सर्वेश कुमार
रोजगार और कारोबार के लिए नेपाल में अस्थायी तौर पर बसे दो-ढाई लाख मतदाता इस बार भी लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। बिहार-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते हुए क्षेत्र मोतिहारी, झंझारपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, वाल्मीकि नगर, अररिया, बेतिया, किशनगंज और सुपौल के मतदान के लिए अपने घरों का रुख कर रहे हैं। लोकतंत्र के महापर्व में शामिल होने के लिए अपने देश पहुंचने के लिए उनके रिश्तेदार भी लगातार संपर्क में हैं ताकि नियत तारीख से पहले पहुंच सकें। राजनीतिक दलों की भी निगाहें ऐसे मतदाताओं पर टिकी है।
राजनीतिक दल भी एक एक मत की कीमत को पहचानते हैं, इसलिए उन्हें भी इन मतदाताओं के पहुंचने का इंतजार है। समर्थक भी ऐसे मतदाताओं के साथ संपर्क में हैं ताकि मतदान में पीछे नहीं रहें। मतदान से 72 घंटे पहले भारत-नेपाल सीमा को सील कर दिया जाता है। मताधिकार का प्रयोग करने के लिए भारतीय मूल के कामगार और कारोबारी भी पहुंचने लगे हैं।
तयशुदा वक्त पर पहुंचे इसके लिए नेपाल में रह रहे बिहार के मतदाताओं को उनके परिवारजन फोन के जरिए बुला रहे हैं। इनकी अनुमानित संख्या दो से ढाई लाख तक हो सकती है। नेपाल में मधेशियों की काफी आबादी है। लेकिन दूसरे देश में नौकरी के लिए जाने वाले करीब ढाई लाख ऐसे लोग हैं जिनके पास नेपाल की नागरिकता नहीं मिलने की वजह से चुनाव के वक्त बिहार में अपने घर को लौटते हैं।
नेपाल में काठमांडू में कारोबार करने वाले बेगूसराय के बखरी अनुमंडल के मुरारी केसरी ने बताया कि मतदान के पहले सीमावर्ती क्षेत्र के सैकड़ों लोग भारत आते हैं। उस दौरान उत्सव जैसा माहौल रहता है। पूर्वी चंपारण के धनेश्वर साह सरीखे सैकड़ों लोग नेपाल में अपना कारोबार करते हैं, लेकिन मतदान के लिए अपने घर जरूर आते हैं। मतदान की तारीख याद दिलाने के लिए कई रिश्तेदार भी अपनों को फोन कर बुला रहे हैं।
किशनगंज में भी पिछले चरण में हुए मतदान में भी ऐसे सैकड़ों मतदाताओं की भूमिका रही। विशेषज्ञ डा अजय कुमार का कहना है कि अक्सर मतदान के दौरान हजारों की संख्या में भारतीय नागरिक मतदान के लिए नेपाल से आते हैं। हालांकि इनमें ज्यादातर संख्या, उन कामगारों की हैं, जिन्हें नेपाल की नागरिकता नहीं मिल सकी है।