ग्लैमर की दुनिया में हर कोई चमकता है -ऐसा नहीं है। यहां कुछ लोगों को बुलंदियां हासिल होती हैं, तो कुछ वक्त के साथ भीड़ में गायब हो जाते हैं। तो वहीं कुछ संघर्ष करते रह जाते हैं। सवि सिद्धू फिल्म गुलाल, पटियाला हाउस और बेवकूफियां जैसी फिल्मों में अदाकारी कर चुके हैं। लेकिन इन दिनों वह सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने को मजबूर हैं। उनकी इस हालत को उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में बयां किया है।

वेबसाइट फिल्म कम्पेनियन को दिए इंटरव्यू में सवि ने अपने फिल्मी सफर के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि स्ट्रगलिंग दिनों में उनकी अनुराग कश्यप से मुलाकात हुई थी। ऐसे में अनुराग ने उन्हें अपनी पहली फिल्म पांच में काम करने का मौका दिया, लेकिन ये फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। इसके बाद फिल्म ब्लैक आई, इसमें भी सवि को काम करने का मौका मिला। सवि बताते हैं – ‘उस फिल्म में मैंने कमिश्नर सामरा का किरदार निभाया था। इसके बाद फिल्म गुलाल भी आई। इसके अलावा यश और सुभाष जी के साथ निखिल आडवाणी के साथ काम किया।’

सवि सिद्धू ने अपनी पढ़ाई लखनऊ में की इसके बाद वह चंडीगढ़ आ गए। ग्रैजुएशन करते करते उन्हें मॉडलिंग के ऑफर्स भी आने लगे थे। इसके बाद वह वापस लखनऊ गए और वहीं से अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी की। साथ साथ ही वह थिएटर से भी जुड़े रहे। सवि ने कहा कि अदाकरी करने का जज्बा उनके अंदर बचपन से ही भरा हुआ था। जब मेरे भाई की जॉब एयर इंडिया में लग गई इसके बाद से मेरे लिए मुंबई आने का रास्ता साफ हो गया। इसके बाद मैंने काम की तलाश शुरू की।

सवि ने आगे बताया कि उन्हें कभी काम की कमी महसूस नहीं हुई। बल्कि उन्होंने खुद काम छोड़ा है। तबियत नसाज रहने की वजह से ऐसा हुआ। सवि कहते हैं, ‘मुझे काम छोड़ना पड़ा, मैं ही नहीं कर पा रहा था। मुझे काम की कभी भी कोई कमी नहीं थी। यहां लोगों को काम नहीं मिलता लेकिन मेरे पास बहुत काम था। साथ ही मेरी तबियत भी खराब हो रही थी। ऐसे में मुझे फाइनेंशली दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। इसका सारा असर मेरे काम पर पड़ा।’

सवि कहते हैं- ‘इस बीच मैंने अपनी पत्नी को खो दिया। मेरे लिए वह घड़ी बड़ी मुश्किल थी।’ इसके बाद सवि के माता पिता और उनके सास ससुप भी चल बसे। ऐसे में वह बिलकुल अकेले पड़ गए। इसके बाद अब वह एक हाउसिंग सोसाइटी में 12 घंटे की शिफ्ट वाली सिक्योरिटी गार्ड की जॉब करते हैं। सवि की हालत इस वक्त बहुत खराब है वह बताते हैं कि डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स से मिलने जाने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं। वह कहते हैं-‘ थिएटर्स पर फिल्म देखने की बात को अब मेरे लिए सपना जैसी हो गई है।’

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