बिहार चुनाव में इस बार एनडीए और महागठबंधन ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए नए फॉर्मूले अपनाने से भी नहीं चूक रहे हैं। खासकर अगर बात की जाए, भाजपा और राजद की। जहां भाजपा इस बार चुनाव में लगभग जदयू के बराबर की सीटें लेकर मैदान में उतरी है, वहीं राजद भी इस बार अपने पुराने समीकरणों को भुलाकर 15 साल बाद कमजोर पड़ती नीतीश सरकार से सत्ता हथियाने की योजना बना रही है। यह समीकरण हैं- यादव-मुस्लिम वोटरबेस, जिसे अब तेजस्वी आगे ले जाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने चुनाव में भाजपा छोड़कर आए नेताओं और ब्राह्मण चेहरों को भी टिकट दिए हैं।
राजद की तरफ से इस बार मुख्यमंत्री पद के दावेदार लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव हैं। वे लालू ही थे, जिन्होंने राजद को 1990 के दौर में अपनी राजनीति और विचारधारा दी और बिहार जैसे जातीय भेदभाव वाले राज्य में उच्च जातियों के वर्चस्व को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई। इसके लिए उन्होंने सामाजिक न्याय के फॉर्मूले के तहत लंबे समय तक पिछड़ी जातियों को एकजुट रखा। पर समय के साथ उनके सामाजिक न्याय यादवों के वर्चस्व तक ही सीमित रह गया। राजनीतिक तौर पर भी राजद सिर्फ मुस्लिमों-यादवों की पार्टी रह गई।
हालांकि, बिहार चुनाव 2020 में तेजस्वी यादव पार्टी की इस छवि को बदलने की पूरी कोशिश करने में जुटी है। इसके लिए टीम तेजस्वी मुस्लिम-यादव वोटर बेस को अपनी पकड़ में तो रखना चाहती है, मगर वह लगातार इस आधार की सीमा से भी बाहर निकलने की कोशिश में है। राजद के हालिया फैसले भी इसी ओर इशारा करते हैं कि पार्टी अब खुद को M-Y (मुस्लिम-यादव) पार्टी न रह कर A टू Z पार्टी की तरह प्रोजेक्ट करना चाह रही है।
राजद की ओर से इस चुनाव में किया गया टिकट बंटवारा भी इसी ओर इशारा करता है। पार्टी ने इस बार स्थानीय स्तर पर जातीय समीकरणों और प्रत्याशियों की जीत की क्षमता को भी महत्व दिया है। इसका मतलब है कि राजद ने इस बार ऊंची जातियों और गैर-यादव पिछड़ी जातियों को भी टिकट बांटे हैं, जो कि पहले ज्यादा देखने को नहीं मिला है। साथ ही राजद ने इस बार उन उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा है, जो हालिया समय में राजद में शामिल हुए, फिर चाहे वो उनकी वैचारिक प्रतिद्वंदी भाजपा के ही नेता क्यों न हो।
बता दें कि राजद की ज्यादातर राजनीति सामाजिक न्याय के साथ ‘भाजपा के खिलाफ’ एकजुटता दिखा कर भी चली हैष इसकी शुरुआत 1990 में तभी हो गई थी, जब लालू ने समस्तीपुर में लालकृष्ण अडवाणी की अयोध्या तक की रथयात्रा पर ब्रेक लगाया था और उन्हें गिरफ्तार करा दिया था।
राजद ने जातीय समीकरणों को बदलने की कोशिश कैसे की है, इसका उदाहरण दरभंगा के तीन प्रत्याशियों से मिलता है। एक हैं दरभंगा टाउन से उम्मीदवार अमरनाथ गामी, जिनकी मूल राजनीति भाजपा से जुड़ी रही है। पिछली बार भाजपा के टिकट पर दरभंगा की हयाघट सीट जीतने वाले अमरनाथ को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया। इसके बाद ही वे राजद में शामिल हुए।
– अमरनाथ के मुताबिक, उनका परिवार 40 साल तक संघ-भाजपा से जुड़ा रहा। गामी का दावा है कि इसी वजह से जिले के भाजपा समर्थक उनके साथ हैं और मौजूदा भाजपा प्रत्याशी के पास सिर्फ पार्टी का चुनाव चिह्न ही है। गामी कहते हैं कि राजद ने इस बार भाजपा के पदचिह्नों पर चलते हुए यह लड़ाई आगे बढ़ाई है। मेरे वोटर बनिया समुदाय से हैं, जो कि इस बार राजद को वोट देंगे। अगर इसमें राजद का मुस्लिम-यादव वोटर बेस जोड़ दें, तो यह जीत का समीकरण है तो आखिर कैसे राजद को A टू Z पार्टी के तौर पर न देखा जाए।
– इसी कड़ी में दूसरा नाम है अलीनगर से राजद प्रत्याशी विनोद मिश्र का। 30 साल तक भाजपा में रहे मिश्र, दो बार पार्टी की तरफ से जिला उपाध्यक्ष रह चुके हैं। हालांकि, इस बार टिकट न मिलने के बाद वे राजद में शामिल हो गए। मिश्र का कहना है कि भाजपा ने उन्हें टिकट न देकर मैथिल ब्राह्मणों के समर्थन को बेकार मान लिया है। यह पहली बार है जब राजद ने इस सीट से किसी ब्राह्मण को टिकट दिया है।
अलीनगर इससे पहले राजद के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी का गढ़ माना जाता था। हालांकि, उन्हें इस बार दूसरी सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। मिश्र के मुताबिक, राजद ने इस कदम से एक तीर से दो शिकार किए हैं। पहला कि सिद्दीकी को दूसरी सीट मिलने से यहां उनके प्रति उपजी विरोध की भावना कम हुई है और दूसरी तरफ उनकी उम्मीदवारी ब्राह्मणों का वोट भी लाएगी। लालू-राजद के ब्राह्मण-विरोधी स्टैंड पर मिश्र कहते हैं कि पहले जो हुआ वह अलग बात थी। लेकिन अगर संविधान में संशोधन हो सकता है, तो राजद में क्यों नहीं?
– तीसरे नेता हैं बहादुरपुर से राजद प्रत्याशी रमेश कुमार चौधरी। गामी और मिश्र की तरह ही चौधरी भी भाजपा से ही राजद में आए हैं। उन्होंने कहा, “मैं पांच साल भाजपा में था और छह साल लोजपा में। लोजपा ने इस बार टिकट नहीं दिया, क्योंकि वे भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारना चाहते थे, जबकि मैंने विधानसभा क्षेत्र में काफी मेहनत की है।” चौधरी मानते हैं कि राजद ने उन्हें टिकट देकर अपनी विचारधारा में बड़ी छलांग लगाई है।
दरअसल, बहादुरपुर की सीट राजद के कद्दावर नेता और लालू के खास भोला यादव की रही है, जो इस बार दूसरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। चौधरी का कहना है कि राजद ने पहले इस सीट पर कभी राजपूत को टिकट नहीं दिया। लेकिन इस बार टिकट बंटवारा समुदाय की ताकत के आधार पर हुआ है। उन्होंने कहा कि राजद में आने के साथ ही उनका राजपूत फैक्टर मुस्लिम-यादव समीकरण के साथ बैठता है।