साल 1975 में आपातकाल लगाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने विरोधियों के निशाने पर आ गई थीं। हजारों लोगों की जेल, पत्रकारों पर लगने वाले प्रतिबंधों ने उनके खिलाफ एक ऐसा माहौल तैयार किया कि 1977 में हुए चुनाव में उन्हे करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस का हर दिग्गज उस चुनाव में अपनी सीट गंवा बैठा। लेकिन ये इंदिरा की कांग्रेस थी जिसने हारना नहीं बल्कि लड़कर फिर खड़ा होना सीखा था।

कुछ समय के लिए सत्ता में जनता पार्टी की सरकार जरूर चली, लेकिन आपसी मतभेदों ने ऐसी स्थिति बना दी कि वो सरकार भी ज्यादा समय नहीं टिकी और कांग्रेस की भी सत्ता में जोरदार वापसी हुई। अब 1980 के लोकसभा चुनाव से पहले साल 1978 में भी एक असाधारण घटना हुई थी, ऐसी घटना जिसने गांधी परिवार को आगे चलकर एक सबसे भरोसेमंद नेता का साथ दिलवाया।

इंदिरा का चुनाव, गहलोत की मेहनत

1978 का उपचुनाव इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से लड़ने का फैसला किया। रायबरेली में मिली हार के बाद संसद में पहुंचना इंदिरा के लिए जरूरी था, कांग्रेस भी ये बात अच्छी तरह समझ रही थी। ऐसे में इंदिरा को कर्नाटक की उस सीट से जितवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया गया। प्रचार ठीक तरह से हो सके, इसलिए देशभर से कांग्रेस के कई कार्यकर्ता चिकमंगलूर पहुंचे थे। उन कार्यकर्ताओं में 27 साल का एक नौजवान लड़का भी था। उसका नाम था अशोक गहलोत।

अशोक गहलोत को कभी भी बोलने की वजह से नहीं जाना गया, लेकिन चुनावी मैनेजमेंट वे बेहतरीन कर लेते थे। बताया जाता है कि उस दौर में भी इंदिगा गांधी को जिताने में गहलोत ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। खुद तब तक कोई चुनाव नहीं जीता था, लेकिन अपनी नेता को जिताने के लिए वो सब किया जो एक सच्चा कार्यकर्ता करता। उस समय चुनाव के समय प्रचार के लिए हर कांग्रेस कार्यकर्ता को कुछ रुपये दिए गए थे। गहलोत को भी हाईकमान से पैसे मिले थे।

गहलोत की ईमानदारी ने सभी को किया हैरान

अब जैसा नेताओं को लेकर कहा जाता है, पैसा ले तो लिया जाता है, लेकिन उसे वापस करेंगे या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं रहती। अब यहीं वो पहलू रहां जहां अशोक गहलोत दूसरे नेताओं से अलग निकले। भारतीय राजनीति में इस किस्से को किसी नेता सच्ची निष्ठा और ईमानदारी के लिए हमेशा याद किया जाता है। अब हुआ ये कि अशोक गहलोत ने इंदिरा के प्रचार के लिए पैसे जरूर खर्च किए, लेकिन 300 रुपये बचा भी गए। उस जमाने के लिहाज से भी ये कोई बहुत बड़ी रकम नहीं थी।

लेकिन जब इंदिरा गांधी ने कर्नाटक की उस सीट से चुनाव जीत लिया, पार्टी जीत में मग्न हो गई, तब 27 साल के अशोक गहलोत ने इंदिरा से मुलाकात की। वो मुलाकात भी किसी मदद या कह लीजिए पद के लिए नहीं थी, बल्कि गहलोत को तो इंदिरा को वो 300 रुपये वापस करने थे। जी हां वहीं 300 रुपये जो चुनाव प्रचार के समय बच गए। इंदिरा से मिलते ही युवा गहलोत ने कहा- ये 300 रुपये आपके चुनाव प्रचार में बच गए।

कई सालों बाद भी कांग्रेस की पसंद गहलोत

अशोक गहलोत से इंदिरा गांधी की वो पहली मुलाकात थी। उस एक मुलाकात ने इंदिरा को बता दिया था कि गहलोत से ज्यादा वफादार कोई दूसरा नेता नहीं मिलने वाला। इसी वजह से इसके बाद साल दर साल बीतते रहे, लेकिन गांधी परिवार और कांग्रेस हाईकमान के दिल में गहलोत के लिए बनी जगह कभी खत्म नहीं हुई। कई विवाद हुए, लगा कि गहलोत अपना वर्चस्व गंवा बैठेंगे, लेकिन नहीं, उस एक ईमानदारी ने अशोक गहलोत के करियर को ऐसा सियासी बूस्टर दिया कि हर विवाद आते-जाते रहे, लेकिन राजस्थान के इस सीएम की छवि ना गांधी परिवार के लिए कभी बदली और ही कांग्रेस हाईकमान का उन पर भरोसा कम हुआ।