मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देश के सबसे कद्दावर सियासी चेहरों में शामिल हैं। विनम्रता और हर किसी को अपना बना लेने की उनकी खूबी के विरोधी भी कायल हैं। कम उम्र में सियासत की बुलंदियां छूने वाले शिवराज अपने जीवन में सिर्फ एक चुनाव हारे हैं और उसमें भी लड़ने से पहले ही हार लगभग तय थी। भाजपा और संघ के दिग्गजों के शुरु से चहेते रहे शिवराज के जीवन में कई बड़े मौके आए और हर बार उन्होंने उसका भरपूर लाभ उठाया। जानिए कैसे सीहोर जिले के छोटे से गांव जैत का एक लड़का धीरे-धीरे मध्य प्रदेश और देश के सबसे सफल राजनेताओं की फेहरिस्त में शुमार हो गया।
31 साल की उम्र में पहली बार बने विधायक
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से करियर की शुरुआत करने वाले शिवराज 1988 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने। 1990 में पहली बार बुधनी से विधायक चुने गए। इस समय उनकी उम्र महज 31 वर्ष थी। इसके ठीक एक साल बाद 10वीं लोकसभा के चुनाव थे। इस चुनाव में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता माने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ और विदिशा दो सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों से जीत गए। तब अटल ने विदिशा सीट छोड़ दी। इसके बाद उपचुनाव हुए और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने शिवराज को वहां से चुनाव लड़वा दिया। अपने पहले ही संसदीय चुनाव में भी शिवराज को जीत मिली।
विदिशा से लगातार पांच बार सांसद बने
शिवराज विदिशा से 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लगातार पांच बार विदिशा से सांसद चुने गए। इस दौरान उन्हें शहरी एवं ग्रामीण विकास और सलाहकार समिति का सदस्य, मध्य प्रदेश भाजपा महासचिव, भाजपा युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष, लोकसभा समिति का चेयरमैन, भाजपा का राष्ट्रीय सचिव, संसदीय बोर्ड के सचिव, राष्ट्रीय महासचिव, केंद्रीय चुनाव समिति के सचिव जैसे कई पदों पर अहम भूमिका निभाने का मौका मिला।
दिग्विजय से मिली थी पहली और आखिरी हार
शिवराज ने अपने करियर में सिर्फ एक चुनाव हारा है। 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने शिवराज को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ उन्हीं के गढ़ राघौगढ़ में उतार दिया था। शिवराज जानते थे इस चुनाव में हार लगभग तय है लेकिन उन्होंने पार्टी के फैसले का सम्मान किया और मैदान में उतर गए। चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर वे केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए।
…और यूं मुख्यमंत्री बन गए शिवराज
2003 के चुनाव में भाजपा ने दिग्विजय के खिलाफ शानदार जीत हासिल की थी और उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद उमा के सख्त व्यक्तित्व के चलते सिर्फ आठ महीने के उनके कार्यकाल में संघ और पार्टी दोनों परेशान हो गए थे। राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि तिरंगा प्रकरण में उनके इस्तीफे को पार्टी ने राहत के तौर पर देखा था। इसके बाद बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन 15 महीनों में उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 29 नवंबर 2005 को शिवराज पहली बार मुख्यमंत्री बन गए और इसके बाद 13 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने सियासत में अपना झंडा हमेशा के लिए बुलंद कर दिया।