बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता दलीप ताहिर ने अपने करियर में कई फिल्मों में काम किया। किसी में उन्होंने पॉजिटिव रोल, तो किसी में वह नेगेटिव रोल निभाते हुए दिखाई दिए। सिर्फ इतना ही नहीं, यहां तक कि एक्टर ने अपनी लाइफ में कभी भी छोटी भूमिका निभाने से पीछे नहीं हटे। दर्शकों ने उन्हें राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित एथलीट मिल्खा सिंह की बायोपिक ‘भाग मिल्खा भाग’ में जवाहरलाल नेहरू की छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाते हुए देखा था।

अब हाल ही में दलीप ने एक इंटरव्यू में अपने उस रोल को लेकर बात की है और कई दिलचस्प किस्से भी शेयर किए हैं। इस छोटे से रोल के लिए अभिनेता ने एथलीट से जाकर मुलाकात भी की थी। ताकि वह उनके नेहरू के बारे में अच्छे से जान सके। चलिए जानते हैं कि एक्टर ने इस बारे में क्या कहा।

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इस वजह से दलीप ने की मिल्खा सिंह से मुलाकात

रेड एफएम पॉडकास्ट के साथ बात करते हुए दलीप ने बताया कि उन्होंने ‘भाग मिल्खा भाग’ की टीम से मिल्खा सिंह से मिलने की व्यवस्था करने को कहा था, क्योंकि एथलीट ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो सच में जवाहरलाल नेहरू से मिले थे। दरअसल, अभिनेता का मानना ​​था कि मिल्खा से मिलकर वह नेहरू के बारे में सुनेंगे और उन्हें जानेंगे, तो उन्हें बड़े पर्दे पर नेता को किरदार निभाने में मदद मिलेगी।

जवाहरलाल नेहरू ने किया पाकिस्तान जाने को राजी

दलीप ने बताया, “जवाहरलाल नेहरू की मिल्खा सिंह के जीवन में बड़ी भूमिका थी और एथलीट से खुद मिलने के बाद मुझे इसके बारे में पता चला।” इसके आगे दलीप ने बताया कि 1960 में लाहौर में एक इंटरनेशनल एथलेटिक कम्पटीशन में 200 मीटर स्पर्धा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किए जाने के बाद वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे, क्योंकि मिल्खा सिंह के माता-पिता और भाई-बहन विभाजन के दौरान मारे गए थे और वह दर्दनाक घटना के 13 साल बाद लाहौर लौटने के लिए अनिच्छुक थे। ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे जिन्होंने उन्हें वहां जाने के लिए राजी किया था।

इसके बारे में दलीप ने कहा, “मिल्खा सिंह ने मुझसे 4 घंटे तक बात की और हमने जवाहरलाल नेहरू के बारे में बहुत सारी बातें कीं। मिल्खा ने मुझसे कहा कि मैं पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहता था, लेकिन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने मुझे जाने के लिए कहा और उन्होंने मुझे टीम का कप्तान बनाया। नेहरू चाहते थे कि उस समय पाकिस्तान में कोई प्रतिष्ठित नागरिक जाए, ताकि रिश्तों में सुधार हो सके, वे किसी राजनेता को नहीं भेजना चाहते थे।” नेहरू जानते थे कि बंटवारे के दौरान मिल्खा जी के साथ क्या हुआ था, इसलिए उन्हें वहां भेजने के लिए उन्होंने उन्हें कप्तान बनाकर मना लिया। मिल्खा सिंह नेहरू को मना नहीं कर सके।”

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