अद्रिजा रॉयचौधरी और निशांत शेखर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 15 जिलों की 73 विधान सभा सीटों के लिए 11 फरवरी को मतदान होगा। चुनाव मैदान में 838 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाएंगे। प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन, बसपा और भाजपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। प्रदेश की सत्ता की बागडोर किसके हाथ लगेगी इसका फैसला करने में राज्य के मुस्लिम वोटरों की अहम भूमिका मानी जाती है। सूबे में करीब 19 प्रतिशत मुसलमान हैं।  साल 2013 में हिन्दू-मुस्लिम दंगा पीड़ित जिले मुजफ्फरनगर पर सबकी निगाहे हैं। माना जा रहा है कि पश्चिमी यूपी के मुस्लिम दंगों के कारण राज्य की अखिलेश यादव सरकार से नाराज हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने सीधे उन लोगों से बात की जो दंगों के पीड़ित रहे हैं।

मुजफ्फरनगर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित लुई गांव मुस्लिम-बहुल है। यहां रहने वाले मजदूर सलीम सेपी कहते हैं, “मेरे भतीजे को जाटों ने मार दिया।”  सेपी फुगाना गांव के रहने वाले हैं जो लुई से तीन किलोमीटर दूर स्थित है। फुगाना गांव साल 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगों में सर्वाधिक प्रभावित गांवों में था। सेपी जैसे बहुत सारे मुसलमानों ने अपना गांव छोड़कर यहां पनाह ली थी। सेपी किसे वोट देंगे? इस पर वो कहते हैं, “अखिलेश ने हमें पांच लाख रुपये दिए। अगर कोई पार्टी सत्ता में होती तो हमें ये क्षतिपूर्ति नहीं मिलती। हमें पैसा मिला इसलिए हम कुछ जमीन खरीद पाए और घर बना पाए। नहीं तो मेरी मां मर गयी होती, मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाती। अब कम से कम मेरे परिवार के सिर पर छत तो है।”

सेपी को पूरा भरोसा है कि उनके गांव के ज्यादातर लोग अखिलेश यादव को वोट देंगे। फुगाना से लुई आए असलम कहते हैं, “जिन्होंने हम उजड़े हुए को बसाया हम उन्हें ही वोट देंगे। हमारे जख्म पर मलहम लगायी। जो वो हमें 5 लाख रुपये नहीं देते तो क्या पता हम कहां धक्के खाते फिरते, हमारे बच्चे मर जाते। उन्होंने बसा तो दिया हमें।” सीएनएन-आईबीएन के लिए किए गए सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे में शामिल 45 प्रतिशत मुसलमानों ने माना था कि राज्य में हुए दंगों के लिए समाजवादी पार्टी को जिम्मेदार माना था। वहीं 13 प्रतिशत भाजपा को। जब 2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा को रिकॉर्ड 71 सीटों पर जीत मिली और सपा केवल पांच सीटों पर सिमट गयी तो इसके पीछे मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सत्ताधारी पार्टी के प्रति नाराजगी को भी एक वजह माना गया।

मुजफ्फनगर के कई मतदाताओँ ने कहा कि अखिलेश यादव उन्हें युवा होने के कारण पसंद हैं।

जिन मुस्लिम परिवारों को दंगा पीड़ित होने के नाते मुआवजा नहीं मिला वो भी अखिलेश यादव का समर्थन करते नजर आए। दंगा पीड़ितों के एक अन्य गांव शैखुल हिन्द नगर में रहने वाले मोहम्मद इस्लाम सपा नेता हैं। वो कहते हैं कि दंगों के दौरान उन्होने जो कपड़े पहने हैं बस उन्हीं में भागे थे। इस्लाम कहते हैं, “हमें तो मुआवजा नहीं मिला। बाकी जो दंगा पीड़ित हैं जिन्हें मुआवजा मिला उनकी सपोर्ट में हमें थोड़ी बहुत रियाद मिल गयी। हम भी अपना आराम से टुकड़ा खा रहे हैं।” अखिलेश का युवा होना भी उनकी लोकप्रियता का एक कारण है। इलाके में कई लोगों ने उनके युवा और “अच्छे स्वभाव” को अपनी पसंद की वजह बतायी।

दंगा पीड़ित जाट गांवों में अखिलेश यादव सरकार के प्रति नाराजगी साफ नजर आती है। दंगा पीड़ित जाटों का आरोप है कि सरकार ने उनके लड़कों और बुजुर्गों तक को झूठे मामलों में फंसा दिया है। जाटों का कहना है कि स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों और 60-70-8 साल के बूढों पर भी महिलाओं के संग दुर्व्यहार के मामले दर्ज किए गए हैं। इलाके के बड़े किसान धर्मवीर सिंह मानते हैं कि इलाकों में जाटों और मुसलमानों के बीच काफी तनाव है। सिंह कहते हैं, “इस बार का इलेक्शन हिन्दू-मुसलमान का है। टक्कर का इलेक्शन है ये।” यूपी में कुल 403 विधान सभा सीटों के लिए 11 फरवरी से आठ मार्च के बीच सात चरणों में मतदान होगा। नतीजे 11 मार्च को आएंगे।

वीडियो: देखें इंडियन एक्सप्रेस की मुजफ्फरनगर से ग्राउंट रिपोर्ट-