पूर्व केंद्रीय मंत्री और नई दिल्ली सीट से चौथी बार चुनाव लड़ रहे अजय माकन दिल्ली में भाजपा के मुकाबले आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने के पक्षधर थे। अब गठबंधन न होने पर भी भाजपा और उनके विरोधी इसी मुद्दे को उनके खिलाफ हथियार बनाए हुए हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने ‘आप’ के आशीष खेतान को 162708 मतों के अंतर से पराजित किया। कांग्रेस के अजय माकन तीसरे नंबर पर रहे।इस बार कांग्रेस-भाजपा ने अपने उम्मीदवार नहीं बदले, लेकिन आशीष खेतान के राजनीति से अलग होने के बाद ‘आप’ ने अपने व्यापारी प्रकोष्ट के नेता बृजेश गोयल को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट के अंतर्गत नई दिल्ली, मोती नगर, पटेल नगर, राजेंद्र नगर, करोल बाग, दिल्ली छावनी, मालवीय नगर, रामकृष्ण पुरम, ग्रैटर कैलाश और कस्तूरबा नगर विधानसभा सीट है। दसों पर ‘आप’ के विधायक हैं और उनमें से एक सीट मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की है। इस बार केजरीवाल भले ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा पहले कर चुके हों लेकिन उनका खुद का प्रचार अभी तक देखने को नहीं मिला है। इस सीट की एक विधानसभा सीट नई दिल्ली नगरपालिका (एनडीएमसी) इलाके में और एक सीट दिल्ली छावनी बोर्ड के इलाके में है। बाकी आठ सीटों की निगम सीटों पर भाजपा को बहुमत है। भाजपा के बड़े नेताओं की चुनावी सभाएं शुरू हो गई हैं।
बार-बार बदलाव के बावजूद यह सीट दिल्ली और देश की वीआइपी सीट ही रही है। 2008 में आखिरी परिसीमन होने से पहले नई दिल्ली लोकसभा सीट भले ही पांच विधानसभाओं की सीट थी, लेकिन उनमें मतदाता तीन लाख के करीब थे। परिसीमन के बाद दिल्ली की 70 विधानसभाओं को 2001 की जनगणना के हिसाब से करीब दो लाख की आबादी पर एक विधानसभा और बीस लाख की आबादी पर लोकसभा सीट बनाना तय किया गया। अभी करीब 16 लाख मतदाता इस लोकसभा सीट पर हैं। नए परिसीमन में पुराने करोल बाग सीट को खत्म करके उसकी तीन सीटें नई दिल्ली में, पुरानी दक्षिणी दिल्ली सीट की चार सीटें नई दिल्ली में और सदर की एक सीट मिलाकर पुरानी नई दिल्ली के बड़े हिस्से को एक करके नई दिल्ली विधानसभा सीट बनाई गई। अभी भी सबसे ज्यादा पंजाबी मूल के लोग इस सीट पर हैं। करीब 19 फीसद पंजाबी, 18 फीसद दलित, 9 फीसद वैश्य, 15 फीसद अन्य पिछड़ा वर्ग, चार फीसद गूर्जर, चार फीसद मुसलिम, चार फीसद सिख आदि इस सीट पर हैं। दिल्ली का भूगोल बदलने के हिसाब से करीब दस फीसद पूर्वांचल मूल के लोग हैं।
हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी देश के मुद्दे दिल्ली और खास करके नई दिल्ली सीट पर चुनाव प्रचार में उठ रहे हैं, लेकिन अभी भी चुनाव प्रचार का केंद्र सरकारी कर्मचारी और व्यवसायी हैं। अजय माकन के टिकट की विधिवत घोषणा तो नामांकन के आखरी दिनों में हुई लेकिन वे भी ‘आप’ के उम्मीदवार की तरह काफी दिनों से चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अजय माकन बताते हैं कि 2006 में सीलिंग शुरू होते ही उन्होंने बतौर शहरी विकास मंत्री तीन हजार सड़कों को मिश्रित भूमि घोषित करके व्यवसायिकों को सीलिंग से निजात दिलवाई, लेकिन मौजूदा सरकार ने दोबारा सीलिंग शुरू होने पर सीलिंग से निजात दिलाने के लिए कोई पहल नहीं की। इस सीट में आने वाले 35 गांव अब पूरी तरह से गांव नहीं रहे वे शहरीकृत गांव बन गए हैं। भवन उपनियमें में बदलाव करवाकर उन गांवों में व्यवसाय की छूट दिलवाई और भवन निर्माण (एफएआर) में काफी छूट दिलवाई, जबकि मौजूदा सांसद मीनाक्षी लेखी कहती हैं कि बहुशासन प्रणाली में कई बड़े काम दिल्ली सरकार के सहयोग न मिलने से रुके पड़े हैं। उन्होंने इलाके की साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान दिया। हर मंदिर में फूलों से खाद बनाने वाले संयंत्र लगवाए। अपने सांसद निधि से ज्यादा पैसे के काम करवाए। पूरे इलाके में 52 सार्वजनिक पुस्तकालय शुरू करवाए। लेखी ने चौकीदार मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर करके खासी चर्चा पाई।
कहा जा रहा था कि चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए गौतम गंभीर को इसी सीट से टिकट मिल रहा था लेकिन मुकदमे ने हालात बदल दिए। परिसीमन से पहले तो इस इलाके का मतदान औसत सबसे कम रहता था। सीट केवल संपन्न लोगों, वीआइपी और सरकारी कर्मचारियों की थी। अब इसका विस्तार पुरानी दक्षिणी दिल्ली से करोल बाग तक हो गया है। चुनाव प्रचार में तेजी आने के समय गर्मी भी तेज होती जा रही है। इस कारण ज्यादातर चुनाव प्रचार सवेरे शाम ही हो पाता है। इस सीट का चरित्र अखिल भारतीय होने के कारण ही मशहूर स्वाधीनता सेनानी सुचेता कृपलानी किसान मजदूर प्रजा पार्टी के टिकट पर 1952 में पहली सांसद बनीं। दूसरी बार वे कांग्रेस के टिकट पर 1957 में सांसद बनीं, लेकिन बीच में उनके सीट छोड़ने से हुए उपचुनाव में जनसंघ के अध्यक्ष बलराज मधोक सांसद बने। बाद में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।