राजस्थान चुनाव को लेकर जमीन पर सरगर्मी तेज हो गई है, इस समय कौन आगे कौन पीछे, ये पता करना भी बड़ी चुनौती है। जानकार मानते हैं कि इस बार मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच में कड़ा रहने वाला है। बड़ी बात ये है कि पिछली बार भी माना जा रहा था कि कांग्रेस की लहर रहेगी और प्रचंड बहुमत वाली सरकार आएगी। लेकिन असल आंकड़ो में बीजेपी ने भी पूरी टक्कर दी और उसी वजह से कई ऐसी रहीं जहां पर हार-जीत का अंतर 1000 वोटों से भी कम का रहा।

100 वोट इधर से उधर गए, गेम बदल जाएगा!

एक आकंड़ा तो ये भी है कि पिछली बार कांग्रेस को अपने दम पर सरकार बनाने का मौकान नहीं मिला था। उसके खाते में 100 सीटें गई थीं,यानी कि वो एक सीट बहुमत से कम था। अगर कुछ विधानसभा 100 वोटर भी अपना मत बदल देते तो सत्ता में कांग्रेस नहीं बीजेपी आती। इसी वजह से मुकाबले को काफी कड़ा माना गया और एक बार फिर वैसी ही स्थिति बनती दिख रही है। दोनों कांग्रेस और बीजेपी की नजर उन 10 सीटों पर है जहां पर पिछले चुनाव में जीत का अंतर 1000 वोटों से कम का रहा।

10 सीटें जहां कभी भी नतीजा बदल जाए

भीलवाड़ा जिले की असिंद सीट ने पिछले चुनाव में कमाल करके दिखा दिया था। बीजेपी के जब्बर सिंह सांखला ने मात्र 154 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी मनीष मेवाड़ा को हरा दिया था। बड़ी बात ये रही कि पिछली तीन बार से लगातार बीजेपी ने ये सीट अपने नाम की है। 2008, 2013 और 2018 के चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर अपना कब्जा किया। लेकिन पिछली मुकाबला काफी कड़ा बन गया था। असल में तब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के मनसुख सिंह ने गजब का प्रदर्शन करते हुए कई वोटों को अपने पाले में किया था और उसी वजह से जीत का अंतर मात्र 154 रह गया। अब एक बार फिर इस सीट से बीजेपी ने जब्बर सिंह सांखला पर ही भरोसा जताया है।

कांग्रेस-बीजेपी, करीबी मुकाबले में कौन आगे?

अब असिंद से अगर बीजेपी को जीत मिली थी, तो वहीं दूसरी तरफ मारवाड़ सीट पर भी हार-जीत का अंतर मात्र 251 वोटों ने तय किया था। इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार खुशवीर सिंह ने बीजेपी के प्रत्याशी केसराम चौधरी को 251 वोटों से हरा दिया था। इसी कड़ी में पीलीबंगा सीट बीजेपी के धर्मेंद्र कुमार सिर्फ 278 वोटों से जीत पाए थे। उस समय कांग्रेस के विनय कुमार को करीबी मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था।

चुनावी नतीजे बताते हैं कि पिछली बार बूंदी, फतेहपुर, पोकरण, दांतारामगढ़, खेतड़ी और सिवाना में भी जीत का अंतर 1000 से कम वोटों का रहा। ऐसी 9 सीटों में से बीजेपी के खाते में 4 सीटें गई थीं, वहीं कांग्रेस के खाते में भी 4 ही सीटें रहीं। वहीं एक सीट निर्दलीय निकालने में कामयाब रहे थे। यानी कि अगर चार सीटें भी इधर-उधर हो जातीं तो चुनावी गेम पूरी तरह बदल सकता था।