उत्तर प्रदेश का पूर्वी इलाका सत्ता तक पहुंचने की चाभी साबित होता आया है। रविवार को पांचवें चरण की 61 सीटों पर हुए मतदान में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य समेत योगी सरकार के पांच मंत्रियों और जनसत्ता दल के प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह की तकदीर ईवीएम में कैद हो चुकी है। जबकि दो चरणों की 111 सीटें इस वक्त सभी राजनीतिक दलों के लिए नाक का सवाल बन चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दो चरण शेष हैं। इनमें गोरखपुर सदर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव मैदान में हैं। इन दो चरणों में छठे चरण की 57 और सातवें और अंतिम चरण की 54 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है। यदि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इन 111 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 75, समाजवादी पार्टी को 13, बहुजन समाज पार्टी को 11, अपना दल एस को पांच, सुभासपा को चार, कांग्रेस को एक, निषाद पार्टी को एक और एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी को मिली थी।
वहीं पांचवें चरण की 61 सीटों की यदि बात करें तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों में से 47 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। जबकि 2012 के चुनाव में उसे इन सीटों में से सिर्फ सात सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2012 में इन सीटों में 41 जीतने वाली समाजवादी पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर सिमट गई थी। जबकि बहुजन समाज पार्टी को पांच और कांग्रेस, अपना दल को एक-एक सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।
पूर्वांचल को वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव तक समाजवादी पार्टी और उसके पहले बहुजन समाज पार्टी का गढ़ माना जाता था। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक समझ रखने वाले इस इलाके की जनता ने भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया और 2017 के विधानसभा चुनाव और उसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में भी पूर्वांचल की जनता भाजपा के पाले में ही खड़ी नजर आई।
भारतीय जनता पाटी इस बात को ले कर इत्मीनान में है कि उसने पांच सालों में उत्तर प्रदेश के लोगों को 43 लाख से अधिक प्रधानमंत्री आवास, 2.55 करोड़ रुपए की किसान सम्मान निधि, मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत डेढ़ लाख से अधिक आवास और एक करोड़ 67 लाख नि:शुल्क गैर कनेक्शन दिए हैं। उसे भरोसा है कि सरकारी योजनाओं का लाभ पाने वाले उसके पाले में ही खड़े होंगे। जबकि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अपनी सरकार के पांच साल के काम को जनता के बीच गिनाने में कोई संकोच नहीं कर रहे हैं।
इन 111 सीटों में राजपरिवार की साख भी दांव पर है। पडरौना राज परिवार कभी कांग्रेस में खासी दखल रखता था। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव के पहले आरपीएन सिंह भाजपाई हो गए। इस वजह से देखना दिलचस्प होगा कि उनका कितना लाभ भाजपा को मिलता है। उधर बांसी स्टेट के जय प्रताप सिंह योगी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उनकी साख भी इस बार दांव पर है।
वहीं सिसवा स्टेट 11 बार विधायकी जीत चुकी है। इस स्टेट के शिवेन्द्र सिंह 2017 का चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर हार चुके हैं। इस बार वे अपनी पार्टी को कितनी मदद पहुंचा पाएंगे? यह सवाल भी बड़ा है। वहीं मझौली राज स्टेट के पास भी चार बार विधायकी रह चुकी है। देवरिया का यह स्टेट अब सियासत से दूर तो है लेकिन उसकी दखल लोगों के बीच आज भी है।
बस्ती स्टेट के राजा ऐश्वर्य राज सिंह इस वक्त राष्टीय लोक दल के प्रवक्ता हैं। देखना दिलचस्प होगा कि वो समाजवादी पार्टी को कितना लाभ पहुंचा पाने में कामयाब हो पाते हैं। जबकि अठदमा स्टेट के पुष्कारादित्य सिंह आम आदमी पार्टी के टिकट पर रुधैली से मैदान में हैं। उत्तर प्रदेश में अब तक पांच चरणों में हुए चुनाव में सभी सियासी दल अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार का विधानसभा चुनाव किस तरह का नतीजा देता है।