सुरेंद्र किशोर
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के दौरान बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में हमलावर नहीं हो रहे हैं। उनकी शैली थोड़ी बदली लग रही है। चुनाव सभाओं की संख्या भी इस बार अपेक्षाकृत कम है। उन्होंने वायदों की झड़ी भी नहीं लगाई है। याद रहे कि हमलावर होने का बिहार में उन्हें नुकसान भी हुआ था। संभवतः उन्होंने उससे शिक्षा ग्रहण की है। उनका डी.एन.ए. वाला बयान बिहार में उल्टा पड़ा था। उत्तर प्रदेश के चुनाव-प्रचार की अपेक्षा संसद में प्रधान मंत्री मोदी का भाषण अधिक हमलावर रहा। इसे ठीक ही माना जा रहा है कि बिहार जैसी गलतियां उन्होंने उत्तर प्रदेश में नहीं की। उत्तर प्रदेश के ‘स्कैम’ वाले उनके भाषण की जरूर चर्चा हुई है पर आखिर उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार में ऐसी ढिलाई क्यों ? क्या उत्तर प्रदेश से प्रधान मंत्री को कोई खास उम्मीद नहीं है ? या फिर आर.एस.एस.के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य के आरक्षण संबंधित बयान से मोदी जी कुछ अधिक ही निरुत्साहित हो गये हैं ?
वीडियो: 25 जुलाई 2015 को बिहार के मुजफ्फरपुर में जनसभा को संबोधित करते पीएम नरेंद्र मोदी
वैद्य ने हाल में यह कह दिया था कि आरक्षण पर फिर से विचार की जरूरत है। क्या ऐसा बयान जानबूझकर भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए दिया गया था ? इस तरह के सवाल राजनीतिक हलकों में तैर रहे हैं। बिहार विधान सभा चुनाव से ठीक पहले भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ऐसा ही बयान देकर एनडीए की लुटिया डूबो दी थी। भाजपा सांसद हुकुमदेव नारायण यादव और डा. सी.पी. ठाकुर सहित बिहार के कई राजग नेताओं ने तब सार्वजनिक तौर पर कहा था कि बिहार विधान सभा के चुनाव में मोहन भागवत के बयान से राजग को नुकसान हुआ। इस कटु अनुभव के बावजूद मनमोहन वैद्य ने उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले आरक्षण पर बयान क्यों दिया? क्या संघ नरेंद्र मोदी को राजनीतिक रूप से मजबूत होने देना नहीं चाहता? क्या इस बात को लेकर ही प्रधान मंत्री निरूत्साहित हो गये हैं ? क्या इसी का असर उनकी भाषण शैली पर है ?
वीडियो: 08 फरवरी 2017 को गाजियाबाद में चुनावी सभा को संबोधित करते पीएम नरेंद्र मोदी
बिहार के लोगों को याद है कि 2014 के लोक सभा और 2015 के बिहार विधान सभा के चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने किस तरह अपने भाषणों में अति उत्साह में गलतियां भी कीं और उनकी जुबान फिसली। 2015 की जुलाई में नरेंद्र मोदी ने मुजफ्फर पुर की अपनी सभा में कह दिया था कि नीतीश कुमार के डी.एन.ए. में ही कुछ गड़बड़ी है। संभवतः मोदी का आशय नीतीश के राजनीतिक डीएनए से रहा होगा। पर वे राजनीतिक शब्द का इस्तेमाल करना भूल गए। पर जदयू ने उसे व्यक्तिगत डीएनए के रूप प्रचारित कर दिया। इससे थोड़ी भावना भी उभरी। राजग को उसका नुकसान हुआ।
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लोक सभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के तक्षशिला वाले भाषण का बड़ा उपहास किया गया। उस लायक था भी। एक बार संसद में शरद यादव ने भी चंद्रगुप्त के काल को स्वर्ण काल कह दिया था। नेताओं के ऐसे ‘इतिहास ज्ञान’ की कुछ अधिक ही हंसी उड़ाई जाती है। 2013 के अक्तूबर में नरेंद्र मोदी ने पटना की सभा में तक्षशिला को बिहार का बता दिया। दरअसल, विक्रमशिला बिहार में है। तक्षशिला तो अब पाकिस्तान में है। मिलते-जुलते नाम के कारण ऐसी गलतफहमी हो जाती है। हालांकि, प्रधानमंत्री जैसे बड़े नेता से लोग ऐसी असावधानी की उम्मीद नहीं करते। अब कोई प्रधान मंत्री स्वतंत्रता दिवस को गणतंत्र दिवस बता दे तो हंसी तो उड़ेगी ही।
