सुनील दत्त पांडेय

उत्तराखंड में इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के पांच दिग्गज नेताओं के परिवारों की इज्जत दांव पर लगी है। इनमें तीन पूर्व मुख्यमंत्री और दो पूर्व कैबिनेट मंत्री हैं जिनमें से चार परिवारों की चार महिलाएं चुनाव मैदान में हैं। दो परिवारों की दो बेटियों को पिछले विधानसभा चुनाव में अपने अपने पिता की हार का बदला लेने का मौका मिला है।

कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और उनकी बेटी अनुपमा, पूर्व कैबिनेट मंत्री कांग्रेस नेता यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य, पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता भुवनचंद्र खंडूरी की बेटी ऋतु खंडूरी, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा और पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की पुत्रवधू अनुकृति गुसाई किस्मत आजमा रही हैं।

हरीश रावत की बेटी अनुपमा और हरक सिंह रावत की पुत्रवधू अनुकृति पहली बार मैदान में उतरी हैं। विजय बहुगुणा, यशपाल आर्य के बेटे और भुवनचंद्र खंडूरी की बेटी दूसरी बार मैदान में हैं। ये तीनों 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर विधायक बने थे। सितारगंज विधानसभा सीट पर सितंबर 2012 में विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस के टिकट पर उपचुनाव लड़ा था और विधायक चुने गए थे सौरभ ने इस सीट को अपने पिता विजय बहुगुणा की राजनीतिक विरासत को संभाला है और अब फिर एक बार विजय बहुगुणा और उनके बेटे की राजनीतिक इज्जत दांव पर लगी है।

यशपाल आर्य बाजपुर और उनके बेटे संजीव आर्य नैनीताल विधानसभा सीट से इस बार भाजपा की बजाय कांग्रेस के टिकट पर उतरे हैं। नैनीताल विधानसभा सीट पर संजीव आर्य का मुकाबला पूर्व विधायक सरिता आर्य से है। सरिता आर्य पिछली बार कांग्रेस की उम्मीदवार थीं। वे संजीव आर्य के कांग्रेस में शामिल होने पर भाजपा में शामिल हो गर्इं। इस बार सरिता आर्य भाजपा और संजीव आर्य कांग्रेस के टिकट पर एक दूसरे के खिलाफ सामने खड़े हैं।

भुवनचंद्र खंडूरी की बेटी ऋतु खंडूरी को इस बार भाजपा ने यमकेश्वर के बजाय उन्हें कोटद्वार विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। भाजपा की पहली सूची में उनका नाम काट दिया गया था। भुवनचंद्र और महिला मोर्चा की अन्य महिला पदाधिकारियों द्वारा जोरदार विरोध के बाद ऋतु को कोटद्वार विधानसभा सीट से टिकट दिया। इस सीट पर उनके पिता भुवनचंद्र खंडूरी 2012 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस के पूर्व विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी से हार गए थे जिससे भाजपा और खंडूरी की खासी किरकिरी हुई थी। अब ऋतु का मुकाबला उनके पिता को चुनाव हराने वाले पूर्व विधायक कांग्रेस के उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह नेगी से होगा। ऋतु खंडूरी को अपने पिता की हार का हिसाब सुरेंद्र सिंह नेगी से चुकता करने का मौका मिला है।

कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत की बेटी अनुपमा हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं और वे भाजपा के उम्मीदवार कैबिनेट मंत्री स्वामी यतिश्वरानंद के खिलाफ उतरी हैं। स्वामी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में अनुपमा रावत के पिता हरीश रावत को मुख्यमंत्री रहते हुए इस सीट पर 12 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। अनुपमा को अपने पिता को हराने वाले भाजपा उम्मीदवार स्वामी से राजनीतिक हिसाब किताब चुकता करने का मौका मिला है। उत्तराखंड के 21 साल के राजनीतिक इतिहास में भुवनचंद्र खंडूरी और हरीश रावत ऐसे राजनेता हैं जो मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा चुनाव हार गए थे और हरीश रावत तो दो विधानसभा सीटों से एक साथ चुनाव हारे थे।

भाजपा से निकाले गए हरक सिंह रावत को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में नहीं उतारा है। उनकी जगह उनकी पुत्रवधू अनुकृति को पौड़ी गढ़वाल की लैंसडौन विधानसभा सीट से उतारा है। हरक सिंह की राजनीतिक इज्जत इस सीट पर दांव पर लगी है। 2002 और 2007 में हरक सिंह इस विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं। भले ही कांग्रेस ने हरक सिंह रावत को पार्टी में तो शामिल कर लिया परंतु उन्हें और उनकी पुत्रवधू दोनों में से किसी एक को टिकट देने की शर्त तय कर दी। राजनीतिक मजबूरी के कारण हरक सिंह रावत ने खुद चुनाव लड़ने की बजाय अपनी पुत्रवधू को चुनाव मैदान में उतारा है।

कांग्रेस की नेता प्रतिपक्ष रहीं इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित हृदयेश अपनी मां की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए हल्द्वानी विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे है। उनकी मां इंदिरा इस सीट से कांग्रेस की विधायक रही हंै और सुमित पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर भाजपा नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत की पत्नी चंद्रा पंत विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। दो साल पहले वे अपने पति के निधन के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में सहानुभूति लहर के कारण जीती थीं। अब उन्हें भाजपा ने फिर से इस सीट से ही उतारा है। इस तरह चंद्रा पंत को अपने पति की राजनीतिक विरासत को बचाना है।