिद, वक्त, नो वन किल्ड जेसिका, बात एक रात की, ओ माय गाड, रुस्तम, एक रुका हुआ फैसला, एक बंदा काफी है, ऐश्वर्या राय अभिनीत जज्बा, नसीरुद्दीन शाह अभिनीत आक्रोश , मधुर भंडारकर निर्देशित जेल, जैसी कई फिल्में जो कानून और कोर्ट कक्ष नाटकीयता पर आधारित हैं। इन्हें दर्शकों ने सराहा है।
बॉलीवुड की फिल्में सिर्फ कल्पना के आधार पर नहीं ,बल्कि वास्तविकता पर भी बनती हैं। जैसे फूलन देवी पर बनी फिल्म बैंडिट क्वीन, दाऊद इब्राहिम पर बनी फिल्म वंस अपान ए टाइम इन मुंबई, जेसिका लाल हत्याकांड पर बनी फिल्म नो वन किल्ड जेसिका, नेवी कमांडर केएन नानावटी जिसमें अपनी पत्नी की हत्या की थी, पर आधारित फिल्म रुस्तम, आरुषि हत्याकांड पर बनी फिल्म तलवार, मानसिक रोगी रमन राघव पर बनी फिल्म रमन राघव, झारखंड और धनबाद में पारिवारिक अंडरवर्ल्ड आपराधिक लोगों पर बनी फिल्म गैंग्स आफ वासेपुर, राजीव गांधी की हत्या पर बनी फिल्म मद्रास कैफे, गांधी जी की हत्या पर आधारित फिल्म हे राम, गुजरात दंगों पर आधारित फिल्म फिराक इत्यादि में वास्तविकता को फिल्माया गया है। ऐसे ही वास्तविक अपराध से भरी घटनाओं पर आधारित नेल पालिश, गार्गी, जन मन गण, एनएच 10, सत्या, शूटआउट अट लोखंडवाला, स्पेशल 26, आदि कई फिल्में हैं जो वास्तविक अपराध पर केंद्रित है।
निर्देशक संजय पूरन सिंह निर्देशित फिल्म 72 हूरें जोकि ओसामा बिन लादेन और अजमल कसाब पर केंद्रित है, यह फिल्म सात जुलाई को प्रदर्शित हो रही है।
इसके अलावा अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म सेक्शन 84, चोर पुलिस की कहानी पर आधारित फिल्म जोइम, शाहिद कपूर अभिनीत ब्लडी डैडी, सोनम कपूर अभिनीत ब्लाइंड, अक्षय कुमार अभिनीत फ़िल्म क्रैक, इमरान हाशमी अभिनीत फादर्स डे आदि फिल्में अपराध और कानून पर केंद्रित हैं। आने वाले दिनों में ये फिल्में प्रदर्शित होंगी।
आरती सक्सेना