Lok Sabha Election 2019: पश्चिम बंगाल में नतीजा पूर्व सर्वे के नतीजोें में भाजपा की भारी बढ़त से परेशान तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व अब संभावित नतीजों और उसकी वजहों के मंथन में जुट गया है। वैसे, मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने ऊपरी तौर पर भले इन नतीजों को खारिज कर दिया हो, भीतर ही भीतर वे चुनाव बाद की रणनीति बनाने में जुट गई हैं। पूर्वानुमानों के बाद बंगाल के राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि यह राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल के खिलाफ लहर है या फिर भाजपा के समर्थन में? 23 मई को नतीजा चाहे जो भी हो, नतीजा पूर्व सर्वे के आकलन ने बंगाल की राजनीति में एक हलचल जरूर पैदा कर दी है।
तमाम ऐसे सर्वे में भाजपा को बंगाल में 10 से 18 तक सीटें मिलने का दावा किया गया है। ज्यादातर ऐसे नतीजों में राज्य में वाममोर्चा का पत्ता साफ होने का दावा किया गया है। लेकिन तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने पहले ही कह चुकी हैं कि वे इसके नतीजों पर भरोसा नहीं करतीं। इस अफवाह के जरिए हजारों ईवीएम बदलने या उनमें घपला करने की योजना है। उन्होंने तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों से एकजुट, मजबूत और साहसिक होने और साथ मिल कर लड़ने की अपील की है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने सोमवार को बताया कि विभिन्न जिलों और संसदीय इलाकों से पार्टी की आंतरिक रिपोर्ट मुख्यालय में पहुंचने लगी हैं। उस नेता ने चैनलों पर दिखाए गए संभावित नतीजों को खारिज करते हुए कहा है कि ज्यादातर मामलों में यह पूर्वानुमान चुनावी नतीजों से मेल नहीं खाते। इसलिए पार्टी नेतृत्व इसे लेकर परेशान नहीं है। उसने कहा कि पार्टी नेतृत्व के पास विभिन्न जिलों से आंतरिक रिपोर्ट पहुंच गई हैं। हर जिले और हर संसदीय क्षेत्र से अलग-अलग रिपोर्ट आ रही हैं। उनके आधार पर चर्चा की जाएगी।
तृणमूल कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि पार्टी नेतृत्व देश के विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ भी बातचीत कर रहा है। पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज्यादातर नतीजा पूर्व सर्वे निराधार और भाजपा के पक्ष में हैं। इसलिए पार्टी इनके आकलन से चिंतित नहीं है। चुनाव-बाद के परिदृश्य पर विपक्षी दलों के साथ भी बातचीत शुरू हो गई है। इसी के तहत आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी सोमवार को यहां ममता बनर्जी से मुलाकात कर चुनाव बाद के संभावित परिदृश्य पर चर्चा की।
तृणमूल के वरिष्ठ नेता निजी बातचीत में भले जीत के दावे करें, जिला स्तर के कई नेताओं का मानना है कि पार्टी के खिलाफ भीतर ही भीतर लहर थी जिसे भांपने में शीर्ष नेतृत्व नाकाम रहा। पश्चिम मेदिनीपुर जिले के एक तृणमूल नेता ने कहा कि नतीजा पूर्व सर्वे के नतीजे कहां तक सही साबित होंगे, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। लेकिन जिलों में तृणमूल के खिलाफ लहर तो जरूर थी। अब सबकुछ 23 मई को ही साफ होगा।
राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि बंगाल में भाजपा कभी भी एक मजबूत ताकत नहीं थी। लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान उसने माकपा के वोट बैंक पर तो कब्जा किया ही है, उसके काडरों को भी अपनने पाले में कर लिया। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को महज छह फीसद वोट मिले थे जो वर्ष 2014 के चुनावों में तीन गुना बढ़ कर लगभग 17 फीसदी तक पहुंच गए।
एक राजनीतिक विश्लेषक हरिपद नाथ कहते हैं कि अबकी लोकसभा चुनावों में पहली बार बंगाल में धार्मिक आधार पर वोटरों का जबरदस्त धुव्रीकरण हुआ है। तृणमूल कांग्रेस ने जहां 30 फीसद मुसलमानों पर भरोसा जताया है वहीं भाजपा ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक और नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) के जरिए सियासी फायदा उठाने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि अगर नतीजा पूर्व सर्वे के अनुमान सही साबित हुए तो ममता की कथित तुष्टीकरण नीति भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार होगी। भाजपा नेताओं ने अपने चुनाव अभियान के दौरान ममता की इस नीति को भी एक प्रमुख मुद्दा बनाया था।

