अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी बचपन के दोस्त थे। दोनों की दोस्ती इलाहाबाद के दिनों की थी। अमिताभ जब मायानगरी में अपना नाम बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब भी राजीव उनके साथ मजबूती से खड़े थे। अक्सर राजीव गांधी उनसे मिलने फिल्म के सेट पर जाया करते थे और घंटों इंतजार करते। वह अपना पूरा नाम नहीं बताते थे, बल्कि सिर्फ राजीव कहकर परिचय दिया करते थे। उन्हें लगता था कि पूरा नाम बताने से लोग अलग तरह से ट्रीट करने लगेंगे, क्योंकि वो प्रधानमंत्री के बेटे थे। ऐसे में दोनों की दोस्ती में एक दीवार खड़ी हो जाएगी।
नशे में थे महमूद: अमिताभ जब शुरू-शुरू में मुंबई पहुंचे थे तब किराए के कमरे में रहा करते थे। मशहूर एक्टर-डायरेक्टर महमूद के भाई अनवर अली उनके रूम पार्टनर थे। अमिताभ की महमूद और उनकी बहन जुबैदा से भी खूब पटती थी और सभी अक्सर साथ बैठा करते थे। ऐसी ही एक शाम अमिताभ एक गोरे-चिट्टे शख्स के साथ अनवर के कमरे पर पहुंचे। वो शख्स अमिताभ के साथ दिल्ली से मुंबई किसी काम से आया था।
थमा दिये पैसे: फ्लैट पर महमूद भी मौजूद थे। वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई अपनी किताब ‘नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स’ में लिखते हैं कि अनवर ने उस शख्स का अपने भाई महमूद से परिचय कराया। लेकिन महमूद उस वक्त नशे में थे। अनवर ने जो कुछ भी कहा महमूद उसे समझ नहीं पाए। उन्होंने तपाक से 5000 रुपये निकाले और अनवर को थमा दिया।
‘ये अमिताभ से गोरे और स्मार्ट’: महमूद ने कहा कि इस पैसे को अमिताभ के उस गोरे-चिट्टे दोस्त को दे दो। अनवर समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर महमूद उस शख्स को पैसे क्यों दे रहे हैं। तभी महमूद ने कहा वो शख्स अमिताभ से कहीं ज्यादा गोरा और स्मार्ट है और एक दिन निश्चित तौर पर इंटरनेशनल स्टार बनेगा। ये पैसे उनके (महमूद) के अगले प्रोजेक्ट में काम के लिए शख़्स का साइनिंग अमाउंट है। यह गोरा-चिट्टा शख्स कोई और नहीं बल्कि अमिताभ के दोस्त राजीव गांधी थे।
विदेश से लिखा करते थे चिट्ठी: राजीव गांधी जब पढ़ाई के लिए विदेश गए तब भी अमिताभ से उनकी दोस्ती बनी रही। वे लगातार अमिताभ को खत लिखा करते थे और अमिताभ भी इसका जवाब देते थे। एक बार जब राजीव इंग्लैंड से लौटे तो अमिताभ के लिए एक जींस लाए। अमिताभ को ये जींस बेहद पसंद आई और मौकों पर इसे पहनते रहे।
आपको बता दें कि अमिताभ बच्चन को राजनीति में लाने का श्रेय राजीव गांधी को ही दिया जाता है। अमिताभ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते भी। हालांकि बोफोर्स कांड के बाद अमिताभ ने धीरे-धीरे सियासत से दूरी बना ली और फिर पूरी तरह अलग हो गए।