मध्य प्रदेश की राजनीति में दो चेहरों का जिक्र हर बार किया जाता है। एक है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और दूसरे बीजेपी के राज्य में बड़ा चेहरा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। शिवराज ने जनता के सामने अपनी एक ऐसी छवि बना रखी है कि हर कोई उन्हें मामा कहकर संबोधित करता है। उनकी सियासत इतनी मजबूत भी रही है कि वे लगातार जीतते आ रहे हैं।

2003 का चुनाव, बीजेपी को फायदा, शिवराज को झटका

अब अगर शिवराज जीतते आ रहे हैं तो इस डिपार्टमेंट में दिग्विजय सिंह भी कम नहीं। 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश की कमान संभालने वाले दिग्विजय सिंह सीएम रहते हुए अपने आखिरी विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गए थे। कहना चाहिए उनकी पार्टी का प्रदर्शन सबसे ज्यादा लचर रहा था। 10 साल तक सीएम की कुर्सी संभालने के बाद दिग्विजय सिंह और उनकी सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि वो बीजेपी की आंधी को नहीं रोक पाई। उस चुनाव में बीजेपी ने 230 सीटों पर चुनाव लड़ा और 173 सीटें जीतीं।

दिग्विजय के गढ़ को दी थी चुनौती

कांग्रेस ने 38, सपा ने 7 और बसपा ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की। अब इतना सबकुछ हुआ, बीजेपी के लिए सबकुछ फायदे का सौदा रहा, लेकिन उस चुनाव में एक बड़ा उलटफेर भी हुआ। जिन शिवराज सिंह चौहान को आज की जनता चुनावी मौसम में अजय मानकर चलती है, 2003 वाले चुनाव में उमा भारती ने उन्हें राघौगढ़ से सीट से प्रत्याशी बनवाया था। यहां ये समझना जरूरी है कि उस समय तक शिवराज सिंह चौहान कोई बहुत बड़े नेता नहीं बन चुके थे। एमपी की सियासत में तब उन्हें एक नए खिलाड़ी के रूप में देखा जाता था।

कितनों वोटों से हुई थी हार, क्या कारण?

अब राघौगढ़ दिग्विजय सिंह का गढ़ माना जाता था, वहां से उनका चुनाव जीतना आसान रहता था। लेकिन सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान पर अपना भरोसा जताया और उन्हें वहां से अपना उम्मीदवार बना दिया। उस चुनाव में जो हुआ वो शिवराज सिंह चौहान के लिए किसी बुरे सपने जैसा रहा। जिस कांग्रेस का 2003 में पूरे राज्य में डिब्बा गुल दिखा, उसने राघौगढ़ सीट पर बड़ी जीत दर्ज की। ये कहना गलत नहीं होगा कि वो दिग्विजय सिंह की एक बड़ी सियासी जीत थी।

उस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान, दिग्विजय सिंह से पूरे 21 हजार 164 वोटों से हार गए थे। उन्हें महज 37 हजार 069 वोट मिले थे, वहीं दिग्विजय सिंह 58 हजार 233 वोट हासिल करने में कामयाब हो गए थे। यानी कि वो एक लौता ऐसा सियासी पल था जब ‘दिग्गी राजा’ ने जनता के मामा शिवराज सिंह चौहान को सबसे बड़ी चुनावी पटखनी दी थी।