उन दोनों का मकसद एक है। मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला जहां मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह को हरा कर मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं, वहीं भाजपा का मकसद कांग्रेस को सत्ता से हटा कर राज्य में अपनी सरकार बनाना है। लेकिन दुश्मन का दुश्मन दोस्त होने वाली कहावत इन दोनों पर लागू नहीं हो रही है। शर्मिला ने पहले चरण के मतदान से पहले यह कह कर इस पूर्वोत्तर राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है कि भाजपा ने उनको पार्टी के टिकट पर मुख्यमंत्री के खिलाफ मैदान में उतरने के लिए 36 करोड़ रुपए देने की पेशकश की थी। भाजपा ने हालांकि फौरन इस आरोप का खंडन कर दिया है लेकिन लौह महिला की जुबान से निकलने की वजह से इस आरोप में कुछ तो सच्चाई होगी ही। कम से कम राज्य के वोटरों का तो यही मानना है। लिहाजा इस 36 करोड़ ने शर्मिला और भाजपा के रिश्तों के बीच 36 का आंकड़ा बना दिया है।

राज्य में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम के खिलाफ लगभग सोलह साल तक भूख हड़ताल करने वाली इरोम ने बीते साल अगस्त में भूख हड़ताल खत्म कर राजनीति में उतरने का फैसला किया था। उन्होंने उसी समय मुख्यमंत्री के खिलाफ मैदान में उतरने का एलान किया था। शर्मिला का कहना था कि उनका लक्ष्य मुख्यमंत्री बनना है ताकि राज्य से उक्त अधिनियम को खत्म किया जा सके। चुनावों के एलान से पहले इरोम के दिल्ली में भाजपा प्रमुख अमित शाह से मिलने की खबरें आईं थी। उस सनय कहा गया था कि असम के बाद पूर्वोत्तर के इस दूसरे राज्य पर लोकतांत्रिक तरीके से काबिज होने के लिए पार्टी इस लौह महिला को अपने खेमे में खींचना चाहती है। लेकिन उसके बाद बात आई-गई हो गई।
अब लौह महिला ने भाजपा की ओर से 36 करोड़ रुपए की कथित पेशकश का खुलासा कर स्थानीय राजनीति में धमाका कर दिया है। साढ़े तीन महीने से जारी आर्थिक नाकेबंदी की वजह से यहां विधानसभा चुनाव अभियान का रंग तो वैसे भी फीका पड़ा है। लेकिन अब इस खुलासे के बाद राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां अचानक तेज हो गई हैं। एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में शर्मिला ने कहा कि भाजपा ने उनसे कहा था कि चुनावों पर 36 करोड़ रुपए खर्च होंगे। अगर उनके पास इतनी रकम हो तो दिखाएं और अगर नहीं तो इसका जुगाड़ केंद्र कर देगा। शर्मिला का कहना है कि ऐसा करना उनके सिद्धांतों के खिलाफ था। इसलिए उन्होंने निर्दलीय के तौर पर ही मैदान में उतरने का फैसला किया।

ध्यान रहे कि शर्मिला ने पीपुल्स रीसर्जेंस एंड जस्टिस एलांयस (प्रजा) नामक नई पार्टी का गठन कर इसके बैनर तले 20 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। लेकिन चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिलने की वजह से उनका दर्जा निर्दलीय का ही है। वे खुद इबोबी सिंह की पारंपरिक सीट थाउबल से चुनाव लड़ रही हैं।दूसरी ओर, भाजपा ने शर्मिला के आरोपों को निराधार करार दिया है। भाजपा महासचिव राम माधव का कहना था कि 36 करोड़ तो राज्य में भाजपा के पूरे चुनाव अभियान पर भी नहीं खर्च होंगे। ऐसे में महज एक उम्मीदवार को इतनी रकम देने की बात हास्यास्पद है।

इन दोनों के झगड़े से सत्तारुढ़ कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ एक हथियार मिल गया है। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता जयकिशन सिंह कहते हैं कि पहले भी ऐसे कई आरोप सामने आ चुके हैं, जब टिकटों की मुंहमांगी कीमत नहीं चुका पाने की वजह से संभावित उम्मीदवारों को टिकट से हाथ धोना पड़ा।राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा और इरोम शर्मिला के बीच जारी विवाद का चुनावों पर क्या असर होगा, फिलहाल इसका अनुमान लगाना संभव नहीं है। लेकिन इससे राज्य की सुस्त चुनावी राजनीति में एक हलचल तो पैदा हो ही गई है।

 

शर्मिला का सिद्धांत, भाजपा का प्रस्ताव
एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में शर्मिला ने कहा कि भाजपा ने उनसे कहा था कि चुनावों पर 36 करोड़ रुपए खर्च होंगे। अगर उनके पास इतनी रकम हो तो दिखाएं और अगर नहीं तो इसका जुगाड़ केंद्र कर देगा। शर्मिला का कहना है कि ऐसा करना उनके सिद्धांतों के खिलाफ था। इसलिए उन्होंने निर्दलीय के तौर पर ही मैदान में उतरने का फैसला किया।
भाजपा की सफाई.
36 करोड़ तो राज्य में भाजपा के पूरे चुनाव अभियान पर भी नहीं खर्च होंगे। ऐसे में महज एक उम्मीदवार को इतनी रकम देने की बात हास्यास्पद है। -राम माधव, भाजपा महासचिव