सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 संशोधित विधेयक संसद से पारित हो गया। ये एक्ट सेंसरशिप के तरीके को बदलने के साथ-साथ फिल्म पाइरेसी पर रोक लगाता है। नए कानून के मुताबिक, अब फिल्म पाइरेसी करते पकड़े जाने पर तीन साल तक की जेल और फिल्म की लागत का पांच फीसद जुर्माना लगेगा। यानी अगर किसी फिल्म की लागत 100 करोड़ रुपए है तो उस फिल्म की पाइरेसी करते पकड़े जाने पर 5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। पाइरेसी से फिल्म उद्योग को करीब 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।

तीन नई श्रेणी में प्रमाणपत्र

इस बिल में कुछ नई श्रेणी जैसे ‘वअ 7+’, ‘वअ 13+’ और ‘वअ 16+’ को शामिल किया गया है। अब फिल्मों को वअ सर्टिफिकेशन के तहत 7 साल, 13 साल और 16 साल के दर्शकों के लिए अलग-अलग प्रमाणित किया जाएगा। इस आयु सीमा से कम उम्र के बच्चे माता-पिता के साथ ऐसी फिल्में देख सकते हैं। पहले केवल तीन श्रेणी में फिल्मों को बांटा जाता था। पहला ‘व’ यानी कि इसे सभी लोग देख सकते हैं। दूसरा ‘वअ’ यानी बच्चे अपने माता-पिता के साथ फिल्म देख सकते हैं। तीसरा है ‘अ’ यानी फिल्म को सिर्फ वही लोग देख सकते हैं, जिनकी उम्र 18 साल से ज्यादा है।

पाइरेसी पर तीन साल की जेल

नया बिल फिल्म उद्योग के जानकारों के साथ परामर्श के बाद तैयार किया है। इस विधेयक में फिल्मों की अनधिकृत रिकार्डिंग (धारा 6एए) और उनके प्रदर्शन (धारा 6एबी) पर रोक लगाने के प्रावधानों के साथ सिनेमैटोग्राफ एक्ट में नई धाराएं जोड़ने का प्रस्ताव है। विधेयक में पाइरेसी को दंडनीय अपराध बनाने का प्रावधान भी किया गया है। इसमें दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की कैद या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। दरअसल, भारत में फिल्मों की पाइरेसी काफी बढ़ गई है।

हमेशा के लिए मान्य होगा

नए बिल में फिल्म सेंसरशिप को आसान बनाने के लिए कुछ बदलावों का भी सुझाव दिया गया है। नए बिल के बाद सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट हमेशा के लिए मान्य होगा। फिलहाल किसी फिल्म को 10 साल के लिए सेंसर प्रमाण पत्र दिया जाता है। सेंट्रल बोर्ड आफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) से अब टीवी सामग्री को लेकर भी प्रमाणपत्र लेना होगा। इस तरह फिल्म और प्रसारक बिना किसी कानूनी समस्या के अपने विषय को दर्शकों तक पहुंचा सकते हैं।

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राज्यसभा की मंजूरी के बाद ये बिल आगे की चर्चा और मंजूरी के लिए संसद के निचले सदन लोकसभा में गया था,यहां भी इसे मंजूरी मिल गई। अब राष्ट्रपति से मंजूरी मिल जाती है, तब यह कानून बन जाएगा अगर ये कानून बन जाता है तो फिल्म पाइरेसी पर लगाम लगेगी। इससे फिल्म उद्योग को होने वाला करोड़ों का नुकसान कम किया जा सकेगा।

2013 में गठित हुआ था आयोग

फिल्म उद्योग लंबे समय से केंद्र सरकार से पाइरेसी के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग कर रहा है। 2013 में, तत्कालीन आइबी मंत्री मनीष तिवारी ने एक विशेषज्ञ आयोग का गठन किया, जिसने 1952 अधिनियम पर एक रपट प्रस्तुत की और प्रमाणन और वर्गीकरण से संबंधित दिशा-निदेर्शों पर सिफारिशें कीं।

2016 में एक और पैनल स्थापित किया गया था, इस बार को छोड़कर इसकी अध्यक्षता फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल ने की थी। इस समिति की रपट में कहा गया है कि सीबीएफसी को पूरी तरह से प्रमाणन संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए और किसी भी फिल्म पर बदलाव नहीं थोपना चाहिए।सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक का पहला संस्करण, 2019 में तत्कालीन सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ द्वारा राज्यसभा में पेश किया गया था, जिसमें पाइरेसी के खिलाफ तीन साल तक की कैद या 10 लाख रुपए के जुर्माना अथवा दोनों के साथ दंडात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव किया गया था।