पंजाब की 13 लोकसभा सीट पर इस बार का चुनाव पूर्व की तरह नहीं है। यहां के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की राहें अब की बार जुदा हैं। इनमें से चार प्रमुख दलों ने गठबंधन को नकारते हुए अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। तीन पार्टियां तो अपने उन शीर्ष नेताओं के बिना प्रचार मैदान में हैं, जो पिछले लोकसभा चुनावों में सक्रिय थे।
राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन का घटक दल होने के बावजूद, सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और विपक्षी कांग्रेस ने पंजाब में एक-दूसरे के विरोध में खड़े होने का निर्णय लिया है। वहीं, 1996 से सहयोगी रहे शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी ने भी इस लोकसभा चुनाव में एक साथ नहीं जाने का फैसला किया है। इसकी बड़ी वजह किसान आंदोलन का प्रभाव रहा।
शिरोमणि अकाली दल पहली बार पार्टी के संरक्षक और पांच बार के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बिना चुनाव लड़ रहा है। प्रकाश सिंह बादल का 25 अप्रैल, 2023 को निधन हो गया। कांग्रेस भी दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बगैर मैदान में है। सितंबर 2021 में कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था। उन्होंने अपनी खुद की पंजाब लोक कांग्रेस बनाकर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ा और हार के बाद सितंबर 2022 में भाजपा में विलय कर दिया। कैप्टन अब भाजपा में हैं।
सत्तारूढ़ आप भी अपने राष्ट्रीय प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बिना प्रचार कर रही है। केजरीवाल तिहाड़ जेल में हैं। उनकी अनुपस्थिति में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्य में चुनाव प्रचार का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है। आप के नजरिये से समझें तो पंजाब में पिछले दो चुनाव, 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों के अभियान केजरीवाल के इर्द-गिर्द ही निर्मित किए गए थे। हालांकि, मान को 2022 के विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया था और इस बार पार्टी का अभियान मान के इर्द-गिर्द ‘संसद विच वी मान’ (संसद में भी मान) के नारे के साथ तैयार किया गया है।