Bhagwan Dada Death Anniversary: भारत के पहले एक्शन हीरो भगवान दादा के थप्पड़ ने ही ललिता पंवार की एक आंख हमेशा के लिए खराब कर दी थी, उस घटना से भगवान दादा जिंदगी भर दुखी और शर्मिंदा रहा करते थे, मगर आज हम उनका जो किस्सा बताने वाले हैं वो उनकी लाइफ के स्ट्रगल और फिर स्टारडम का है। 4 फरवरी 2002 को भगवान दादा का निधन हो गया था। उनके गाने ‘शोला जो भड़के’ और ‘ओ बेटा जी’ आज भी लोग सुनते हैं। इनका पूरा नाम भगवान आभाजी पालव था, और प्यार से लोग उन्हें भगवान दादा कहा करते थे। उनकी शुरुआत स्ट्रगल से हुई और जिंदगी का आखिरी वक्त भी गरीबी में गुजरा मगर कभी उनके पास 25 कमरों का बंगला और 7 लग्जरी गाड़ियां हुआ करती थीं।
फिल्मों में आने से पहले कपड़े के मिल में काम करते थे भगवान दादा
भगवान दादा का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। काम के सिलसिले में उनके पिता मुंबई आए थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और भगवान दादा को पढ़ाई छोड़कर परिवार की मदद के लिए कपड़ा मिल में काम करना होता था। उन्हें ये काम बिल्कुल पसंद नहीं था, वो हमेशा से फिल्मों में आना चाहते थे।
भारत के पहले एक्शन हीरो थे भगवान दादा, हॉलीवुड एक्टर से होती थी तुलना
किस्सा टीवी में छपी खबर के मुताबिक भारतीय फिल्मों में मुक्कों वाली लड़ाई का चलन भगवान दादा ने शुरू किया था, जिसके बाद उनकी तुलना हॉलीवुड एक्टर डगलस फेयरबैंक्स से होने लगी थी। फैंस तो उन्हें देसी डगलस फेयरबैंक्स भी कहने लगे थे, भगवान दादा सिर्फ़ एक्टर ही नहीं बल्कि फ़िल्ममेकर भी थे। भगवान दादा कम बजट में एक्शन फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे। अपनी फिल्मों में वो अपने एक्शन सीन खुद किया करते थे। मगर उनकी फिल्मों की ऑडियंस थे मजदूर तबके के लोग। उन्होंने भारत की पहली हॉरर फिल्म बनाई जिसका नाम भेदी बंगला था, वो फिल्म भी अच्छी चली थी। भगवान दादा अपनी फिल्मों में हर सीन रियल रखने की कोशिश करते थे, एक फिल्म का सीन था जहां पैसों की बारिश दिखानी थी इसके लिए उन्होंने असली नोट उड़ाई थीं जिससे सीन बिल्कुल रियल लगे।
वो फिल्म जिसकी शूटिंग के दौरान ललिता पवार संग हुआ हादसा
पहले भगवान दादा साइलेंट फिल्में बनाया करते थे फिर भारत में टॉकी फिल्मों ने दस्तक दी तो भगवान दादा ने भी अपनी पहली टॉकी फिल्म बनाई, जिसका नाम था हिम्मत-ए-मर्दा। इस फिल्म में हीरोइन थीं ललिता पवार। इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान भगवान दादा ने उन्हें एक थप्पड़ जड़ा जिसकी वजह से उनकी एक आंख हमेशा के लिए खराब हो गई।
राज कपूर ने दी भगवान दादा को सलाह
भगवान दादा अपनी फिल्मों से ठीक-ठाक कमाई कर रहे थे, मगर एक दिन राज कपूर ने भगवान दादा से कहा कि अब स्टंट फ़िल्में छोड़कर उन्हें सोशल फिल्म भी बनाना चाहिए। उनकी सलाह मानते हुए भगवान दादा ने फिल्म बनाई जिसका नाम था अलबेला। भगवान दादा खुद इस फिल्म में हीरो थे, फिल्म की हीरोइन थीं गीता बाली। ये फिल्म सुपरहिट हो गई। अलबेला साल 1951 में रिलीज हुई और उस साल की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। इस फिल्म के गाने ‘शोला जो भड़के’ और ‘भोली सूरत दिल के खोटे’ आज भी लोग गाते हैं। ये फिल्म भगवान दादा ने दोस्तों से उधार लेकर बनाई थी, मगर फिल्म इतनी बड़ी हिट रही कि उनपर पैसों की बरसात हो गई। कहां दादर की चॉल में रहने वाले भगवान दादा ने मुंबई में बड़ा सा बंगला खरीदा। बंगले में 25 कमरे थे। उन्होंने अपना खुद का फ़िल्म स्टूडियो भी बना लिया, और उसका नाम रखा आशा स्टूडियोज़। भगवान दादा ने 7 अलग-अलग गाड़ियां खरीदी थीं। उन्हें शेवरले कार बहुत पसंद थी, उनके पास 2 शेवरले गाड़ियां थीं, उन्होंने एक फिल्म में भी काम किया जिसका नाम शेवरले था।
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भगवान दादा: स्टारडम से कंगाली तक
भगवान दादा के पास जब बेतहाशा दौलत आई तो वो पानी की तरह पैसा बहाने लगे। शराब पीने लगे, जुआं खेलने लगे। उन्हें खुद पर इतना ज्यादा कॉन्फिडेंस आ गया कि लगने लगा कि उनकी बनाई फिल्में तो सुपरहिट होंगी। नतीजा ये हुआ कि अगली कुछ फिल्में फ्लॉप हो गईं। जिसके बाद उन्हें बहुत घाटा हो गया। भगवान दादा किशोर कुमार के साथ मिलकर भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे सफल फिल्म बनाना चाहते थे। फिल्म की शूटिंग भी शुरू हुई जिसका नाम था हंसते रहना। इस फिल्म में उन्हें हंसी तो नहीं दी मगर उनकी जिंदगी की खुशियां जरूर छीन लीं। भगवान दादा ने इस फिल्म में अपनी सारी बची हुई जमा-पूंजी लगा दी थी। किशोर कुमार को हीरो कास्ट किया। किशोर कुमार उनसे अजीबो-गरीब डिमांड करते रहें और वो उन्हें पूरी करने की कोशिश करते रहे। जिसके बाद उन्हें फिल्म बीच में ही बंद करनी पड़ी। भगवान दादा को इतना नुकसान हुआ कि उनकी कारें और बंगला बिक गया। वो वापस मुंबई की चॉल में शिफ्ट हो गए और अपने अंतिम समय तक इसी चॉल में रहें। दुख से उबरने के लिए शराब का सहारा लिया। वो इतनी शराब पीने लगे कि उनके घर में हजारों बोतलें जमा हो गईं।
भगवान दादा के चॉल के पास जरूर रुकता था गणपति का जुलूस
भगवान दादा का बुरा समय जरूर आ गया था मगर लोगों के मन में उनके लिए प्यार कम नहीं हुआ था। हर साल गणपति का जुलूस निकलता तो भगवान दादा के चॉल के पास जरूर रुकता था। भगवान दादा आते अपना सिग्नेचर डांस स्टेप करते और फिर जुलूस आगे बढ़ता था। भगवान दादा अपने यूनीक डांस स्टाइल के लिए जाने जाते थे। अमिताभ बच्चन, गोविंदा और मिथुन चक्रवर्ती का डांस भगवान दादा से प्रेरित रहा। वहीं ऋषि कपूर को तो भगवान दादा ने खुद डांस सिखाया था।
हार्ट अटैक से हुआ भगवान दादा का निधन
4 फरवरी 2002 को हार्ट अटैक से 88 साल की उम्र में भगवान दादा का निधन हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनके निधन पर शोक जाहिर किया था और उनकी तारीफ करते हुए कहा थि कि उन्होंने भारतीय सिनेमा में एक्टिंग और डांस से जो बदलाव लाए वो सभी के हित में रहें।