कर्नाटक कांग्रेस के नेता सिद्धरमैया एक ऐसा नाम हैं जिन्हें कोई भी हल्के में नहीं लेता। वाकया 2013 का है। कांग्रेस बहुमत से जीती थी। सीएम बनाने को लेकर माथापच्ची चल रही थी। रेस में पूर्व सीएम एसएम कृष्णा, मल्लिकार्जुन खड़गे और डीके शिवकुमार जैसे नाम थे। लेकिन गुप्त मतदान हुआ तो सिद्धरमैया ने बाजी मारकर सीएम की कुर्सी पर कब्जा कर लिया। राजनीतिक हलकों में उनका ये कदम मास्टर स्ट्रोक माना गया। 76 साल के दिग्गज नेता फिर से चुनाव मैदान में हैं और अपनी लकी सीट वरुणा से ताल ठोक रहे हैं। यहां से वो दो बाद विधायक बने हैं। एक बार जीतने के बाद विधायक दल के नेता बने तो दूसरी बार जीते तो सीधे सीएम की कुर्सी तक जा पहुंचे। वरुणा सिद्धरमैया का पैतृक इलाका भी है।
कर्नाटक की 224 सीटों वाली विधानसभा के लिए के लिए मई 10 को मतदान हुए और आज यानि मई 13 को मतगणना जारी है।। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने वरुणा सीट से नामांकन दाखिल किया। उन्होंने कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव है। सिद्धारमैया के छोटे बेटे यतींद्र वरुणा से मौजूदा कांग्रेस विधायक हैं। भाजपा ने सिद्धारमैया का मुकाबला करने के लिए वरुणा से मंत्री वी सोमन्ना को मैदान में उतारा है। सिद्धरमैया ने आरोप लगाया कि भाजपा और जद (एस) के बीच गुप्त समझौता हो गया है। भाजपा ने यहां सोमन्ना को मैदान में उतारा है जो बेंगलुरू के निवासी हैं। जबकि जद (एस) ने दलित वोटों को बांटने के लिए टी. नरसीपुर के पूर्व विधायक भारती शंकर को अपना उम्मीदवार बनाया है। उनका कहना है कि वरुणा के लोग इस साजिश को समझेंगे।
भारतीय लोकदल के टिकट से पहली बार बने थे विधायक
उनका जन्म मैसूर जिले के टी. नरसीपुरा के पास वरुणा होबली में सिद्धारमनहुंडी नाम के गांव में हुआ था। दस साल की उम्र तक उनकी कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा नहीं हुई थी, लेकिन उन्होंने फिर एलएलबी भी किया। वह पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। वह कुरुबा गौड़ा समुदाय से हैं। उन्होंने पहली बार चामुंडेश्वरी निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और 1983 में 7वीं कर्नाटक विधान सभा में प्रवेश किया। यह सभी के लिए एक आश्चर्यजनक जीत थी। एक कृषक परिवार में जन्मे सिद्धरमैया का राजनेता बनना सभी को भौचक कर गया था।
2013 से मई 2018 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। फिलहाल वह कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य हैं। सिद्धारमैया कई वर्षों तक जनता परिवार के विभिन्न गुटों के सदस्य रहे। इससे पहले जनता दल (सेक्युलर) के नेता के रूप में वह दो अवसरों पर कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री थे।
जनता दल में गए तो डिप्टी सीएम बने, देवेगौड़ा से मतभेद के बाद कांग्रेस में आए
वह जनता दल के दिग्गज नेताओं में शामिल थे। 1994 के चुनावों में जीतकर वह देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार में वित्त मंत्री बने। 1996 में जेएच पटेल के मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन फिर उन्हें उपमुख्यमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया गया। 1999 को मंत्रिमंडल से भी हटा दिया गया। जनता दल में विभाजन के बाद, वह जनता दल (सेक्युलर) में शामिल हो गए। 2004 में जब कांग्रेस और जद (एस) ने गठबंधन सरकार बनाई तो उन्हें फिर से उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। 2005 में एचडी देवेगौड़ा के साथ मतभेद के बाद सिद्धारमैया को जद (एस) से निष्कासित कर दिया गया था। उसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए।
2022 में मनाया था 75वां जन्म दिन, 16 लाख लोगों ने की थी शिरकत
सिद्धारमैया ने अगस्त 2022 को दावणगेरे में अपना 75वां जन्मदिन मनाया और इसे सिद्दारमोत्सव कहा। इसमें सिद्धारमैया के 16 लाख से अधिक समर्थक मौजूद रहे थे। आठ बार विधायक रहे सिद्धारमैया इससे पहले वरुणा से दो बार जीते थे। 2008 में यहां से जीतने के बाद विपक्ष के नेता बने थे और फिर 2013 के विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री बने थे।
सिद्धारमैया ने 2018 के चुनाव में पड़ोसी चामुंडेश्वरी और बागलकोट जिले के बादामी से चुनाव लड़ा था। चामुंडेश्वरी में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन बादामी में जीत हासिल की थी। फिलहाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार से उनकी खासी अदावत है। सीएम बनने की रेस में उनकी राह में सबसे बड़ा कांटा शिवकुमार को ही माना जा रहा है। लेकिन सिद्धरमैया जिस तरह के नेता हैं उसमें वो आखिरी पल में तुरुप का कौन सा पत्ता निकाल फेंके, ये कोई भी नहीं कह सकता।
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