टिकट दे कर प्रत्याशियों को बदल देना समाजवादी पार्टी की रवायत का हिस्सा है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की इस आदत की वजह से हर चुनाव में उसे ऐसे भितरघातियों से दो चार होना पड़ा है जिन्हें पार्टी ने खुद तैयार किया। ऐसे भितरघातियों ने समय-समय पर पार्टी को बड़ा नुकसान भी पहुंचाया। बावजूद इसके टिकट दे कर प्रत्याशियों को बदलने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

समाजवादी पार्टी में टिकट बदलने की परम्परा की शुरुआत पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष दिवंगत मुलायम सिंह यादव के समय से जारी है। इसी रवायत के तहत इस बार नोएडा, मेरठ, मिश्रिख, मुरादाबाद, बागपत, बदायूं, संभल और बिजनौर में पार्टी ने अपने प्रत्याशियों को टिकट देने के बाद ऐन वक्त पर बदल दिया। नोएडा में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक दो बार नहीं, बल्कि तीन बार टिकट बदल दिया। बागपत में सपा ने मनोज चौधरी के स्थान पर पूर्व विधायक अमर पाल सिंह को टिकट दे दिया। मेरठ में पार्टी ने अतुल प्रधान को टिकट दिया। उसके बाद सुनीता वर्मा को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बना दिया।

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 68 सीटों पर समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है। इन 68 सीटों में से पार्टी ने 45 सीटों पर उम्मीवारों की घोषणा की। इनमें से आठ सीटों पर वह अब तक अपने प्रत्याशियों को बदल चुकी है। बदायूं से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश यादव अपने भाई धर्मेन्द्र यादव को चुनाव मैदान में उतारेंगे। लेकिन उन्होंने धर्मेन्द्र को टिकट न दे कर चाचा शिवपाल यादव को चुनाव मैदान में उतारने का एलान कर दिया। लेकिन शिवपाल सिंह यादव बदायूं से चुनाव मैदान में उतरने से कतरा रहे हैं।

इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र आदित्य यादव को बदायूं से चुनाव मैदान में उतारने की गुजारिश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से की है। मुरादाबाद संसदीय सीट पर भी समाजवादी पार्टी अंतरकलह का शिकार है। सपा ने पहले एसटी हसन को मुरादाबाद से प्रत्याशी बनाने का एलान किया था। लेकिन बाद में रुचिवीरा को यहां से टिकट दे कर पार्टी ने मुरादाबाद के सपा कार्यकर्ताओं को सन्न कर दिया। अपना टिकट कटने पर एसटी हसन को यह तक कहना पड़ा कि अखिलेश यादव चाहते थे कि उनकी उम्मीदवारी निरस्त न हो।

इसीलिए उन्होंने वहां के रिटर्निंग अधिकारी को एक पत्र भी भेजा। लेकिन वह पत्र समय से नहीं पहुंचा। इसकी वजह से उनकी उम्मीदवारी को निरस्त करना पड़ा। एसटी हसन अपने साथ साजिश का आरोप लगाते हैं। समाजवादी पार्टी 2012 के विधानसभा चुनाव और उसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में कई उम्मीदवारों का टिकट बदलने की वजह से खुद बिना बुलाई मुसीबत का शिकार हुई।

2017 और 2019 के विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में भी पार्टी ने बड़ी संख्या में प्रत्याशी बदले। इसकी कीमत भितरघात की शक्ल में पार्टी को चुकानी पड़ी। राम गोपाल यादव के नेतृत्व में ऐसे भितरघातियों को चिन्हित करने के लिए कमेटी गठित हुई। इस कमेटी ने पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को ऐसे भितरघातियों के नाम भी सौंपे, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई आज तक नहीं हुई।

अखिलेश के बार-बार टिकट बदलने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तंज कसा है। बदायूं में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बदायूं का मैदान छोड़ कर भाग रहे हैं। समाजवादी पार्टी में बार-बार प्रत्याशी बदलने की वजह से भीतर ही भीतर भितरघात की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि पार्टी इस बिन बुलाई मुसीबत से पार पाने का कौन सा तरीका अपनाती है।