BJP-BJD Alliance: भारतीय जनता पार्टी और ओडिशा की सत्ताधारी बीजू जनता दल के बीच बढ़ रहीं नजदीकियों का परिणाम क्या गठबंधन के रूप में सामने आएगा, यह सभी जानना चाहते हैं। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 370 सीटें और एनडीए का 400 सीटों का लक्ष्य रखा है। पीएम मोदी ने अपनी ओडिशा यात्रा के दौरान नवीन पटनायक की तारीफ की थी। वहीं, सीएम ने कहा कि मोदी ने भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए रास्ता तय कर दिया है।

केंद्र में, बीजेडी ने हमेशा से भारतीय जनता पार्टी के जरूरी मुद्दों के पक्ष में ही मतदान किया है। इसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम, जीएसटी, दिल्ली अध्यादेश और सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी, वन नेशन वन इलेक्शन शामिल हैं। गठबंधन बनने की अटकलों को जब और बल मिला जब हाल के राज्यसभा चुनाव में बीजेडी ने बीजेपी के उम्मीदवार अश्विनि वैष्णव को समर्थन दिया।

बीजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गठबंधन दोनों ही पार्टियों के लिए मुनाफे का सौदा होगा क्योंकि केंद्र में बीजेपी सत्ता में लौटने की ओर अग्रसर है। वही, ओडिशा में बीजेडी भी छठी बार सरकार बनाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में बीजेपी के साथ अलायंस के साथ राज्य में सत्ता में लौटने में मदद मिलेगी।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी और बीजेडी का गठबंधन कैसा रहा

जनता दल के कद्दावर नेता और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक की मृत्यु के बाद , बीजू के साथी नेताओं ने 26 दिसंबर, 1997 को उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए एक क्षेत्रीय पार्टी बीजेडी का गठन किया। इस समय बीजेपी ओडिशा में अपना आधार कायम करने के लिए संघर्ष कर रही थी। वहीं, कांग्रेस पार्टी राज्य में दूसरी सबसे मजबूत पार्टी थी। इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी सहित बीजेपी नेतृत्व ने बीजद के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की।

बीजेपी और बीजेडी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1998 में एक साथ लड़ा था। बीजेडी ने 12 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 पर जीत हासिल की, जबकि बीजेपी ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 पर जीत हासिल की। ​​उनका वोट शेयर कुल मिलाकर 48.7% था। इनमें से बीजेडी के वोट शेयर की बात करें तो वह 27.5% और बीजेपी का 21.2% था। 16 सीटों पर लड़ने वाली जनता दल अपना खाता नहीं खोल सकी और उसका वोट शेयर घटकर 4.9% रह गया। अटल बिहार वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार केंद्र में आई और वह कुछ समय के लिए ही चल सकी।

1999 के लोकसभा चुनावों में, बीजेडी और बीजेपी ने सीट-बंटवारे के उसी फॉर्मूले को दोहराया और ओडिशा में 57.6% वोट शेयर के साथ कुल 21 सीटों में से 19 सीटें जीत लीं। जहां बीजेडी ने 33% वोटों के साथ 10 सीटें जीतीं, वहीं बीजेपी ने 24.6% के साथ 9 सीटें जीतीं। बीजद-बीजेपी की सफलता की कहानी 2004 के लोकसभा चुनावों में भी जारी रही, हालांकि केंद्र में यूपीए की सरकार सत्ता में आई। गठबंधन ने ओडिशा की 21 सीटों में से 18 सीटें जीतीं, जिसमें कुल वोट शेयर 49.3% था। इस बार बीजेडी ने 30% वोट के साथ 11 सीटें जीतीं और बीजेपी ने 19.3% वोट शेयर के साथ 7 सीटें जीतीं।

विधानसभा चुनाव में बीजेडी और बीजेपी का परफॉर्मेंस कैसा रहा

2000 में पहली बार दोनों पार्टियों ने मिलकर एक साथ विधानसभा चुनाव लड़ा था। इसमें नवीन पटनायक पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। बीजेडी ने 84 सीटों पर लड़ाई लड़ी और 68 (29.4% वोट शेयर) जीती और बीजेपी ने 63 सीटों पर लड़ाई लड़ी और 38 (18.2% वोट) जीतीं। बीजेडी और बीजेपी का कुल वोट शेयर 47.6%, कांग्रेस के 33.8% वोट और 26 सीटों से कहीं अधिक रहा।

दोनों पार्टी क्यों अलग हुईं

साल 2008 में अगस्त महीने में कंधमाल जिले में विश्व हिंदू परिषद के नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या हुई, जिन्होंने ईसाई धर्म में कथित धर्मांतरण के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करने का दावा किया था। इसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में 38 लोग मारे गए। इसके बाद 2009 के चुनावों से ठीक पहले बीजेडी ने गठबंधन तोड़ दिया। दंगों ने पटनायक को अपने सहयोगी की छाया से बाहर निकलने का मौका दे दिया।

बीजेडी के इस कदम का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा। साल 2009 में विधानसभा चुनावों हुए और बीजेपी ने लगभग सभी सीटों (147 में से 145) पर चुनाव लड़ा और 15.5% वोटों के साथ केवल 6 सीटें जीतीं। लोकसभा चुनाव में यूपीए को केंद्र की सत्ता में लौटाने वाली बीजेपी 16.9% वोट हासिल करने के बावजूद अपना खाता नहीं खोल सकी। वहीं, दूसरी तरफ बीजेडी ने अपनी सीटों के साथ-साथ वोट शेयर में भी बढ़ोतरी की है।

क्या बीजेपी, बीजेडी के गठबंधन का फायदा कांग्रेस पार्टी को मिला मिला?

1998 में जब दोनों पार्टियों ने पहली बार हाथ मिलाया, तो 41% वोट शेयर हासिल करने के बावजूद कांग्रेस को केवल 5 लोकसभा सीटें मिलीं। 1999 में, इसकी संख्या 36.9% वोटों के साथ 2 सीटों तक गिर गई। 2004 के लोकसभा इलेक्शन में केंद्र में पार्टी के सत्ता में आने के बावजूद कांग्रेस ने सीटों या वोटों के मामले में अपने प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं किया।

अब बात की जाए विधानसभा चुनाव की तो यहां भी कांग्रेस तब से उबर नहीं पाई है, जब बीजेडी-बीजेपी ने पहली बार 2000 में एक साथ चुनाव लड़ा था और उससे सत्ता छीन ली थी। 2000 में उसने 33.8% वोट शेयर के साथ 26 सीटें जीतीं। 2004 में, जब उसने वाम दलों के साथ गठबंधन में 128 सीटों पर चुनाव लड़ा, तो उसने 34.4% वोट शेयर के साथ 38 सीटें जीतीं। 2009 में बीजेडी और बीजेपी के पहली बार अलायंस टूटने के बाद कांग्रेस ने 29% वोट शेयर के साथ विधानसभा में 27 सीटें जीतीं। लोकसभा इलेक्शन में 32.7% वोट शेयर के साथ इसकी संख्या 6 तक पहुंच गई।