चेतन भगत ने कहा कि बॉलीवुड एक्टर्स रेस्टोरेंट में तब तक अपना खाना एन्जॉय नहीं कर पाते जब तक कोई आकर उनकी फोटो न खींचे। उन्होंने इसे “बीमार ज़िंदगी” बताया और कहा कि उनमें से कई लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से गुजर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वो हमेशा से “लोगों को खुश करने वाले” इंसान रहे हैं। इसी वजह से उन्होंने अपनी किताबों को फिल्मों में बदलने के बारे में सोचना शुरू किया ताकि उन्हें ज़्यादा लोकप्रियता मिल सके। चेतन भगत ने कहा कि शोहरत एक नशे की तरह होती है, और इसी से बचने के लिए वे दुबई चले गए।

चेतन भगत की कई किताबों पर फिल्में बनी हैं। 3 Idiots (2009) और Kai Po Che! (2013) जैसी कुछ फिल्मों ने दर्शकों के दिल जीते और उन्हें और मशहूर बना दिया। पर भगत ने कहा कि अब उन्हें सिनेमा से उतना आनंद नहीं मिलता, क्योंकि उसमें उन्हें क्रिएटिविटी नहीं लगती।

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उन्होंने कहा, “भारतीय लोग औसतन किताबों से ज़्यादा फिल्मों को पसंद करते हैं। मैंने सोचा अगर मैं फिल्में बनाऊं, तो लोग मुझे ज़्यादा पसंद करेंगे। इसी सोच से मैं बॉलीवुड में आया। एक फिल्म बनाने में तीन साल लगते हैं, और ज़्यादातर समय बस प्रोड्यूसर के साथ बैठकर चाय पीनी होती है या एक्टर्स को मनाना पड़ता है। इसमें कोई क्रिएटिव प्रोसेस नहीं है।”

भगत ने कहा, “मैंने 10-15 साल फिल्मों में लगाने के बाद महसूस किया कि ये मेरी चीज़ नहीं है। मेरी कहानियों का बस अनुवाद हो रहा है। हां, उसमें गाने और ग्लैमर हैं, पर सच्चा संतोष नहीं है। खाली कागज़ से जादू रचना मेरी भगवान की दी हुई कला है। और मैं वहां एक्टर्स के डेट्स का इंतज़ार कर रहा था। मैंने 15 साल फिल्म इंडस्ट्री को खुश करने में लगा दिए। पर अब समझा कि ये मैं नहीं हूं, ये मुझे गहरी खुशी नहीं देता।”

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उन्होंने बताया कि 50 साल की उम्र में उन्हें आत्मविश्वास मिला, जब उन्होंने देखा कि कुछ लोग बॉलीवुड में धीरे-धीरे फीके पड़ गए। “कुछ एक्टर्स और डायरेक्टर्स की फिल्में पहले चलती थीं, अब नहीं चलतीं। वो इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते, और मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स से जूझते हैं। कुछ एक्टर्स रेस्टोरेंट में जाते हैं, और अगर उन्हें कोई पहचानता नहीं या फोटो नहीं खींचता, तो उनका खाना फीका लगने लगता है। सोचिए, कैसी बीमार ज़िंदगी है वो।”

उन्होंने कहा कि जब उनकी किताबें बहुत नहीं बिक रही थीं, तब उन्होंने इन्वेस्टमेंट बैंकिंग की नौकरी छोड़ी थी। “मेरा आखिरी बोनस एक मिलियन डॉलर का था, सैलरी के अलावा। उसी पैसे से मैंने बांद्रा में घर खरीदा। फिर मैंने अपनी ज़िंदगी जीना शुरू किया।”

भगत ने कहा कि शोहरत एक नशे की तरह है, इसलिए वे दुबई चले गए ताकि उससे दूर रह सकें। “अब मैं ज़्यादातर दुबई में रहता हूं, और वहां कोई मुझे नहीं पहचानता। मुझे ये बहुत अच्छा लगता है। शोहरत की छाया रचना पर असर डालती है। अगर मैं हमेशा ये सोचता रहूं कि मैं फेमस हूं, तो अच्छा नहीं लिख पाऊंगा। लेकिन बॉलीवुड शोहरत का नशेघर है। मुंबई की हवा में भी फेम का नशा है। वहां से निकलना मुश्किल है, जैसे सिगरेट छोड़ना।”

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उन्होंने बताया कि जब 2 States (2014) रिलीज़ हुई थी, तब बहुत से सेलेब्स उन्हें बर्थडे विश करते थे। “अब कोई नहीं करता। तब वो लोग मुझसे प्यार और दोस्ती दिखाते थे, लेकिन वो सब दिखावा था। बॉलीवुड में असली दोस्ती नहीं होती, वो एक ‘डील-मेकिंग फैक्ट्री’ है। ये बहुत असुरक्षित इंडस्ट्री है, यहां तक कि सबसे बड़ा स्टार भी असुरक्षित रहता है, क्योंकि तीन फिल्मों में ही उसका करियर खत्म हो सकता है। इसलिए बॉलीवुड में दोस्ती मत ढूंढो। जब मेरी फिल्में आती थीं, लोग मुझे मिठाई और गिफ्ट भेजते थे ताकि उन्हें फिल्म में काम मिल सके। मैं उन्हें दोष नहीं देता, वो उनकी मेहनत का हिस्सा है।”