आरती सक्सेना
जैसे-जैसे देश तरक्की कर रहा है, नई-नई तकनीक विकसित हो रही है। वहीं उस कार्य से जुड़े हजारों करोड़ों लोगों के सामने बेरोजगारी का संकट खड़ा हो रहा है। क्योंकि जो काम एक तकनीक कर सकती है उसके लिए कई सारे कामगार की क्या जरूरत है। जैसे की एक गाने की रिकार्डिंग के दौरान एक जमाने में जहां हजारों संगीतकार और यंत्र जरूरी होते थे, वही काम अब एक सिंथेसाइजर तकनीक आसानी से कर लेता है।
एक सिंथेसाइजर तकनीक में सिर्फ कई सारे संगीत ही नहीं बल्कि बेसुरे को सुर में गवाने का साफ्टवेयर भी होता है। ऐसे ही कृत्रिम मेधा का आगमन हो गया है। जिसके अगर हजारों फायदे हैं तो इसके आने के बाद कई लोगों के रोजगार के लिए खतरे की घंटी भी है। फिल्म उद्योग में कृत्रिम मेधा के क्या फायदे नुकसान है, फिल्म व्यवसाय में यह कितना कारगर सिद्ध होगा। एक नजर…
हालीवुड की राइटर एसोसिएशन और प्रोडक्शन स्टूडियोज पहले ही कृत्रिम मेधा के प्रयोग का विरोध कर रहे हैं। वहीं बालीवुड में भी इसकी दस्तक जहां फिल्म निर्माताओं को उत्साहित कर रही है, वहीं राइटर एसोसिएशन ने भी इसका विरोध शुरू कर दिया है। जिसके पीछे खास वजह यह है कि कृत्रिम मेधा जो डेटा इस्तेमाल करने वाली है उस पर कापीराइट दावे को लेकर सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम ना उठाना है।
जिसके बाद लेखकों, संपादकों को अपने कानूनी अधिकार सुरक्षित करने में तकलीफ हो जाएगी। इसके आगमन से नए लेखकों के रोजगार पर भी बुरा असर पड़ेगा क्योंकि जो काम 10 लेखक की टीम मिलकर एक फिल्म या धारावाहिक के लिए करती है। वही काम अकेला कृत्रिम मेधा कर लेगी।
गौरतलब है कृत्रिम मेधा पटकथा लिखने के लिए जो डेटाबेस इस्तेमाल करेगी वह मानवीय डेटाबेस होगा। जिसके बाद कापीराइट दावे के लिए कोई प्रावधान साफ नहीं है। इसका उपयोग सिर्फ लेखन में ही नहीं बल्कि कलाकारों की आवाज के लिए एडिटिंग, वीएफएक्स स्क्रीनप्ले राइटिंग आदि कई चीजों के लिए किया जा सकता है। अगर कोई फिल्म निर्माता पैसों के दम पर कृत्रिम मेधा का महंगा साफ्टवेयर खरीद लेता है तो वह सारा काम इस तकनीक के जरिए ही कर सकता है। इसका वह साफ्टवेयर खरीदने के बाद उसे किसी एडिटर डबिंग आर्टिस्ट, राइटर आदि की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
कृत्रिम मेधा के फिल्म उद्योग में आगमन को लेकर जहां कुछ लोग डरे हुए हैं और इसे खतरे की घंटी मानते हैं तो कुछ इसे सिर्फ मशीन मानते हैं जिसका वास्तविकता से कोई मुकाबला नहीं है। ‘गदर 2’ के निर्देशक अनिल शर्मा के अनुसार वे हर उस तकनीक का उपयोग करते हैं जिससे उनकी फिल्म को फायदा हो। फिर चाहे वह वीएफएक्स हो या कृत्रिम मेधा ही क्यों ना हो।
उनके कथनानुसार इसका भी उपयोग उन्होंने अपनी फिल्म में किया है। उनका कहना है कि मशीन इंसान से आगे नहीं हो सकती। मशीन अपना काम करती है और इंसान दिमाग का इस्तेमाल करके कला का प्रदर्शन करके अपना काम दिखाता है। ऐसे में मशीन फायदेमंद तो हो सकती है लेकिन सब कुछ नहीं।
जो काम इंसान का दिमाग और काबिलियत कर सकती है वह मशीन नहीं कर सकती। अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी भी कृत्रिम मेधा को फिल्म उद्योग की तरक्की के लिए अच्छा माध्यम मानती हैं। उनका मानना है दुनिया में नई चीज तो आती रहेगी हम उससे बच नहीं सकते। लेकिन उसका मुकाबला करके आगे बढ़ने का रास्ता जरूर निकाल सकते हैं।
फिल्म आलोचक और संपादक नरेंद्र गुप्ता के अनुसार कृत्रिम मेधा को खासतौर पर लेखकों व फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों जैसे अभिनेता, गायक, गीतकार, संपादक आदि के रोजगार के लिए खतरा माना जा रहा है। काफी हद तक यह सही भी है लेकिन इस वजह से नई तकनीकी का आगमन बंद तो होगा नहीं। लिहाजा जरूरत है की हम इसका विरोध करने के बजाय अपने फायदे का कोई रास्ता ढूंढें।
ये बाकी क्षेत्रों में भले ही अच्छा काम कर रहा हो लेकिन एक कलाकार की कला और भावना को मशीन के जरिए नहीं दर्शाया जा सकता। एक कलाकार की जगह मशीन नहीं ले सकती। चाहे कितनी ही मशीन आ जाए कितनी ही नई तकनीक आ जाए लेकिन जब तक फिल्में बन रही हैं लोगों को रोजगार मिलता रहेगा। फिल्म उद्योग जितना आगे बढ़ेगा लोगों को काम भी उतना ही मिलेगा। बस काम को लेकर प्रतिस्पर्धा ज्यादा बढ़ेगी। कुछ भी आसान नही होगा। रोजगार पाने के लिए तकनीकी युग के हिसाब से ज्यादा सीखना होगा ताकि इस युग के मुताबिक हम रोजगार पा सके।