लोकसभा चुनाव में इस बार पश्चिम बंगाल की धरती से सियासत का रुख तय होने वाला है। जब से राज्य में बीजेपी का उत्थान हुआ है, बंगाल की सियासत में भी बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। एक तरफ लेफ्ट कमजोर हुआ है तो बीजेपी उतनी ही मजबूत होती दिखी है। स्थिति ये बन चुकी है कि अब अगर सत्ता में टीएमसी है तो उसकी मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी बन चुकी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के लिहाज से पश्चिम बंगाल की सारी जानकारी रखना जरूरी हो जाता है।

पश्चिम बंगाल से लोकसभा की 42 सीटें निकलती हैं। यहां पर तीन मुख्य पार्टियां हैं- टीएमसी, बीजेपी और CPIM। बंगाल को ग्रेटर कोलकाता, उत्तर बंगाल, दक्षिण पूर्व बंगाल, दक्षिण पश्चिम बंगाल हिस्सों में बांटा गया है। ग्रेटर कोलकाता में टीएमसी का दबदबा देखने को मिलता है, उत्तर बंगाल की बात करें तो ये क्षेत्र के लिहाज से राज्य का तीसरा सबसे बड़ा है और यहां पर बीजेपी की टीएमसी के ऊपर बढ़त बताई जाती है। दक्षिण पूर्व बंगाल भी राज्य का एक अहम इलाका है और क्षेत्र के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा है। यहां से कोलकाता, हावड़ा, हुगली, नादिया, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना जैसे इलाके निकलते हैं।

इस इलाके में भी वर्तमान में ममता बनर्जी की पार्टी आगे दिखाई देती है, लेकिन कई सीटों पर बीजेपी ने भी खुद को मजबूत कर लिया है। यहां पर लेफ्ट काफी कमजोर हो चुकी है। दक्षिण पश्चिम बंगाल क्षेत्र सबसे बड़ा इलाका है और यहां से विधानसभा की 119 सीटें निकलती हैं। इस क्षेत्र में 2016 तक तक तो टीएमसी का एकतरफा दबाव था, लेकिन बीजेपी की एंट्री के बाद से मुकाबला कुछ कड़ा हो गया है।

पश्चिम बंगाल की जातियां और धर्म

मुसलमान– पश्चिम बंगाल में 30 फीसदी के करीब मुसलमान हैं। 2011 के जनगणना के मुताबिक ये आंकड़ा पहले 27 फीसदी के करीब था, लेकिन अब ये 30 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। बांग्लादेश की सीमाओं से जो भी जिले लगे हुए हैं, वहां तो मुस्लिम आबादी काफी निर्णायक है। मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर कुछ ऐसे इलाके हैं जहां पर मुस्लिम ही हार-जीत तय कर रहे हैं।

आदिवासी- पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति का भी महत्व है। दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दक्षिण दिनाजपुर, पश्चिम मिदनापुर कुछ ऐसे इलाके हैं जहां पर आदिवासी समाज निर्णायक भूमिका निभाता है। बीजेपी की सबसे ज्यादा इन्हीं सीटों पर नजर है और उसे पिछली बार इनका समर्थन भी मिला है।

मतुआ- बांग्लादेश से शरणार्थी बनकर आए मतुआ समाज के लोग भी बंगाल की सियासत में अपनी अहमियत रखते हैं। 17 फीसदी के करीब उनकी आबादी है और बीजेपी सीएए कानून के जरिए उन्हें अपने पाले में करना चाहती है। जानकार मानते हैं कि ममता बनर्जी के लिए ये समुदाय चिंता का विषय बन सकता है।

हिंदू- बंगाल में 67 फीसदी के करीब हिंदू वोटर है, इस समाज की वजह से ही यहां की धरती ध्रुवीकरण के लिए पूरी तरह मुफीद साबित होती है। अगर कुछ जगहों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं तो कई ऐसे इलाके भी हैं जहां हिंदू एकमुश्त होकर वोट कर देता है।

पश्चिम बंगाल के बड़े चेहरे