Shravasti Lok Sabha Election 2024 Date, Candidate Name: उत्तर प्रदेश का श्रावस्ती जिला बौद्ध तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। भगवान बुद्ध के जीवन काल में यह क्षेत्र कौशल देश की राजधानी था। इसे बुद्धकालीन भारत के छह महानगरों चम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कौशाम्बी और वाराणसी में से एक माना जाता है। यहां बौद्ध और जैन दोनों तीर्थस्थल है। नाम को लेकर कई मान्यताएं हैं। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार श्रावस्ती नामक एक ऋषि यहां हुए जिनके नाम पर नगर को श्रावस्त कहा गया। महाभारत में श्रावस्त नाम के एक राजा की कथा मिलती है। श्रावस्ती को राम के बेटे लव की राजधानी भी बताया गया है।
ऐसे में अगर श्रावस्ती लोकसभा सीट को लेकर बात करें तो बीजेपी ने श्रावस्ती लोकसभा सीट से विधान परिषद सदस्य साकेत मिश्र को मौका दिया है। साकेत मिश्र श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र के पुत्र हैं।
नृपेंद्र मिश्र 2014 से 2019 तक पीएम कभी मोदी प्रधान सचिव रहे थे। बाद में नृपेंद्र मिश्र ने अगस्त 2019 में अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में उन्हें जनवरी 2020 में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय के कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें फरवरी 2020 में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष भी चुना गया था।
ब्राह्मण बहुल श्रावस्ती सीट पर साकेत मिश्रा के आने से भाजपा का पलड़ा मजबूत माना जा रहा है। श्रावस्ती लोकसभा सीट पर इस जिले के दो और बलरामपुर जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र आते हैं।
श्रावस्ती में 2009 में पहली बार हुआ लोकसभा चुनाव
नए परिसीमन के बाद यह लोकसभा सीट बनी। 2009 में पहली बार चुनाव हुए और कांग्रेस के विनय कुमार पांडे जीते। 2014 में दद्दन मिश्रा ने कमल खिलाया और पिछली बार यहां राम शिरोमणि वर्मा ने हाथी की सवारी की।
श्रावस्ती सीट का जातीय समीकरण
श्रावस्ती में करीब 20 प्रतिशत मुसलमान और 15 प्रतिशत के करीब यादव हैं। इसके अलावा 20 प्रतिशत कुर्मी और 10 प्रतिशत से ज्यादा दलित वोटर हैं। सबसे ज्यादा ब्राह्मण 30 प्रतिशत के करीब हैं। ऐसे में वे जिधर जाते हैं जीत तय हो जाती है। श्रावस्ती सीट पर क्षत्रिय 5 प्रतिशत के करीब हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम, दलित और यादव वोट बिखर गया था। यह समीकरण भाजपा के पक्ष में चला गया। हालांकि 2019 में सपा और बसपा साथ आए तो भाजपा पिछड़ गई, लेकिन इस बार बसपा अकेले चुनाव लड़ रही है।