इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवार तो जरूर नौजवान संदीप हैं, पर भाजपा यहां चुनाव बाबूजी की साख पर ही लड़ रही है। उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह को इलाके के लोग बाबूजी के नाम से ही जानते हैं। संदीप उन्हीं के पोते हैं। राजस्थान के राज्यपाल होने के कारण बाबूजी पौत्र का चुनाव प्रचार नहीं कर सकते, पर संदीप को वोट उनके नाम पर ही मिलने और अपनी जीत का पूरा भरोसा है। अतरौली की पहचान कल्याण सिंह ने ही सारे देश में कराई। वे 1967 में पहली बार जनसंघ के टिकट पर यहां से जीते थे। फिर 1969, 1974 व 1977 में भी जीत उन्हीं की हुई। 1977 में वे जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बने। तभी एक कद्दावर लोध नेता के रूप में उनकी पहचान कायम हुई। लेकिन 1980 में वे कांग्रेस के अनवार से हार गए तो हर कोई इस नतीजे पर हैरान हुआ था। हालांकि 1985, 1989, 1991, 1993, 1996 और 2002 के चुनाव में वे ही लगातार जीते। 1991 में उनकी अगुआई में भाजपा ने देश के सबसे बड़े सूबे में बहुमत हासिल कर अपनी सरकार बनाई। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और तभी से पिछड़े तबके के इस नेता का व्यक्तित्व और विराट हो गया। पिछड़े तबके से नाता होने के बावजूद उनकी लोकप्रियता भाजपा के अगड़ों में भी कम नहीं रही। वजह थी कि राम मंदिर आंदोलन में वे न केवल हिंदुत्व का चेहरा थे बल्कि 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़ने वाले कारसेवकों पर बल प्रयोग कराने से उन्होंने साफ इनकार कर दिया था। इस कारण सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपनी अवमानना का दोषी करार देते हुए एक दिन की कैद की सजा भी दी थी।

कल्याण सिंह को 1999 में जब भाजपा ने मुख्यमंत्री पद से हटाया तो वे आहत हुए। उसके बाद उन्होंने भाजपा छोड़ अपनी अलग राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई। 2002 में इसी पार्टी के टिकट पर अतरौली से विजयी हुए। हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले वे फिर भाजपा में आ गए। खुद बुलंदशहर से लोकसभा चुनाव जीते तो अतरौली सीट से इस्तीफा देना पड़ा। उपचुनाव में उनकी बहू प्रेमलता जीत गर्इं। इसके बाद 2007 में भी वे जीतीं, पर कल्याण सिंह की भाजपा नेतृत्व से दोबारा अनबन हुई तो फिर अपनी अलग पार्टी बना ली। 2009 का लोकसभा चुनाव सपा की मदद से एटा सीट से जीता क्योंकि बुलंदशहर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो चुकी थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में प्रेमलता सपा के वीरेश यादव से हार गर्इं क्योंकि भाजपा उम्मीदवार ने उनकी राह में रोड़ा अटका दिया। इस चुनाव के बाद मुलायम की सपा से पटरी नहीं बैठी तो वे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले फिर भाजपा में आ गए। मोदी की लहर में अपनी जगह एटा से बेटे राजवीर सिंह को चुनाव लड़वाया और जिताया।

जहां तक अतरौली का सवाल है, भाजपा ने कल्याण सिंह की मर्जी से इस बार उनके पोते संदीप को उतारा है। राजवीर सिंह के बेटे संदीप अभी 28 साल के हैं। ब्रिटेन के लीडस विश्वविद्यालय से जनसंपर्क में एमए किया है। राजनीति में बेशक नए हैं पर दादा की साख और सांसद पिता व दो बार इस सीट की नुमाइंदगी कर चुकीं मां के समर्थन के बूते अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं। कल्याण सिंह का गांव यों मढौली है पर अब परिवार अलीगढ़ शहर में ही रहता है। अतरौली सीट पर कल्याण की लोध बिरादरी के मतदाता ज्यादा हैं। अन्य पिछड़ी जातियों और अगड़ों का भी समर्थन मिल रहा है।कांग्रेस-सपा गठबंधन ने यहां पिछले विजेता वीरेश यादव को ही उतारा है। बसपा के इलियास चौधरी को दलित और मुसलमान मतदाताओं के सहारे जीत की आस है तो यादव भी अपने सजातीय मतों के साथ-साथ मुसलमान और ब्राह्मण मतों से आस लगाए हैं। रालोद के मनोज यादव उन्हें नुकसान पहुंचते दिख रहे हैं। हालांकि मनोज यादव को जाट वोट मिलने से कुछ नुकसान संदीप को भी हो सकता है। तीन लाख 82 हजार मतदाताओं वाले अतरौली क्षेत्र में मतदान 11 मार्च को पहले चरण में ही होगा। नतीजे 11 मार्च को आएंगे पर अतीत के हिसाब से और जातीय जोड़-तोड़ के नजरिए से कल्याण सिंह के इस दुर्ग को भेद पाना इस बार विरोधियों के लिए आसान नजर नहीं आ रहा।