Sambhal Lok Sabha Election 2024 Date, Candidate Name: लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। ऐसे में संभल लोकसभा सीट की बात करें तो यह सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है। 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर सपा ने संभल सांसद रहे डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के उत्तराधिकारी के रूप में मुरादाबाद के कुंदरकी के विधायक जियाउर्रहमान बर्क को सपा ने मैदान में उतारा है। संभल की अपनी सीटिंग सीट सपा ने सांसद के परिवार के हवाले कर दी है।

इसके पहले भी सपा की पहली सूची में संभल की सीट से प्रत्याशी यहां के सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क को बनाया गया था, लेकिन उनकी तबीयत खराब थी और 27 फरवरी को उनका निधन हो गया था। इसके बाद अखिलेश यादव छह मार्च को संभल आए थे और परिवार को ढांढस बंधाने के साथ ही कुछ मिनटों की जनसभा में जियाउर्रहमान बर्क की दावेदारी को मजबूत मानते हुए परिवार को ही टिकट देने की बात कह दी थी।

संभल सपा का गढ़ माना जाता है। संभल लोकसभा क्षेत्र से सपा के संस्थापक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उनके भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव भी चुनाव लड़कर सांसद रह चुके हैं। इसके बाद भी यह सीट पार्टी की गुटबाजी का शिकार रही है।

बर्क और इकबाल महमूद के परिवार में चली आ रही अदावत

डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क और इकबाल महमूद के परिवार में करीब पांच दशक से राजनीतिक अदावत चली आ रही है। इसका खामियाजा पार्टी को कई बार उठाना भी पड़ा है। साल 1998 और 1999 में मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा का चुनाव जीता था।

संभल से 2004 में रामगोपाल यादव चुनाव जीते

इसके बाद साल 2004 में प्रोफेसर रामगोपाल यादव लोकसभा का चुनाव जीते थे। इसके बाद साल 2009 में सपा ने इकबाल महमूद को टिकट दिया था। उस समय डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क भी सपा में थे और मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी थे। टिकट कटा तो वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। खामियाजा सपा प्रत्याशी को उठाना पड़ा था। इकबाल महमूद हार गए थे। बसपा के प्रत्याशी डॉ. बर्क जीत गए थे। इसके बाद साल 2014 में सपा ने डॉ. बर्क को प्रत्याशी बनाया था।

2019 में बर्क संभल से सांसद बने

जिसमें भाजपा प्रत्याशी सत्यपाल सिंह सैनी से डॉ. बर्क को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में डॉ. बर्क ने आरोप लगाया था कि पार्टी के नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ाया और विरोध किया था। साल 2019 में भी दोनों खेमों में बगावत सामने आई थी, लेकिन गठबंधन के चलते डॉ. बर्क को बड़े अंतर से जीत मिली थी।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी बगावत के सुर उठ सकते हैं। क्योंकि डॉ. बर्क को जब पहली सूची में सपा ने प्रत्याशी घोषित किया था तो इकबाल महमूद के तेवर तीखे हो गए थे। उस समय भी उन्होंने अपने समर्थकों से बैठक करने के बाद ही निर्णय लेने की बात कही थी। ठीक वैसे ही तेवर इस बार भी बने हुए हैं। इससे जाहिर हो रहा है कि संभल में सपा की गुटबाजी एक बार फिर सामने आ सकती है।

चंदौसी विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा महिला मतदाता-

संभल लोकसभा क्षेत्र की पांच में से चंदौसी विधानसभा ऐसी है, जहां सबसे ज्यादा महिला मतदाता हैं। 183072 महिला मतदाता चंदौसी विधानसभा क्षेत्र में हैं। वहीं सबसे कम महिला मतदाता 167395 बिलारी विधानसभा क्षेत्र में हैं। इन महिला मतदाताओं का रुझान किसी भी प्रत्याशी की किस्मत का फैसला करेगा। हालांकि मतदान कितने प्रतिशत महिलाएं करने जाती हैं यह भी देखने वाली बात होगी। संयोग है कि चंदौसी से विधायक भी महिला (गुलाबदेवी) हैं। वह प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री भी हैं।

संभल लोकसभा क्षेत्र में महिला मतदाता-

संभल लोकसभा में अगर विधानसभा बार महिला मतदाता की बात करें तो सबसे ज्यादा महिला मतदाता चंदौसी में हैं। चंदौसी में 183072, कुंदरकी में 182912, असमोली में 175953, संभल में 172950 और बिलारी में 167395 महिला मतदाता हैं।

संभल सीट का राजनीतिक इतिहास

संभल सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो कांग्रेस को यहां पर पिछले 40 सालों से अपनी पहली जीत का इंतजार है। कांग्रेस को आखिरी बार यहां पर 1984 में जीत मिली थी, तब शांति देवी विजयी हुई थीं। कभी इस सीट को यादव परिवार का गढ़ माना जाता था। 1989 से लेकर 2004 तक के लगातार छह चुनाव में यादव बिरादरी के नेता ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1989 और 1991 में श्रीपाल यादव चुनाव जीते थे। हालांकि बाद में परिसीमन के बाद इस सीट पर यादव बिरादरी का दबदबा कुछ कम हो गया। यहां से पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव भी दो बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं, जबकि एक बार उनके भाई राम गोपाल यादव भी चुनाव जीत चुके हैं। 1989 के बाद से अब तक हुए नौ चुनाव में चार बार समाजवादी पार्टी, दो-दो बार बहुजन समाज पार्टी और जनता दल को जीत मिल चुकी है तो एक बार यह सीट भाजपा के खाते में भी आई थी। 2014 के चुनाव में मोदी लहर का फायदा बीजेपी को मिला और उसने यहां पर अपना खाता खोल लिया. तब बीजेपी के सत्यपाल सिंह सैनी सांसद बने।

मुस्लिम बहुल क्षेत्र में यादव का दबदबा

मुस्लिम बहुल सीट कही जाने वाली संभल सीट पर 1996 के चुनाव में दबंग नेता कहे जाने वाले डीपी यादव ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी। 1998 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी किस्मत आजमाई और जीत हासिल की। फिर 1999 के चुनाव में भी जीते। 2004 के चुनाव में मुलायम सिंह की जगह उनके भाई राम गोपाल यादव मैदान में उतरे और चुनाव जीते। 2009 के चुनाव में शफीकुर रहमान बर्क यहां से सांसद बने थे, लेकिन तब वहबसपा के टिकट से चुने गए थे। लेकिन वह 2014 के चुनाव में बीजेपी के सत्यापाल सिंह सैनी से कड़े मुकाबले में 5,174 मतों के अंतर से हार गए थे। 2019 के चुनाव में शफीकुर सपा-बसपा गठबंधन के तहत चुनाव लड़े और बीजेपी को हराते हुए पिछली हार का बदला ले लिया।

संभल सीट को मुस्लिम बाहुल माना जाता है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने की वजह से भाजपा के लिए यहां पर जीत हासिल करना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। इस सीट पर 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 40 फीसदी के करीब हिंदू मतदाता हैं। अनुसूचित जाति के करीब 2.75 लाख मतदाता तो 1.5 लाख मतदाता यादव बिरादरी और 5.25 लाख मतदाता पिछड़ा और सामान्य वर्ग से है।