मध्य प्रदेश की राजनीति में नेताओं की भूमिका होती है, पार्टियों का बोलबाला रहता है और जनता का जनादेश हर पांच साल में सरकार बनाने का काम करता है। लेकिन इन सभी भूमिकाओं के बीच मध्य प्रदेश की धरती पर ‘बाबा’ पॉलिटिक्स का एक अपना खेल चलता रहता है। सरकार किसी की भी हो, कथा वाचकों और बाबाओं की सक्रियता ना थमती है और ना ही इनके बिना किसी भी नेता की सियासत पूरी मानी जाती है।

मध्य प्रदेश एक हिंदू बाहुल्य राज्य है जहां पर धर्म की राजनीति हर बार जोर पकड़ती है। उसी धर्म के साथ इन बाबाओं का मजबूत नाता रहा है। सियासत में वैसे भी माहौल का बनना ज्यादा जरूरी माना जाता है, उसी माहौल को बनाने में ये धर्म गुरू या बाबा अपनी भूमिका अदा करते हैं। चुनावी मौसम में किसे कितना इन बाबाओं से फायदा होता है, इसे लेकर एक अलग डिबेट चलती रहती है, लेकिन देखा गया है कि हर पार्टी और हर नेता उन कथा वाचकों के पास भी जाती है, उनके कार्यक्रम भी करवाती है और धार्मिक ध्रुवीकरण का एक प्रयास हर बार दिख जाता है।

वर्तमान में जब फिर एमपी में चुनाव है, प्रचार जोरों पर चल रहा है, कई बाबा जमीन पर सक्रिय हो चुके हैं। इस लिस्ट में बागेश्वर धाम यानी पंडित धीरेंद्र शास्त्री, प्रदीप मिश्रा, पंडोखर सरकार, जया किशोरी जैसे कथा वाचकों का नाम शामिल है। बड़ी बात ये है कि ये बाबा किसी एक पार्टी के साथ नहीं जुड़े हुए हैं, बल्कि सहूलियत के हिसाब उनकी राजनीति बदलती रहती है।

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि धीरेंद्र शास्त्री ने छिंदवाड़ा में कमलनाथ के कहने पर अपनी कथा का आयोजन किया था। वहीं उससे पहले उन्हीं धीरेंद्र शास्त्री के दरबार में सीएम शिवराज सिंह चौहान से लेकर दूसरे बीजेपी नेताओं ने भी आशीर्वाद लेने का काम किया है। ये बताने के लिए काफी है कि बात जब बाबाओं की आ रही है, हर पार्टी अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है।

मध्य प्रदेश की राजनीति में वैसे भी कांग्रेस इस समय सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति पर पूरी तरह कायम चल रही है। वो किसी भी कीमत पर खुद को हिंदू विरोधी या मुस्लिम टुष्टीकरण वाली पार्टी के रूप में नहीं दिखाना चाहती है। इसी वजह से सिर्फ बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस भी इन्हीं सब बाबाओं के लगातार कार्यक्रम करवा रही है। कमलनाथ के अलावा महू में कांग्रेस के जीतू ठाकुर ने भी जया किशोरी को एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया था। ऐसे में इस डिपार्टमेंट में बीजेपी अकेले रेस में दौड़ती नहीं दिख रही है, कांग्रेस भी उसे पीछे छोड़ने का दम दिखा रही है।

ये नहीं भूलना चाहिए कि मध्य प्रदेश के ही पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह इन बाबाओं में बहुत मानते थे। जब तक वे सीएम की कुर्सी पर विराजमान रहे, स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रति उनकी आस्ता जगजाहिर रही। इसी तरह बीजेपी ने भी हिंदू वोटरों को एकमुश्त करने के लिए उमा भारती पर साल 2003 में बड़ा दांव चला था और आज वे भी राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

जानकार बताते हैं कि एमपी में बाबाओं के पीछे नेताओं के भागने के अपने मजबूत कारण हैं। मालवा, नीमच. चंबल कुछ ऐसे इलाके हैं जहां पर बाबाओं का एक वोट भी दिशा-निर्देश बदलने लगता है। अकेले मालवा-नीमच में ही 66 सीटें निकलती हैं, वहीं चंबल और बुलेंलखंड में 30 सीटें। अब इस तरह पर 130 सीटों पर मुकाबला काफी कड़ा रहने वाला है। कह सकते हैं कि इन सीटों पर बाबाओं का आना, कार्यक्रम करना मायने रखता है। अब इस बार किस तरह ये ये बाबा अपनी भूमिका अदा करते हैं, इस पर सभी की नजर रहने वाली है।