राजस्थान चुनाव को लेकर जमीन पर सरगर्मी तेज हो गई है। इस राज्य की एक खासियसत है, यहां हर पांच साल बाद सत्ता बदल जाती है। सत्ता बदलने का ये ट्रेंड ही दोनों कांग्रेस और बीजेपी को समान रूप से जीतने का मौका भी देता है और सरकार बनाने का अवसर भी मिल जाता है। लेकिन इस राज्य की कुछ सीटे ऐसी हैं जो किसी एक पार्टी के साथ चिपक सी गई हैं। किसी की भी लहर हो, किसी की भी रणनीति हो, वो सीट हाथ से छिटकती नहीं। इस ट्रेंड से बीजेपी भी परेशान चल रही है।
बागीदौरा सीट का पूरा खेल
राजस्थान के बासंवाड़ा जिले का भी कुछ ऐसा ही हाल है। वहां से कुल पांच विधानसभा सीट निकलती हैं- बांसवाड़ा, बागीदौरा, गढ़ी, घाटोल और कुशलगढ़। ये पूरा क्षेत्र ही आदिवासी बाहुल्य माना जाता है। यहां की जो बागीदौरा सीट है ये बीजेपी के लिए किसी अभिषापसे कम नहीं। इस सीट पर ना मोदी लहर का कोई असर पड़ता है और ना ही राजनीति के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले अमित शाह की कोई नीति काम आती है। पिछले कई सालों से बीजेपी इस सीट पर बस हार देख रही है।
बागीदौरा सीट कांग्रेस का एक अभेद किला बन चुकी है। पिछले तीन बार से लगातार इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी की ही जीत हो रही है। इससे पहले ये सीट जेडीयू के खाते में भी रहती थी। 1990 से चुनावी ट्रेंड को देखा जाए तो चार बार जेडीयू तो तीन बार कांग्रेस ने यहां से जीत का परचम लहराया है। लेकिन इन 23 सालों में इस सीट पर एक बार भी कमल नहीं खिला है।
क्यों बीजेपी नहीं जीत पा रही?
ये भी कहा जा सकता है कि आजादी के बाद से चाहे जनसंघ रहा हो या बाद में बीजेपी, एक बार भी ये सीट पार्टी की झोली में नहीं गई है। इसके कई कारण माने जा सकते हैं। जानकार मानते हैं कि बागीदौरा से बीजेपी ने एक बार भी ज्यादा मजबूत प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा है। इसके ऊपर ये जगह क्योंकि आदिवासी बाहुल्य रही है, ऐसे में यहां पर कांग्रेस का हमेशा से ही अपर एज रहा। कहा तो ये भी जा सकता है कि लंबे समय क्योंकि जेडीयू ने इस सीट से जीत दर्ज की, इसलिए भी बीजेपी के लिए विकल्प बनने का मौका नहीं बना।
बागीदौरा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो ये एसटी वर्ग के लिए आरक्षित रहती है। इस समुदाय की यहां पर 85 फीसदी संख्या है, वहीं पांच फीसदी के करीब एससी भी हैं। सामान्य वर्ग यहां पर 10 प्रतिशत के करीब है। अब ये समीकरण पिछले कई सालों से कांग्रेस के फेवर में काम कर रहे हैं और बीजेपी को ही इसका सियासी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस बार बीजेपी ने यहां से एक महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, कृष्णा कटारा को मौका दिया गया है। वहीं कांग्रेस ने फिर महेंद्रजीत सिंह मालवीय को टिकट दिया है।
इस सीट पर भी बीजेपी की किस्मत खराब
वैसे राजस्थान में बीजेपी की किस्तम इस समय एक और सीट पर काफी खराब चल रही है। झुंझुनूं जिले की नवलगढ़ सीट ऐसी है जहां पर बीजेपी जीत का परचम नहीं लहरा पाई है। तामम दाव-पेंच लगाने के बाद भी ये सीट पार्टी से नदारद ही चल रही है। बागीदौरा की तरह झुंझुनूं एक ऐसी सीट है जहां पर ना जनसंघ को जीत मिली और ना ही बीजेपी कोई कमाल कर पाई। पार्टी के नेता खुद कई बार इस सीट पर अपनी परफॉर्मेंस बताने से करता जाते हैं। इसका कारण ये है कि शुरुआत में पार्टी द्वारा कई बार इस सीट से उम्मीदवार भी घोषित नहीं किया जाता था।
यहां ये समझना जरूरी है कि झुंझुनूं सीट से हर बार कांग्रेस भी नहीं जीती है। यहां से निर्दलीय से लेकर बसपा के उम्मीदवार भी जीत का स्वाद चख चुके हैं, यानी कि इसे कांग्रेस का गढ़ नहीं कहा जा सकता। बस समानता इतनी है कि बीजेपी ने यहां जीत दर्ज नहीं की है, उसके सारे दांव फेल रहे हैं।