तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर पहले चरण में ही वोट डाले जा रहे हैं। कल यानी कि शुक्रवार को 102 सीटों पर वोटिंग होगी, तब तमिलनाडु भी सभी 39 सीटों पर अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेगा। इस बार तमिलनाडु की लड़ाई ज्यादा दिलचस्प इसलिए बन गई है क्योंकि यहां पर पीएम मोदी ने डबल डिजिट में सीटें लाने का दावा कर दिया है। उनका कहना है कि तमिलनाडु सबसे बड़ा सरप्राइज देने वाला है।

पीएम मोदी ने इस बार तमिलनाडु का सात बार दौरा किया है, उनकी तरफ से द्रविडियन राजनीति के बीच में सनातन और सांस्कृतिक मुद्दों को उठाने का काम किया गया है। अगर एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि के सनातन बयान को लेकर बीजेपी ने घेरने का काम किया है, तो दूसरी तरफ लगातार काशि-तमिल संगम कार्यक्रम का जिक्र किया गया। इस बार बीजेपी को अन्नामलाई के चेहरे पर भी काफी भरोसा है, पिछले तीन सालों से उनकी तरफ से तमिलनाडु में बीजेपी के लिए सियासी पिच को मजबूत किया जा रहा है।

अन्नामलाई ने मेरी भूमि मेरे लोग यात्रा के जरिए भी माहौल बनाने की पूरी कोशिश की है। इसके अलावा अन्नामलाई का पिछड़े समाज से आना भी बीजेपी को जमीन पर अलग तरह से समीकरण साधने में मदद कर रहा है। यानी कि इस बार बीजेपी सनातन, विकास, कच्चातिवु द्वीप जैसे मुद्दों के जरिए खुद के लिए तमिलनाडु में एक बड़ी उम्मीद देख रही है। बीजेपी को वैसे भी इस बार अगर खुद 370 से ज्यादा सीटें जीतनी हैं, तमिलनाडु में अच्छा प्रदर्शन करना जरूरी है।

इस बार तमिलनाडु में बीजेपी का गठबंधन पीएमके, टीएमसी (एम) और एएमएमके जैसी पार्टियों के साथ है। खुद बीजेपी 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहीं बाकी सीटों पर एनडीए के दूसरे सदस्यों को मौका दिया गया है। इस बार बीजेपी राज्य में बड़े भाई की भूमिका निभाती दिख रही है।

वैसे जानकार मानते हैं कि इस बार भी तमिलनाडु में सबसे मजबूत डीएमके गठबंधन ही रहने वाला है। डीएमके के साथ कांग्रेस, सीपीएम, वीसीके, एमडीएमके और केएमडीके जैसे दल खड़े हैं। अगर बीजेपी हिंदुत्व, सनातन जैसे मुद्दों के जरिए द्रविड राजनीति को चुनौती देने की कोशिश कर रही है, तो दूसरी तरफ इंडिया ब्लॉक दक्षिण के राज्य में अभी भी बीजेपी को हिंदी पट्टी वाली पार्टी के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ सीएम एमके स्टालिन अपनी सफलताओं का जिक्र कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ तमिल भाषा की रक्षा जैसे मुद्दों को भी प्रमुखता से उठा रहे हैं।

इस बार सबसे कमजोर AIDMK को माना जा रहा है, पार्टी में दो फाड़ हो चुका है, कई बड़े नेता छोड़कर जा चुके हैं, इस वजह से जमीन पर इस पार्टी की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं मानी जा रही। कई ऐसे सर्वे भी सामने आए हैं जहां पर AIDMK से ज्यादा सीटें बीजेपी को दिखाई जा रही हैं। इस चुनाव में AIDMK का गठबंधन डीएमडीके, एसडीपीआई और पीटीके से हुआ है।

पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो डीएमके गठबंधन 39 में से 38 सीटें जीतने में कामयाब रहा था। उस चुनाव में बीजेपी ने AIDMK के साथ गठबंधन कर रखा था, लेकिन उसका खाता तक नहीं खुला। वहीं AIDMK को सिर्फ 1 सीट ही मिल पाई थी।