मोतीपुर चीनी मिल के बाहर लगे दो बोर्ड यहां काम करने वाले लोगों का मजाक उड़ाते नजर आते हैं। एक बोर्ड पर लिखा है, ‘काम बंदी किसी के लिए हितकर नहीं।’ और दूसरे पर लिखा है, ‘यह प्लांट आपकी देखभाल करता है, आप इसकी भी करें।’ इस मिल में अब केवल कीड़े मकोड़े और सड़े-गले उपकरण ही बचे हैं। यहां काम करने वाले मजदूर सालों से अपनी बकाया तनख्वाह का इंतजार कर रहे हैं। यह मिल बिहार में औद्योगिक विकास और रोजगारों की कहानी कहती है।

115 एकड़ में फैली मोतीपुर शुगर मिल की शुरुआत 1933 में हुई थी। 1998 में इसे बिहार स्टेट शुगर कॉर्पोरेशन ने अपने अधिकार में ले लिया। 2011 में इस मिल को बंद कर दिया गया और और फिर पोटाश लिमिटेड को पट्टा कर दी गई। इस मामले को अदालत में चुनौती दी गई है। मजदूरों के सचिव राम प्रवेश राय का कहना है कि बहुत सारे तो ऐसे मजदूर हैं जो अपनी लड़ाई लड़ते-लड़ते मर गए लेकिन न्याय नहीं मिला। लोग इसी उम्मीद में रह गए कि मिल में फिर से काम शुरू होगा।

मोतीपुर शुगर मिल बिहार सरकार के रोजगारों को प्रोत्सहन और औद्योगिकीकरण में विफलता का एक नमूना है। जब बिहार बोर्ड ने मोतीपुर मिल को अपने अधिकार में लिया था तब बिहार देश में 30 प्रतिशत चीनी का उत्पादन करता था और यहां 28 चीनी मिलें थीं। विधानसभा के कार्यकाल के शुरुआत में बिहार में औद्योगिक सेक्टर ने 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी।

2017-18 में देशभर में चीनी उत्पादन करने के मामले में बिहार का योगदान 20 फीसदी ही रह गया। 2016-17 में बिहार की 3531 फैक्ट्रियों में से केवल 2900 फैक्ट्री ही चल रही थीं। औसतन एक फैक्ट्री में 40 लोगों को रोजगार मिलता था। अगर राष्ट्रीय औसत की बात करें तो यह दोगुना है। देश में औसतन एक फैक्ट्री में 77 लोगों को रोजगार मिलता है। बिहार में एक मजदूर की सालभर की औसत सैलरी 1.2 लाख रुपये है जो कि राष्ट्रीय औसत की आधी है।

मोतीपुर शुगर मिल बारुराज असेंबली सीट के अंतरगत आती है। यहां से जेडीयू के नंद कुमार राय मौजूदा विधायक हैं। वह 2015 में महागठबंधन के साथ आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस बार उन्हें जेडीयू से टिकट मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 28 अक्टूबर को यहां विशाल जनसभा को संबोधित करने वाले हैं। 3 नवंबर को बिहार में दूसरे चरण का मतदान होगा।

उसमान मोहम्मद कहते हैं कि यहां अब सियार और सांप के डर से लाठी लेकर आना पड़ता है। पूल में पानी भरा है और वहां जहरीले जीव और मच्छरों की भरमार है। नैरगेज रेल है लेकिन उसका लोहा लगभग चोरी हो गया है। वहीं मनमोहन भगत का भी कहना है कि वह इस मिल में सीजनल लेबर हुआ करते थे। उनका अभी 3 लाख रुपये कंपनी के पास बकाया है जिसका वह सालों से इंतजार कर रहे हैं। फैक्ट्री बंद होने के बाद आसपास के लोगों ने गन्ने की खेती करनी भी बंद कर दी। किसानों का कहना है कि अब वे धान उगाते हैं जिसमें फायदा होती ही नहीं है। राय का कहना है कि इस इलाके की पूरी अर्थव्यवस्था ही चरमरा गई। अब यहां लोग दुकानों पर भी बहुत कम ही सामान लेने के लिए जाते हैं।

भगत ने कहा कि नीतीश कुमार ने वादा किया था कि मुजफ्फरपुर की समृद्धि के लिए वह इस मिलि को शुरू करवा देंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर मिल नहीं शुरू हुई तो वह वोट मांगने नहीं आएँगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वह अपना वादा करके भूल गए। उन्होंने कहा कि विधायक नंद कुमार राय ने भी विधानसभा में मुद्दा उठाने के अलावा कुछ भी नहीं किया है। यादव समुदाय से ताल्लुख रखने वाले राय कहते हैं, ‘पहले मैंने नोटा दबाने का फैसला किया था लेकिन उससे क्या होगा। तेजस्वी फैक्ट्री को दोबारा खुलवाने की बात कर रहे हैं। आदमी आशा की ही तरफ ना जाएगा।’ उन्होंने आगे यह भी कहा, कोई कुछ नहीं करेगा। अब किसी में विश्वास ही नहीं रहा।