बीते कई सालों से सभी राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारी में जुटे थे। अब चुनाव जारी हैं और कुछ ही चरणों का मतदान बाकी है फिर 10 मार्च को चुनाव परिणामों का इंतजार खत्म होगा। इससे पहली भी कई चुनाव हुए, सरकारें बदली लेकिन इन चुनावों में दोस्त भी प्रतिद्वंदी बन गए और सीएम योगी स्वयं बात का दावा करते रहे हैं कि उन्होंने बाहुबलियों को काबू में किया है।
इन सबके बीच यूपी में एक सीट है जो बीते 6 विधानसभा चुनावों में सत्ता के उथल-पुथल से अछूती रही तो वह कुंडा है। अब भले ही मगरमच्छ वाले तालाब की बात किवदंती मात्र है लेकिन अगर कुंडा का राजा कोई है तो वह रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया हैं। हालांकि, इस बार के चुनावों में थोड़ा सा ट्विस्ट है। लगभग 15 वर्षों के बाद समाजवादी पार्टी ने 6 बार के विधायक रहे राजा भैया के खिलाफ उन्हीं के पूर्व करीबी सहयोगी रहे गुलशन यादव को मैदान में उतारा है।
बीते गुरुवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रतापगढ़ में गुलशन यादव के प्रचार में खुद आए और कहा कि लोग इस बार बदलाव के लिए मतदान करेंगे। वहीं, विधानसभा चुनावों के ऐलान से ठीक पहले प्रतापगढ़ पहुंचे अखिलेश यादव से जब राजा भैया को लेकर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने “कौन राजा भैया?” कहकर सभी को चौंका दिया था। हालांकि, राजा भैया अभी भी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के लिए अपार सम्मान होने की बात करते हैं।
ज्ञात हो कि लोकसभा चुनाव 2019 में अखिलेश ने बसपा के साथ गठबंधन किया था, जिसके बाद राजा भैया और सपा के बीच खटास पैदा होने की बात सामने आई थी। बता दें कि, मायावती सरकार ने 2003 और फिर 2007-12 में राजा भैया के ऊपर कड़े एक्शन लिए थे। इनमें कई आपराधिक मुकदमों सहित पोटा का भी मामला दर्ज किया गया था।
राजा भैया ने 6 बार निर्दलीय रहते हुए जीत हासिल की, इस में उन्हें करीब 60 फीसदी वोट मिले थे। साल 2002 में यह आंकड़ा बढ़कर 82.13 फीसदी तक चला गया था। राजा भैया जिस ठाकुर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, कुंडा में 3.51 लाख मतदाताओं में उनकी संख्या केवल 18 हजार है। इस सीट पर सबसे प्रमुख मतदाता यादव, पटेल और अनुसूचित जाति से हैं। पुलिस के अनुसार, उनके खिलाफ लगभग 40 आपराधिक मामले हैं, हालांकि अपने हलफनामे में, राजा भैया ने घोषित किया है कि केवल एक ही मामला लंबित है।
विधायक के रूप में राजा भैया ने वैकल्पिक तौर पर भाजपा व सपा दोनों का समर्थन किया और निर्दलीय रहते हुए सूबे की भाजपा व सपा सरकारों में मंत्री भी रहे। इस बार राजा भैया जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिसे उन्होंने नवंबर 2018 में बनाया था। अब बात उनके सहयोगी से प्रतिद्वंद्वी बने गुलशन यादव की जो हिस्ट्रीशीटर रहे हैं, उनके खिलाफ भी 21 मामले दर्ज हैं; जिनमें से एक हाल ही में राजा भैया के खिलाफ टिप्पणियों को लेकर दर्ज किया गया है।
चुनावों की घोषणा के बाद से लगातार गुलशन दावा करते रहे हैं कि, उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही हैं। जिसके चलते प्रतापगढ़ पुलिस ने सुरक्षा के लिए छह पुलिसकर्मियों को तैनात किया है। हालांकि, साल 2013 में डीएसपी जिया-उल-हक की हत्या मामले में राजा भैया और गुलशन दोनों सह-आरोपी रहे। उस वक्त अखिलेश सरकार के तत्कालीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति रहे राजा भैया ने झूठे मामले में फंसाने का दावा कर इस्तीफा दे दिया था।
हालांकि, जुलाई 2013 में, सीबीआई ने मामले को बंद कर दिया था और राजा भैया, गुलशन सहित अन्य को बरी कर दिया था। फिर राजा भैया को दोबारा मंत्री बनाया गया था। वहीं, बीते साल ही जिया-उल-हक की पत्नी परवीन आजाद की याचिका पर अदालत ने आगे की जांच के आदेश दिए, जो अभी भी लंबित है। दिलचस्प बात यह है कि, उस समय, भाजपा की लाइन से अलग जाकर गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने राजा भैया का समर्थन किया था, यहां तक कि आंदोलन करने तक की चेतावनी दी थी।
वहीं, कुंडा से बीजेपी उम्मीदवार सिंधुजा मिश्रा सेनानी कहती हैं कि रघुराज प्रताप सिंह और गुलशन की ‘आपराधिक’ गतिविधियों के बारे में सभी जानते हैं। गुलशन उन्हीं (सिंह) की उपज हैं। जहां एक वर्चस्व पाने के लिए लड़ रहा है तो दूसरा अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए चुनाव लड़ रहा है। वे दोनों चुनाव जनता के लिए नहीं लड़ रहे हैं। बता दें कि, हाई कोर्ट में वकील सिंधुजा मिश्रा सेनानी ने 2012 में भी प्रतापगढ़ के एक निर्वाचन क्षेत्र से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह हार गई थी।
हालांकि, क्षेत्र के मतदाताओं के बीच भी कुछ लोगों को इस पर संदेह है लेकिन हर बार के चुनावों में राजा भैया ने बड़े मार्जिन से जीत दर्ज की है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2017 में उन्हें 1,36,597 वोट मिले थे जबकि रनरअप रहे भाजपा के उम्मीदवार को 32950 मत मिले थे। राजा भैया ने 1,03,647 वोटों के मार्जिन से जीत का झंडा बुलंद किया था।