दीपक रस्तोगी

उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस गठबंधन के सामने असंतुष्टों की चुनौती गंभीर रूप लेती जा रही है। जमीनी स्तर पर सिर-फुटौव्वल से हो रहे नुकसान की भरपाई में दोनों दलों के आलाकमान ने फार्मूले तलाशने शुरू कर दिए हैं। कोशिश है कि गठबंधन के वोट न बंटें। इस तरह के विधानसभा इलाकों में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने विशेष टीमें भेजनी शुरू की हैं। एक तरफ ये टीमें मतदाताओं के बीच संपर्क अभियान चलाकर ‘दोस्ताना मुकाबले’ का प्रचार करेंगी। दूसरी ओर, कार्यकर्ताओं को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि इस मुकाबले में जो जीतता दिखे- उसके लिए ही काम किया जाए।
प्रथम चरण के मतदान के मद्देनजर कांग्रेस ने एक दर्जन जिलों में विधानसभावार टीमें भेजी हैं। कांग्रेस और सपा को मिलाकर छह सौ से ज्यादा टीमें जमीन पर उतारी गई हैं, जिन्हें दिल्ली और लखनऊ मुख्यालय से रवाना किया गया है। कांग्रेस के चार नेता- राजस्थान के पूर्व बाकी पेज 8 पर मुख्यमंत्री और कांग्रेस की उत्तर प्रदेश चुनाव संचालन समिति के प्रमुख अशोक गहलोत, गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दीपक बावरिया, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, राजाराम पाल और सपा के नेता सुरेंद्र मोहन अग्रवाल को इन टीमों की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश, वाराणसी, अमेठी और कानपुर संभाग से चुनौती ज्यादा आ रही है। दरअसल, अधिकांश सीटों पर दोनों दलों के स्थानीय नेता-कार्यकर्ताओं के बीच अरसे से चली आ रही एक-दूजे से विरोध की मानसिकता आड़े आ रही है। कई जगह कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की हिचक यह है कि जिस नेता को पिछली बार बाहुबली और गुंडा बताते हुए प्रचार किया था अब उसके लिए वोट कैसे मांगें। विधानसभा और जिलों से कांग्रेस आलाकमान और सपा नेतृत्व को पत्र भेजे जा रहे हैं। कांग्रेस ने फार्मूला दिया है कि दागदार छवि वाले शिवपाल सिंह यादव के कहे अनुसार काम कर रहे थे। पार्टी का नेतृत्व अब अखिलेश यादव के हाथ में है, इसलिए बाहुबली नेताओं को आगे बढ़ाने का सवाल नहीं। मुजफ्फरनगर, शामली, अलीगढ़, रामपुर, मेरठ आदि जिलों में इस तरह का असमंजस वोटों के गणित पर हावी दिखने लगा है। इसके मद्देनजर दोनों पार्टियों ने मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बागपत, अलीगढ़ आदि जिलों में टीमें भेजी हैं। ये टीमें अपनी-अपनी पार्टियों के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को समझाने की कोशिश कर रही हैं कि गठबंधन को लेकर हाईकमान के स्तर पर कोई असमंजस नहीं है। वे सभी गठबंधन के लिए काम करें।

‘दोस्ताना मुकाबले’ का उदाहरण रविवार को कानपुर में हुई रैली में देखा गया जहां कैंट व महाराजपुर की सीटों पर चारों उम्मीदवार मौजूद थे और अपने लिए वोट मांग रहे थे। कैंट सीट से सपा के टिकट पर हसन रूमी ने अपना नामांकन दाखिल किया था लेकिन बाद में यह सीट गठबंधन के नाते कांग्रेस के सुहैल अंसारी को मिल गई है। सुहैल ने रविवार को रैली के मंच से गठबंधन उम्मीदवार के तौर पर वोट भी मांगे जबकि सपा के रूमी यह कहते हुए मैदान में डटे हुए हैं पार्टी आला कमान से उन्हें नामांकन वापस लेने का कोई आदेश नहीं मिला है, इसलिए वे चुनाव लड़ेंगे।  यही हाल शहर की ग्रामीण सीट महाराजपुर का भी है जहां सपा ने पार्टी की पुरानी महिला नेता अरुणा तोमर को टिकट दिया था। उसके बाद कांग्रेस से गठबंधन हो गया और यह सीट कांग्रेस को चली गई और कांग्रेस ने यहां से अकबरपुर के पूर्व सांसद राजाराम पाल को टिकट दिया है। सपा ने जब अरुणा को नामांकन वापस लेने को कहा तो वे तबीयत खराब होने का बहाना बना कर अस्पताल में भर्ती हो गर्इं। रविवार को मंच पर अरुणा और राजाराम दोनों थे और दोनों ही महाराजपुर सीट से अपने लिए वोट मांग रहे थे। मंच से सपा मुखिया अखिलेश ने कहा कि हम यह मामला आपस में संभाल लेंगे। अरुणा का कहना है कि उनसे पार्टी ने चुनाव लड़ने को कहा है, इसलिए वह मैदान में हैं। ‘दोस्ताना मुकाबले’ की यही स्थिति कानपुर की आर्यनगर, भोगनीपुर और गोविंदनगर और बाराबंकी की जैदपुर सीट पर भी है।

अमेठी सीट से अमिता सिंह की उम्मीदवारी को लेकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की चुनाव प्रचार कमेटी के प्रभारी संजय सिंह ने पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। उन्होंने सोमवार को अपनी मांग दोहराई और ‘जनसत्ता’ से कहा कि चुनाव चिन्ह के आबंटन के लिए उन्होंने आलाकमान को पत्र लिखा है। अमिता सिंह नौ फरवरी को नामांकन भरेंगी। अमेठी सीट से समाजवादी पार्टी की ओर से मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति नामांकन भर चुके हैं। इसी तरह वाराणसी की उत्तरी सीट पर स्थानीय कांग्रेसी सपा नेता समद अंसारी को कांग्रेस का टिकट दिए जाने पर बगावत पर आमादा हैं। उन पर तमाम आरोप लगाते हुए कांग्रेस आलाकमान को पत्र भेजा गया है। इस सीट से राबिया कलाम और जफरुल्लाह जफर ने दावेदारी पेश की है और निर्दलीय मैदान में उतरने की तैयारी की है।