आदर्श गुप्ता
2019 के लोकसभा चुनाव के लिए विभिन्न पार्टियों से टिकट पाने की आस में लोगों की भागदौड़ शुरू हो गई है। इस बार इस मुरैना श्योपुर लोकसभा सीट के लिए टिकट की सबसे ज्यादा मांग कांग्रेस में है। उसका कारण 2018 का विधानसभा चुनाव है जिसमें 15 साल बाद भाजपा को हरा कर कांग्रेस सत्ता में लौटी है। वैसे मुरैना में कांग्रेस छह बार ही चुनाव जीती है।
1951 के पहले चुनाव में यह सीट मुरैना भिंड के नाम पर बनी थी। तब कांग्रेस के मुकाबले केवल कम्युनिस्ट या सोशलिस्ट पार्टियां ही होती थीं। 1957 के दूसरे चुनाव में मुरैना भिंड सीट को ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में मिला दिया गया। इस चुनाव में जनसंघ पहली बार मैदान में आया। 1962 के तीसरे चुनाव में इस सीट को ग्वालियर से अलग करके भिंड लोकसभा क्षेत्र बना दिया गया। मुकाबला वही कांग्रेस, कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट और जनसंघ के बीच बना रहा। हिंदू महासभा भी तब चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करती थी।
1967 के चौथे चुनाव में पहली बार मुरैना लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। 1977 में लोकदल और 1980 जनता पार्टी ने कांग्रेस के मुकाबले चुनाव लड़ा। 1984 से जनसंघ की जगह भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई तब तक यहां ज्यादातर मुकाबले कांग्रेस और किसी एक और पार्टी के बीच होते रहे। यह सीधा मुकाबला पहले कम्युनिस्टों से होता था। फिर जनसंघ या भाजपा से होने लगा। 1989 में बहुजन समाज पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से इस सीट की लड़ाई कांग्रेस, भाजपा और बसपा के बीच त्रिकोणीय हो गई जो 2014 तक तो थी।
इस सीट से 1951, 1957 और 1962 के तीन चुनाव कांग्रेस जीती। 1967 में कांग्रेस के होकर भी निर्दर्लीय चुनाव लड़े आत्मदास जीते। 1972 में जनसंघ के हुक्मचंद कछवाह जीते तो 1977 में लोकदल के छविराम अर्गल ने जीत पाई। 1980 में जनता पार्टी के संयुक्त उम्मीदवार छविराम अर्गल को हराकर कांग्रेस के बाबूलाल सोलंकी चुनाव जीते। 1980 में माधवराव सिंधिया के कांग्रेस में आने के बाद 1984 से इस सीट के लिए प्रत्याशी उनकी पसंद से चुना जाने लगा था। 1984 और 1989 में कम्मोदी लाल, 1991 में बारे लाल तो 2009 में रामनिवास रावत सिंधिया खेमे के प्रत्याशी थे। वहीं 1996, 1998, 1999 और 2014 में सिंधिया खेमे की जगह दिग्गी राजा खेमे के लोगों को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया।
1977 से संसदीय चुनाव में उतरे छविराम अर्गल ने 1977, 1980, 1989, 1991 का चुनाव लड़ा। इनमे से 1977 और 1989 का चुनाव वे जीते 1980 और 1991 का हारे। उनकी असमय मृत्यु के बाद उनके पुत्र अशोक अर्गल ने 1996 से चुनाव लड़ना शुरू किया। 1996, 98, 99 और 2004 का चुनाव अशोक अर्गल जीते। 2009 में हुए परिसीमन में मुरैना सीट सामान्य घोषित हुई। भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर जीते और कांग्रेस के रामनिवास रावत तीसरे नंबर पर रहे। 2014 के चुुुनाव में भाजपा के अनूप मिश्रा जीते। उन्होंने कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह को हराया ।