Difference Between Adipurush And Ramayana: डायरेक्टर ओम राउत की फिल्म ‘आदिपुरुष’ (Adipurush) को 16 जून को सिनेमाघरों में रिलीज किया गया। फिल्म रिलीज होने के साथ ही विवादों में आ गई है। इससे लोगों का काफी उम्मीदे थीं। लोग रामानंद सागर के बाद ‘रामायण’ (Ramayana) पर आधारित फिल्म को देखना चाहते थे। लेकिन ये तो लोगों की उम्मीदों से एकदम परे निकली। साथ ही इसमें भगवान राम, सीता माता और हनुमान के किरदारों का मजाक ही बना दिया है। सभी किरदारों को ऐसे दिखाया है, मानों थिएटर में हम कोई गेमिंग शो देखने के लिए बैठे हैं। खैर, जो भी हो लेकिन रामायण के नाम पर जो मेकर्स ने पेश किया है, वो ठगी के बराबर है। ऐसे में आइए प्वॉइंट्स में समझते हैं कि ये रामानंद सागर की ‘रामायण’ से कितनी अलग है…?
‘रामायण’ का समाज पर पड़ा सकारात्मक प्रभाव
‘आदिपुरुष’ के मेकर्स ने ‘रामायण’ के नाम लोगों को कैसे ठगा? अगर इस सवाल की बात की जाए तो जाहिर तौर पर फिल्म को देखकर ये साफ है कि मेकर्स ने रामायण का नाम लाभ कमाने के उद्देश्य से किया। अगर मेकर्स ने इस पर अच्छे से रिसर्च वर्क किया होता तो शायद वो पर्दे पर ‘रामायण’ छपरी भाषा का प्रयोग ना करते। रामानंद सागर ने ‘रामायण’ अच्छे ठंग पेश किया था, जिसे कि ऐतिहासिक है। उसकी जगह कोई ले ही नहीं सकता है। इसका प्रभाव भी समाज पर सकारात्मक पड़ा है।
अब आप सोच रहे होंगे कि रामानंद सागर की रामायण का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा? तो चलिए वो भी बता देते हैं। उस समय संसाधन कम थे। गिने-चुने टेलीविजन होते थे। एक ही टेलीविजन पर पूरा गांव प्रोग्राम देखता था। ऐसे में ‘रामायण’ उस समय एक ऐसा जरिए बना जिसने लोगों को साथ बैठना सिखाया। दिन में भले ही किसी का किसी के साथ कैसा भी व्यवहार रहा लेकिन वो रामायण के टाइम पर साथ में जरूर बैठकर इसका आनंद लेते थे। रामानंद सागर ने प्राचीन भारतीय महाकाव्यों के मूल्य को बताया। भारतीय संस्कृति के बारे में दुनिया को बताया। आध्यात्म को बढ़ावा दिया।
‘आदिपुरुष’ ने दर्शकों को ‘रामायण’ के नाम पर ठगा?
प्रभास और कृति सेनन (Prabhas-Kriti Sanon) स्टारर फिल्म ‘आदिपुरुष’ में रामायण के नाम पर केवल दर्शकों को ठगा गया है। वो कैसे चलिए ये भी बताते हैं। दरअसल, कहने के लिए मेकर्स ने तो 650 करोड़ लगाकर फिल्म बनाया वो भी रामायण के नाम पर। फिल्म में रामायण के चरित्र तो हैं मगर तथ्यों की धज्जियां उड़ाई गई। वीएफएक्स के नाम पर रामायण के चरित्रों को कार्टून बना दिया।
फिल्म में किया गया छपरी भाषा का इस्तेमाल
भारतीय ग्रंथों में जिस तरह से रामायण को बताया गया है। ‘आदिपुरुष’ में रामायण उससे एकदम अलग है। फिल्म डायलॉग्स के नाम पर छपरी भाषा का प्रयोग किया गया है। ऐसे में कौन सी रामायण में कहा गया है कि ‘कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, घर तेरे बाप और जलेगी भी तेरे बाप की।’, ‘तेरी बुआ का बगीचा है क्या?’ ऐसे डायलॉग्स किस ‘रामायण’ के हैं। इतनी ही नहीं फिल्म को लेकर पहला विवाद तब हुआ जब इसमें दिखाया गया कि सीता माता भारत की बेटी हैं, जबकि सीता नेपाल में जन्मी थीं। इसलिए, भारत और नेपाल का रिश्ता रोटी-बेटी का बताया जाता है। हालांकि, बाद में फिल्म से ये डायलॉग विवाद के बाद हटा दिया गया।
भारतीय संस्कृति के बारे में क्या बताना चाहते हैं मेकर्स?
ऐसे में सवाल ये है कि क्या मेकर्स भारत की रामायण के बारे में नहीं जानते? क्या उन्होंने तथ्यों में बदलाव करने और छपरी भाषा का इस्तेमाल करने से पहले रामानंद सागर की रामायण को नहीं देखा था? अंत में आखिर वो इस तरह की फिल्म से भारत के किस ग्रंथ का परिचय देना चाहते हैं और भारतीय संस्कृति के बारे में क्या बताना चाहते हैं? क्या आने वाली जेनरेशन ‘रामायण’ के नाम पर ऐसे कार्टून और छपरी भाषा को सीखेगी?