राजस्थान का पिछला विधानसभा कई मायनों में खास रहा था। वो एक ऐसा चुनाव साबित हुआ जिसमें कहने को कांग्रेस की हवा की बात हुई, यहां तक कहा गया कि प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनने जा रही है। लेकिन जब नतीजे आए तो कांग्रेस को बहुमत तक नहीं मिल पाया। जिस बीजेपी को लेकर कहा जा रहा था कि उसका सफाया हो जाएगा, उसने भी उससे काफी बेहतर प्रदर्शन करके दिखा दिया।
पिछले चुनाव में कांग्रेस के खाते में 99 सीटें गई थीं, वहीं बीजेपी 73 जीतने में कामयाब रही। अब उस चुनाव में कांग्रेस को क्योंकि रालोद का भी साथ मिल गया, ऐसे में उसकी सीटों का आंकड़ा 100 पहुंच गया और पार्टी बहुमत हासिल करने में कामयाब हो गई। लेकिन उस चुनाव के कई ऐसे समीकरण रहे जो कांग्रेस को जीत के बाद भी चिंताएं दे गए और बीजेपी को कुछ उम्मीदें मिलीं।
असल में पिछले चुनाव में कई ऐसी सीटें रही जहां पर जीत का अंतर 1000 वोटों से भी कम का रहा। यानी कि अगर उन सीटों पर थोड़ा भी फेर-बदल हो जाता तो सत्ता में कांग्रेस की जगह बीजेपी भी आ सकती थी। बड़ी बात ये भी है कि राज्य की 10 ऐसी सीटें रहीं जहां पर 1000 से भी कम वोटों से हार-जीत तय हुई। भीलवाड़ा जिले की असिंद सीट ने पिछले चुनाव में कमाल करके दिखा दिया था। बीजेपी के जब्बर सिंह सांखला ने मात्र 154 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी मनीष मेवाड़ा को हरा दिया था।
मारवाड़ सीट पर भी हार-जीत का अंतर मात्र 251 वोटों ने तय किया था। इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार खुशवीर सिंह ने बीजेपी के प्रत्याशी केसराम चौधरी को 251 वोटों से हरा दिया था। इसी कड़ी में पीलीबंगा सीट बीजेपी के धर्मेंद्र कुमार सिर्फ 278 वोटों से जीत पाए थे। उस समय कांग्रेस के विनय कुमार को करीबी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था।
वैसे राजस्थान में मुकाबला जरूर बीजेपी और कांग्रेस के बीच में रहा, लेकिन कई दूसरी पार्टियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। पिछले चुनाव में मायावती की बीएसपी को 6 सीटें, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्ससिस्ट) को 2, भारतीय ट्रायबल पार्टी को 2, राष्ट्रीय लोक दल को एक, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को 3 सीटें मिली थीं। इसके अलावा 13 निर्दलीयों ने भी एक निर्णायक भूमिका निभाई थी।
यहां ये समझना जरूरी है कि वर्तमान में राजस्थान विधानसभा की स्थिति कुछ बदली हुई है। इस समय एक तरफ कांग्रेस का आंकड़ा 100 से बढ़कर 108 हो गया है, तो वहीं बीजेपी 70 सीटों पर चल रही है। राजस्थान का जैसा ट्रेंड रहा है, यहां हर पांच साल में सत्ता बदल जाती है। इस बार बीजेपी भी इसी ट्रेंड के दम पर सरकार में आना चाहती है, वहीं कांग्रेस इतिहास रच उसी ट्रेंड को तोड़ना चाहती है।