पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हरियाणा और उत्तराखंड की सीमाओं से सटे और लकड़ी की नक्काशी और विख्यात इसलामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम, प्रसिद्ध शक्पिीठ मां शांकम्भरी देवी और गन्ने की खेती के लिए दुनिया भर में अपनी खास पहचान रखने वाले सहारनपुर जिले की सातों सीटों पर अबकी कुछ ऐसे उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं जो दलबदल कर आए हैं। सबसे खास बात यह है कि 2012 में दूसरे दलों से जीते चार में से तीन विधायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर भाजपा से चुनाव मैदान में उतरे हैं और कांग्रेस से उपचुनाव में जीते विधायक माविया अली मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बनी पुरानी दोस्ती के कारण सपा के टिकट पर भाग्य आजमा रहे हैं। तीन मौजूदा विधायक अपने पुराने दलों और पुरानी सीटों से लड़ रहे हैं।
खास बात यह है कि 2012 विधानसभा चुनाव में सहारनपुर नगर की एक मात्र सीट जीतने वाली भाजपा लोकसभा 2014 चुनावों में सात में से पांच विधानसभा सीटों पर सबसे आगे रही थी और सहारनपुर एवं सहारनपुर (आंशिक) कैराना दोनों लोकसभा सीटें आसानी से जीती थीं। जबकि दो विधानसभा सीटों बेहट एवं सहारनपुर देहात में कांग्रेस के पराजित लोकसभा उम्मीदवार सबसे आगे रहे थे। चुनाव इतिहास में नकुड़ इस जिले की अकेली विधानसभा सीट है, जिस पर भाजपा कभी नहीं जीत पाई। इस सीट पर भाजपा ने जिले के सबसे ताकतवर राजनीतिक और तीन बार से बसपा के टिकट पर विजयी होते आ रहे एवं मायावती सरकार में काबिना दर्जें के बेसिक शिक्षा मंत्री रहे डा. धर्म सिंह सैनी को अपना उम्मीदवार बनाया है। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में इमरान मसूद (कांग्रेस) को कड़े मुकाबले में 4564 वोटों के अंतर से हराया था। इस बार भी उनका मुकाबला इमरान मसूद से है। जिन्हें अबकी सपा का समर्थन भी हांसिल है। यह अलग बात है कि सपा की इस सीट से घोषित दो उम्मीदवार पूर्व सांसद तब्बसुम बेगम एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य चौ. इरशाद टिकट कटने से खफा है। इसका नुकसान इमरान मसूद को हो सकता है। बसपा ने यहां से पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अनिता चौधरी के पति चौ. नवीन ंिसंह को उम्मीदवार बनाया है।
देखना है कि मोदी के आकर्षण में भाजपा को अपनाने वाले धर्म सिंह सैनी भाजपा को सीट दिलाकर रेकार्ड बना पाते हैं या नहीं। भाजपा के टिकट पर बसपा के जो दूसरे विधायक बेहट सीट से चुनाव में कूदे हैं वह है महावीर राणा। वह बसपा के टिकट पर पिछले चुनाव में इमरान मसूद समर्थक कांग्रेस उम्मीदवार नरेश सैनी को बड़ी मुश्किल से 514 वोटों से ही हरा पाए थे। इस बार भी इमरान मसूद ने उन्हीं नरेश सैनी पर दांव लगाया है। अबकी फर्क यह है कि सैनी को सपा का समर्थन भी प्राप्त है। भाजपा इस सीट पर चुनावी इतिहास में केवल एक बार 1993 में ही जीत दर्ज कर सकी थी। भाजपा उम्मीदवार महावीर राणा के भाई इसी सीट से दो बार विधायक रह चुके है।
दल बदलकर भाजपा से गंगोह सीट पर उतरे प्रदीप चौधरी कांग्रेस के टिकट पर पिछला चुनाव जीते थे। अबकी वह मोदी से प्रभावित होकर भाजपा उम्मीदवार बने हैं। उनका मुकाबला सपा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार एवं पालिकाध्यक्ष नोमान मसूद से है। वहां तीन लाख 54 हजार 961 वोट हैं। चौथे दलबदलू विधायक माविया अली देवबंद सीट पर सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में कूदे हैं। इस सीट से माविया अली फरवरी 2016 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस टिकट पर विधायक चुने गए थे। 2012 के चुनाव में यहां से सप के राजेंद्र राणा 66 हजार 682 वोट लेकर जीते थे। इस बार माविया को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है। जो तीन मौजूदा विधायक अपनी पूर्व पाटिर्यों और सीटों से ही लड़ रहे हैं, उनमें रविंद्र मोल्हू बसपा (रामपुर मनिहारान), जगपाल सिंह बसपा (सहारनपुर देहात) और राजीव गुंबर भाजपा (सहारनपुर नगर) शामिल हैं। दो लाख 96 हजार 988 मतदाताओं वाली रामपुर-मनिहारान सीट से बसपा के रविंद्र मोल्हू 2007 एवं 2012 में आराम से चुने गए थे। इस सीट पर करीब 94 हजार दलित मतदाता है। उनका मुकाबला भाजपा के नए उम्मीदवार देवेंद्र निम और सपा समर्थित कांग्रेस प्रत्याशी विश्व दयाल से होगा। जो पिछला चुनाव सपा से लड़े थे। उन्हें 47492 वोट मिले थे। तब कांग्रेस उम्मीदवार विनोद तेजयान की 50 हजार 668 वोट मिले थे। विनोद तेजयान भाजपा में चले गए और टिकट नहीं मिलने से चुनाव मैदान से बाहर हैं।
भाजपा की उम्मीद लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के विजयी सांसद राघव लखनपाल शर्मा को रामपुर मनिहारान सीट के तहत सबसे ज्यादा 86645 मतों का मिलना है। वर्तमान भाजपा विधायक राजीव गुंबर जो 2014 में विधायक राघव लखनपाल शर्मा के सांसद बनने के बाद हुई खाली सीट के 2015 में हुए उप चुनाव में सपा के संजय गर्ग को पराजित कर विधायक चुने गए थे, इस बार भी भाजपा उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस समर्थित संजय गर्ग से होगा। इस सीट पर तीन लाख 92 हजार 782 वोट हैं। उप चुनाव में संजय गर्ग ने 82 हजार वोट लिए थे। वह दो बार विधायक चुने जा चुके हैं और मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल में लोक निर्माण एवं व्यापार कर राज्यमंत्री रह चुके हैं। उन्हें बसपा उम्मीदवार मुकेश दीक्षित के ब्राह्राण होने का लाभ भी मिल सकता है। जाहिर है इस सीट पर संजय गर्ग सहज स्थिति में हैं। भाजपा की यह परंपरागत सीट अबकी सपा के खाते में भी जा सकती है।

