बिहार में एनडीए ने 125 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया है। यहां महागठबंधन और एनडीए के अलावा 8 अन्य की जीत हुई है जिसमें केवल एक ही निर्दलीय उम्मीदवार हैं। सुमित कुमार सिंह अकेले वह निर्दलीय प्रत्याशी हैं जो जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। 39 साल के सुमित ने चकाई विधानसभा सीट से चुनाव जीता है। उन्होंने आरजेडी की पूर्व विधायक सावित्री देवी को 581 वोटों से हराया।
सिंह का परिवार राजनीति से जुड़ा रहा है। उनके दादा श्रीकृष्णानंद सिंह दो बार चकई से चुनाव जीतकर विधायक रह चुके हैं। उन्होंने 1967 और 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जीत हासिल की थी। तमाम निजी और पारिवारिक संकटों के बावजूद सुमित सिंह को सफलता मिली। उनके भाई अभय भी विधायक रह चुके हैं। 2010 में उन्होंने पारिवारिक विवाद की वजह से अपनी पत्नी और बेटी को मारकर खुदकुशी कर ली थी।
चकाई विधानसभा सीट पर ही पहले चरण के मतदान पर सबसे ज्यादा 60 फीसदी वोटिंग हुई थी। यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है। यहां से 13 उम्मीदवार थे। सुमित सिंह को 45,548 वोट मिले थे जबकि आरजेडी प्रत्याशी को 44,957 वोट हासिल हुए। तीसरे नंबर पर जेडीयू के संजय प्रसाद रहे जिन्हें 39319 मतों से ही संतोष करना पड़ा। यहां भी एलजेपी ने जेडीयू के वोट काटने का काम किया।
सिंह ने कहा, ‘मैंने इसलिए निर्दलीय चुनाव लड़ा क्योंकि मेरा कोई काडर नहीं है। मैंने लोगों की मदद करके ही अपना वोटर बेस बनाया है।’ जेडीयू से टिकट न मिलने के बाद सुमित सिंह ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था। उनके परिवार की आदिवासियों पर अच्छी पकड़ रही है। एक स्थानीय ने बताया कि उनका परिवार आदिवासियों की मदद करता था, इलाज कराता था। इसके अलावा कई लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत घर दिलाने में मदद की। वह 2015 में चुनाव हार गए थे लेकिन लोग अपनी सस्याएं लेकर उनके घर पहुंचते रहते थे।
2010 में सिंह ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। इस क्षेत्र में आदिवासी, एससी, मुस्लिम, राजपूत और यादव वोटर हैं। एक ग्रामीण ने कहा कि चिराग और नीतीश दोनों सुमित के खिलाफ थे फिर भी उनको जीत मिली।