राजस्थान चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच में मुकाबला कड़ा दिखाई दे रहा है। इस बार ओबीसी पॉलिटिक्स पर दोनों ही दलों की खास नजर है, एक तरफ कांग्रेस जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों के जरिए इस वोटबैंक को साधने की कोशिश में लगी है तो बीजेपी अपनी जन कल्याण योजनाओं के जरिए बाजी पलटना चाहती है। अब इस बार की राजस्थान राजनीति ओबीसी आधारित जरूर है, लेकिन वहां भी एक बड़ा खेल हुआ है।

राजस्थान का ओबीसी फैक्टर

इस चुनाव में एक तरफ कांग्रेस ने 200 में से 72 ओबीसी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है तो वहीं बीजेपी का आंकड़ा भी 70 तक जा रहा है। लेकिन एक बड़ा फर्क ये दिख रहा है कि बीजेपी ने ऊंची जाति वाले ओबीसी प्रत्याशियों को मौका दिया है, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने छोटी जातियों पर फोकस जमाया है। ऐसा कर दोनों ही पार्टियों ने अलग तरह से एक बड़े वर्ग को साधने की कोशिश की है।

कांग्रेस की प्रत्याशियों की लिस्ट को डीकोड किया जाए तो उसने 34 सीटें जाट. 11 गुर्जर, 4 यादव और 4 ही बिश्नोई समाज को भी दी है। कई दूसरी छोटी जातियों को साधने के लिए भी एक-एक सीट दी गई है। अब कांग्रेस इस समीकरण के जरिए तो फायदा चाहती ही है, उसने इससे पहले 2019 में गुर्जर और MBC को चार फीसदी आरक्षण दिया था। शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ये आरक्षण देने की बात हुई है।

मुस्लिमों की क्या हालत?

वैसे कांग्रेस ने एक बार फिर मुस्लिमों पर भी दांव चला है। कुल 15 प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा गया है। ये अलग बात है कि पार्टी ने हिस्सेदारी के लिहाज से अभी भी मुस्लिम समुदाय से कम लोगों को टिकट दिया है। बीजेपी की बात करें तो उसने तो एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है।