लोकतंत्र में अगर किसी भी सरकार को एक बार फिर सत्ता पर काबिज होना है तो उसे अपना पूर्ण रिपोर्ट कार्ड जनता के बीच में रखना जरूरी है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने ‘हिसाब जरूरी है’ नाम से एक स्पेशल सीरीज की शुरुआत की। इस सीरीज की पहली किश्त में हमने आपको स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की सच्चाई बताई, मोदी सरकार की परफॉर्मेंस का विश्लेषण किया और आंकड़ों के जरिए हकीकत बताने की कोशिश रही।
हिसाब जरूरी है के दूसरे पार्ट में हम बात करने जा रहे हैं मोदी सरकार के एक और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की- नमामि गंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक काफी चर्चित बयान है- मां गंगा ने मुझे बुलाया है। अब वो बयान जरूर सियासत से प्रेरित था, लेकिन केंद्र की सरकार के लिए गंगा का स्वच्छ होना उतना ही ज्यादा जरूरी है। सरकार ने साल 2014 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी और उद्देश्य रखा कि 2021 तक गंगा को पूरी तरह साफ कर दिया जाएगा।
सरकार क्यों नहीं मानती नमामि गंगे को उपलब्धि?
अब सवाल उठता है क्या सही में मां गंगा को मोदी सरकार साफ कर पाई है? अब एक जवाब तो ये है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नमामि गंगे कोई मुद्दा ही नहीं है। ना केंद्र सरकार इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर दिखा रही है, ना विपक्ष केंद्र को घेरने का काम कर रहा है। ये उदासीनता ही बताने के लिए काफी है कि वर्तमान में नमामि गंगे प्रोजेक्ट उस कामयाबी तक नहीं पहुंच पाया जिसकी उम्मीद 10 साल पहले मोदी सरकार ने की थी। तमाम आंकड़े इस बात की तस्दीक भी करते हैं।
सीवेज प्लांट ही नहीं बने पूरे, गंगा हो रही प्रदूषित
अब यहां पर समझने वाली बात ये है कि गंगा को साफ करने के लिए सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर का सही तरह से बनना जरूरी है। इस वजह से काफी जोर-शोर से केंद्र सरकार ने 186 प्रोजेक्ट शुरू किए थे, लेकिन पिछले साल अप्रैल तक का आंकड़ा बताता है कि सिर्फ 105 सीवेज वाले प्रोजेक्ट ही पूरे हो पाए हैं। यहां भी सरकार ने जो सोचा था, उतना काम हो नहीं पाया है। असल में सरकार ने ऐसा तय किया था कि वो 186 प्रोजेक्ट के जरिए प्रतिदिन 4965.38 मिलियन लीटर सीवेज की क्षमता बनाई जाएगी, लेकिन वर्तमान में सिर्फ 1736.76 एमएलडी क्षमता ही उत्पन हो पाई है।
यूपी-बिहार ने किया प्रोजेक्ट का बंटा धार
एक आंकड़ा ये भी बताता है कि गंगा का स्वच्छ होना अभी ज्यादा मुश्किल इसलिए भी है क्योंकि उत्तर प्रदेश और बिहार से सबसे ज्यादा इंडस्ट्रियल वेस्ट गंगा में जा रहा है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा जरूर है कि वे 2025 कुंभ से पहले गंगा को स्वच्छ करवा देंगे, लेकिन वर्तमान स्थिति में वो लक्ष्य पूरा होना मुश्किल है।
हैरानी की बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी मां गंगा के हाल कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। पिछले साल सितंबर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की एक रिपोर्ट सामने आई थी। उस रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदेश में 31 जगहों से गंगा का सैपल लिया गया था, इसमें वाराणसी, गाजीपुर, सोनभद्र, प्रयागराज, बिजनौर तक शामिल थे। रिपोर्ट बताती है कि ज्यादातर जगहों पर गंगा की वाटर क्वालिटी सी और डी श्रेणी में चल रही है, यानी कि नहाने लायक पानी भी गंगा का नहीं चल रहा है। वाराणसी में तो पानी इतना ज्यादा प्रदूषित है कि ये डी कैटेगरी में जा चुका है।
बिहार में भी हालात कोई बहुत ज्यादा अच्छे नहीं चल रहे हैं। नाले का गंदा पानी गंगा में जा रहा है, इसे रोकने के लिए कागज पर एक प्लान जरूर तैयार है, लेकिन उसे ठीक तरह से अमलीजामा नहीं पहनाया गया है। असल में बिहार के दीघा और कंकड़बाग में पिछले दो साल सीवेज प्लांट लगाने की बात हो रही है, लेकिन जमीन अधिग्रहण में आ रही दिक्कतों की वजह से अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है। अब डेडलाइन दिसंबर 2024 की दी गई है जब दावा है कि बिहार में गंदे नाले का पानी गंगा में नहीं गिरेगा।
पिछले साल से बढ़ी रफ्तार, कब टारगेट होगा पूरा?
अब नमामि गंगे को अगर सफल बनाना है तो समय रहते सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का बनना जरूरी है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इस परियोजना की सक्सेस 80 फीसदी तक इसी एसटीपी पर निर्भर करती है। सरकार के पक्ष में सिर्फ ये बात जाती है कि एसटीपी बनाने की रफ्तार में थोड़ा सुधार देखने को मिला है। असल में 2014 से 2021 तक तो सिर्फ 811 एमएलडी वेस्ट ही ट्रीट किया जा रहा था, लेकिन 2022-23 की अगर बात करें तो 1455 एमएलडी वेस्ट ट्रीट किया जा चुका है।
अब सरकार ने जब नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी, इस पर 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की बात हुई, लेकिन एक आंकड़ा बताता है कि इन प्रिंसिपल कई प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए 37, 396 करोड़ रुपये अप्रूव हो चुके हैं, यानी कि खर्च पहले से ही ज्यादा चल रहा है। राज्यों को अभी तक 14 हजार करोड़ से ज्यादा फंड रिलीज भी कर दिए गए हैं। सरकार के पक्ष में अभी सिर्फ ये बात जाती है कि कुछ समय पहले गंगा के पानी में डॉलफिन दिखी थी, तर्क दिया गया है कि उनका दिखना ही बता रहा है कि प्रदूषण कुछ तो कम हुआ है। लेकिन एक्सपर्ट अभी भी इससे कुछ खास संतुष्ट नहीं हैं, उनका मानना है कि जमीन पर गंगा को साफ करने के लिए अभी कई और काम करने पड़ेंगे।
अब वो काम सरकार करती है या नहीं, ये तो समय बताएगा, लेकिन अभी के लिए नमामि गंगे परियोजना केंद्र के लिए कोई उपलब्धि नहीं है, बल्कि कवायद तो ये दिख रही है कि इसका जिक्र भी चुनाव में ना किया जाए।