यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अब बस एक महीना बाकी रह गया है। तमाम पार्टियां अपने-अपने समीकरण के हिसाब से जनसमर्थन जुटाते दिख रही है। ऐसे में यूपी में मुसलमान वोटरों पर सभी की नजरें टिकी हैं। क्योंकि यूपी की 403 सीटों में से 115 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक हैं।

पिछली बार यानि कि 2017 से पहले इस वोट बैंक का बीजेपी तोड़ नहीं निकाल पाई थी, यह वोट बैंक आजादी के बाद काफी समय तक कांग्रेस के पास रहा, बाद में काफी हद तक सपा के पास और कुछ बसपा के पास। लेकिन 2017 में बीजेपी ने इसे तोड़ दिया और 85 मुस्लिम निर्णायक सीटों पर उसने जीत हासिल कर ली।

क्या कहते हैं आकड़ें- बीजेपी ने 2017 में कैसे इस समीकरण को तोड़ा, उसके लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश सपा की ओर से कमान संभालने लगे थे। तब के चुनाव में सपा ने इन 115 सीटों में से 65 पर जीत हासिल की थी, दूसरे नंबर पर बीजेपी थी, जिसकी झोली में 22 सीट आए थे। इसके बाद बसपा और कांग्रेस। जानकार बताते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी मुस्लिम वोटों के एकजुट होने से रोक नहीं पाई थी, जिसके कारण सपा की सीटों का ग्राफ बढ़ा और वो सत्ता में पहुंच गई।

2017 में क्या हुआ- सपा के एमवाई समीकरण यानि कि मुस्लिम और यादव के गठजोड़ को तोड़े बिना बीजेपी यूपी में सत्ता हासिल नहीं कर सकती थी। इस चुनाव में बीजेपी जहां अपने हिन्दुत्व के चेहरे के कारण हिन्दू वोट बैंक को अपनी और खिंचने में कामयाब रही, वहीं मुस्लिम वोटों में भी सेंध लगता दिखा। उदाहरण के तौर पर अगर हम पश्चिमी यूपी को देखें, जहां बीजेपी को 2017 से पहले कोई खास बढ़त नहीं थी। 2017 में मुजफ्फनगर दंगे के बाद यहां के वोट बैंक का समीकरण पिछले चुनाव से बदल गया।

पहले जहां जाट राष्ट्रीय लोकदल के पक्ष में जाते थे, और मुस्लिम वोट सपा-बसपा में। वहीं इस दंगे के बाद सिर्फ दो समीकरण ही रह गए, पहला हिन्दू- दूसरा मुसलमान। हिन्दू वोट जिसके अंदर जाट भी थे और यादव भी, बीजेपी के पक्ष में पड़ा। जबकि मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव दिखा। यह वोट बैंक सपा, बसपा, कांग्रेस और लोकदल के साथ-साथ कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों में बंट गया। यही कारण रहा कि यहां से 2017 में सिर्फ तीन मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत मिली, जबकि 2012 में यहां से 11 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। यानि कि बीजेपी ने मुस्लिम बहुल सीटों पर भी सेंध लगा दिया था। हालांकि पिछली बार कहा गया था कि कुछ मुस्लिम वोट बैंक भी बीजेपी की तरफ खिसका था, जिसकी वजह से उसे काफी सीटों पर फायदा हुआ था।

इस बार के क्या हैं समीकरण- इस बार भी सभी पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक पर नजर गड़ाए बैठी है। इस बार के चुनाव में बसपा जहां बेमन से चुनाव लड़ती दिख रही है, वहीं सपा और कांग्रेस पूरी जोर-शोर से ताल ठोकती दिख रही है। सपा और कांग्रेस सिर्फ मैदान में रहते तो शायद मुस्लिम वोटों का उतना बिखराव नहीं होता, लेकिन इस बार मुस्लिम नेता के तौर पर अपने आप को दिखाने वाले एआईएमआईएम चीफ ओवैसी भी चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। ओवौसी साफ कर चुके हैं कि उनकी पार्टी 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जाहिर सी बात है ये 100 सीटें मुस्लिम बहुल ही रहेंगी। ओवैसी से सीधा-सीधा नुकसान सपा और कांग्रेस को होगा। क्योंकि मुस्लिम वोटों पर एक बड़ी सेंध लगती दिख रही है और इससे फिर एक बार समीकरण के हिसाब से बीजेपी को फायदा होगा। अगर मुस्लिम वोट बैंक में सेंध नहीं लगा और वो एकमुश्त होकर किसी पार्टी के साथ गया तो बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है।

जानकार बताते हैं कि जहां भी ओवैसी की पार्टी लड़ेगी, वहां ध्रुवीकरण हो सकता और इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा और नुकसान सपा को या कांग्रेस को। ओवैसी को कम आंकना सपा और कांग्रेस दोनों के लिए एक बड़ी भूल साबित हो सकती है। क्योंकि ओवैसी बिहार चुनाव में अपनी ताकत दिखा चुके हैं, जहां सीमांचल में अपने उम्मीदवार उतारकर उन्होंने ना कुछ सीटें जीतीं बल्कि महागठबंधन को भी सत्ता से दूर करने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।