संसद के विशेष सत्र में महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 फीसद सीटों पर आरक्षण देने वाला विधयेक पास हुआ। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक अब अधिनियम बन गया है लेकिन जमीनी स्तर पर लागू होने में इसमें कई साल लगेंगे। इस बीच पांच राज्यों के विधानसभा की घोषणा के बाद माना जा रहा था कि बेशक कानूनी रूप से इस अधिनियम को जमीनी स्तर पर लागू होने में समय लगेगा लेकिन राजनीतिक दल टिकट बंटवारे में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ाएंगे क्योंकि इसके लिए किसी अधिनियम की आवश्यकता नहीं है। मध्य प्रदेश और केंद्र में सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) महिलाओं को टिकट देने में 33 फीसद के आंकड़े से बहुत दूर है।
2018 में भाजपा ने केवल 24 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने 230 सीटों में से अब तक 228 उम्मीदवारों की घोषणा की है जिसमें से केवल 28 महिलाओं को ही टिकट दिया है यानी करीब 12 फीसद। अभी विदिशा और गुना विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की गई है। मान लीजिए अगर इन दोनों सीटों पर भी भाजपा महिला उम्मीदवारों को मौका देती है तो भी यह आंकड़ा 13 फीसद तक ही पहुंचेगा जो 33 फीसद से बहुत कम है। वैसे 230 का 33 फीसद 76 होता है यानी बीजेपी के 33 फीसदी के आंकड़े से अभी तक 48 उम्मीदवार पीछे है। 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मध्य प्रदेश में केवल 24 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था।
बीजेपी की तरह कांग्रेस ने भी महिलाओं को उतारने में कंजूसी दिखाई
2018 के मुकाबले 2023 विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने चार ज्यादा महिला उम्मीदवारों मैदान में उतारा है। 2018 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर 11 महिला उम्मीदवार चुनकर विधानसभा पहुंची थीं। हालांकि, कांग्रेस ने अब तक 229 उम्मीदवारों की घोषणा की है जिसमें से केवल 30 महिलाओं को ही टिकट दिया है और यह आंकड़ा 13 फीसद है।
महिलाओं का चुनावों में मतदान के प्रति रुझान लगातार बढ़ रहा है
1962 के विधानसभा चुनाव आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि उस साल सिर्फ 29.07 फीसद महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। 1967 में यह बढ़कर 41.8 फीसद हो गया और 1972 में 44.37 फीसद फीसद महिलाओं ने अपने मत का इस्तेमाल किया। अगले दो विधानसभा चुनावों में कम महिलाओं ने मतदान किया, 1977 में 43.22 फीसद और 1980 में 39.39 फीसद रहा।
1985 में मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या फिर से बढ़ गई और उस साल 41.4 फीसद महिला मतदाताओं ने मतदान किया। तब से इसमें लगातार बढ़ोतरी हुई है। राज्य के विभाजन और छत्तीसगढ़ के गठन से दो साल पहले, 1998 में महिला मतदाताओं के मतदान का आंकड़ा 50 फीसद के आंकड़े को पार कर गया था, जिसमें 53.53 फीसद मतदान हुआ था।
2003 के विधानसभा चुनाव में 62.14 फीसद महिलाओं ने मतदान किया। इसी तरह 2008 के चुनाव में 65.91 फीसद, 2013 में 70.09 फीसद और 2018 के विधानसभा चुनाव में रिकार्ड 74.01 फीसद महिलाओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया।
महिला विधायकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं
महिला मतदाताओं में वृद्धि से महिला विधायकों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है। महिला विधायकों की संख्या कम ही बनी हुई है, 1972 के विधानसभा चुनावों में शून्य से 2013 में 30 (सदन का 13.04 फीसद) हो गई। 2018 में महिला विधायकों का अनुपात घटकर 9.13 फीसद (21) हो गया।