सुरेंद्र सिंघल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद गठबंधन को चुनाव में जीत की गारंटी माना जा रहा था। लेकिन सपा नेतृत्व ने रालोद के समक्ष समर्पण कर 38 सीटें उसके लिए छोड़ी हैं, इससे सपा के ताकतवर और जिताऊ उम्मीदवार सकते में हैं। उनमें से कई ऐसे हैं जिन्हें खुद अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ाने का भरोसा दिया हुआ था। लेकिन न जाने क्या हुआ कि अखिलेश ने एक तरह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गन्ना पट्टी रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के हवाले कर दी।
रालोद की दिक्कत यह है कि उसके पास जो कुछ राजनीतिक जमा-पूंजी है वह कृषि बिलों के खिलाफ जाटों में उपजे असंतोष और नाराजगी के रूप में मौजूद है। लेकिन रालोद के पास न तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना खुद का संगठनात्मक ढांचा है और न ही उनके पास उपयुक्त और जिताऊ उम्मीदवार हैं। अखिलेश के साथ आने से जयंत चौधरी और रालोद की साख और विश्वसनीयता बढ़ी है। उपयुक्त उम्मीदवारों के अभाव में रालोद के पास कमजोर टिकार्थियों का जमावड़ा लग गया है। यदि उनको उम्मीदवार बना दिया गया तो नतीजे अनुकूल नहीं रहेंगे।
सहारनपुर में रालोद का कोई प्रभाव नहीं है। देवबंद और रामपुर मनिहारान सुरक्षित सीट रालोद को दी गई है। देवबंद में तो रालोद को पूर्व विधायक ठाकुर वीरेंद्र सिंह के रूप में उपयुक्त उम्मीदवार मिला है लेकिन रामपुर मनिहारान के टिकट को लेकर जुआ दौड़ लगी है। शामली जिले में भी रालोद को शामली और थानाभवन दो सीटें दी गई हैं।
प्रोफेसर सुधीर पंवार के सपा से चुनाव लड़ने की स्थिति से गन्ना मंत्री सुरेश राणा परेशानी में पड़ गए थे और भाजपा नेतृत्व उन्हें देवबंद या चरथावल से लड़ाने की रणनीति पर विचार कर रहा था। लेकिन सीट रालोद के खाते में जाने से और राव वारीश के चुनाव लड़ने की संभावना से सुरेश राणा को राहत मिली है। अब पार्टी ने सुरेश राणा को वहीं से चुनाव लड़ाने का निर्णय ले लिया है। मुजफ्फरनगर जिले में छह विधानसभा सीटें हैं। चरथावल को छोड़कर अन्य पांच सीटों पर रालोद अपने उम्मीदवार उतारेगा।
मुजफ्फरनगर शहर खतौली सीटों पर सपा के नेता चुनाव लड़ सकते हैं। मुजफ्फरनगर की शहरी सीट पर पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप के बेटे गौरव स्वरूप और खतौली से पूर्व मंत्री राजपाल सैनी रालोद टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। मीरापुर सीट पर अखिलेश यादव के घोषित उम्मीदवार चंदन सिंह चौहान हैं। लेकिन पिछले दिनों सपा में शामिल हुए पूर्व बसपा सांसद कादिर राणा को जयंत चौधरी द्वारा मीरापुर से मैदान में उतारने की चर्चा हो रही हैं। कादिर राणा मुजफ्फरनगर के 2013 के जाट-मुसलिम दंगों के मुख्य किरदारों में से एक हैं। उनके खिलाफ अदालतों में मुकदमे विचाराधीन हैं। भाजपा उनके भाषणों की कैसेट चुनाव में इस्तेमाल कर सकती है। जो जाट-मुसलिम गठजोड़ अभी बना दिख रहा है चुनावों में वह तारतार हो सकता है।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि दिग्गज नेता चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद जयंत चौधरी का यह पहला बड़ा चुनाव होगा। राजनीतिक समीक्षकों के मुताबिक पश्चिम के मुसलमानों का लगाव सपा की साइकिल के प्रति और विश्वास अखिलेश यादव के नेतृत्व में है। कृषि कानूनों की वापसी के बाद से पश्चिम के जाटों में भाजपा को लेकर गुस्सा कुछ हद तक खत्म हो गया है। जो भी नाराजगी बनीू हुई है उसे भाजपा नेता दूर करने में लगे हुए हैं।
जयंत चौधरी के नेतृत्व को लेकर राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में जयंत चौधरी और अजीत सिंह खुद भी जाटों का वोट नहीं ले पाए थे। अब वे जाट मतों को समाजवादी पार्टी अथवा मुसलिम उम्मीदवारों को ट्रांसफर कराने में सफल हो जाएंगे, इसमें संदेह है। पश्चिम के सपा की टिकट से वंचित प्रमुख दावेदार अखिलेश यादव से मिलकर अपनी मंशा उनके सामने रखने की योजना बना रहे हैं। यह देखना निर्णायक होगा कि अखिलेश यादव बिगड़ती बात कैसे और किस हद तक संभाल पाते हैं।