राजीव सक्‍सेना

मनोविकृतियों से जुड़ा अपराध विज्ञान या उससे संबंधित कहानियां कभी हालीवुड की फिल्मों का पसंदीदा विषय होती थीं। 90 के दशक से हिंदी सिनेमा में और अब ओटीटी की वेब शृंखलाओं की पटकथा में ये सबसे ज्यादा सराहा जाने वाला विषय साबित हो रहा है। ‘असुर’, ‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘मिथ्या’ सरीखी शृंखला के बाद जी फाइव पर इस सप्ताह प्रदर्शित ‘दुरंगा’ ऐसी ही एक दिलचस्प वेब सीरीज है।

’दुरंगा’: एक और मनोविकृति रोमांच

महाराष्ट्र के सुदूर ग्रामीण अंचल की पृष्ठभूमि में रची-बसी पटकथा के मुताबिक सारंगबाड़ी गांव में प्राथमिक कक्षा में पढ़ रहे चार खास दोस्तों को, अपने ही बीच के एक दोस्त के पिता के बारे कुछ ऐसा मालूम होता है, जो सनसनीखेज है। मनोविकृति का शिकार बाला बाने नाम का व्यक्ति, बेवजह अपने आसपास के लोगों की एक अलग तरह से हत्या कर, घर में बनी प्रयोगशाला में विचित्र से प्रयोग करता था। उसके हाथों गांव के सरपंच की हत्या की वारदात की भनक उसके बेटे और बेटी को किसी तरह मालूम हो जाती है।

सत्रह बरस के बाद मुंबई में, कुछ हत्याओं की तफ्तीश के दौरान, पुलिस को हत्यारे की मनोविकृति का आभास सारंगबाड़ी के बाला बाने का स्मरण कराता है। तमाम जांच के बाद शक की सुई बाला बाने के बेटे अभिषेक बाने की तरफ घूमती है, जो बरसों से नदारद है। जांच कर रही पुलिस अधिकारी इरा पटेल अपने खानसामा पति समित पटेल और एक प्यारी सी बेटी के साथ खुशहाल दिन व्यतीत करते हुए कभी-कभी खुद को अपनी सास और ससुर की अनकही नाराज़गी का शिकार पाती है।

अपराध कथाओं पर आधारित एक खास चैनल के लिए कवरेज करने वाले एक पत्रकार को समित पटेल को लेकर संदेह उसके दोहरे व्यक्तित्व के बेहद चौंकाने वाले रहस्य से सामना होता है। उसे पता चलता है कि कभी सारंगबाड़ी में उसका स्कूल का सहपाठी अभिषेक बाने ही, समित पटेल की नई पहचान के साथ दोहरी, दुरंगी जिंदगी जी रहा है। अतीत की विडंबना के कारण पिता की मनोविकृति, दु:खद परछाई की तरह उसके साथ जुड़कर उसके हाथों एक के बाद एक निर्दोष हत्याएं करवा रही है। पुलिस अधिकारी इरा पटेल के लिए भी अपने पति का ये दुरंगा रूप कम चौंकाने वाला नहीं था।

हालीवुड की बहुतेरी फिल्मों से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों में इस तरह के साइको किस्म के हत्यारे की कहानियां डर , दीवानगी आदि में कई बार इस्तेमाल हुई। वेब सीरीज बनाने वालों ने भी असुर, सेक्रेड गेम्स, लवर्स हास्टल के बाद अब दुरंगा में कथानक दोहराया है। बेहद उलझी सी कहानी में, निर्देशक प्रदीप सरकार और एजाज खान समित पटेल के दोहरे व्यक्तित्व को शुरुआत से ही रहस्य रखने की बजाय उजागर करते चलते हैं, जो सहज गले नहीं उतरता। समित के तथाकथित मां-बाप, कोमा में पड़े अपने बेटे का नाम अभिषेक बाने को देने के लिए क्यों मजबूर हैं, ये बात जरूर रहस्य बनी होती है।

दो-दो निर्देशक, खासकर उम्दा फिल्में देने वाले प्रदीप सरकार भी अपनी इस वेब सीरीज में निर्देशन का जादू नहीं चला पाए। अलबत्ता दोहरी मुख्य भूमिकाओं में अभिनेता गुलशन देवैया के साथ, पुलिस अधिकारी बनीं अभिनेत्री दृष्टि धामी ने जरूर प्रभावित किया। दिव्या सेठ, ज़ाकिर हुसैन, राजेश खट्टर, अभिजीत खांडेकर, स्पर्श वालिया, बरखा बिष्ट और किरण श्रीनिवास ने भी अपने-अपने किरदार के साथ इंसाफ ही किया है। बेहतर होता कि इस तरह की मनोविकृतियों से निजात पाने के उपाय भी पटकथा का हिस्सा होते।