18 जुलाई 2023, भारत में विपक्ष के लिए ये तारीख मायने रखती है। मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए इसी दिन सारा विपक्षी कुनबा एकजुट हुआ था और नाम दिया था INDIA। इस इंडिया का मतलब था इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इनकलसिव अलायंस। माना गया एक तीर से विपक्ष ने दो निशाने साधे- एकजुट होकर वोटों के बंटवारे को रोकने की कवायद की, वहीं दूसरी तरफ इंडिया नाम रख बीजेपी के राष्ट्रवाद का काउंटर भी खोजा।

इंडिया के बनने और बिगड़ने की कहानी

लेकिन उस 18 जुलाई 2023 वाली तारीख के बाद से सबकुछ बदल चुका है। पटना, बेंगलुरू, मुंबई और दिल्ली में इन सभी दलों ने कई बैठकें कीं। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाने पर भी सहमति बनी, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर कुछ भी फाइनल नहीं हो पाया। पिछले साल 23 दिसंबर को वो कसर भी दूर हुई जब एक कमेटी का गठन कर उसे सीट शेयरिंग को सुपरवाइज करने का जिम्मा सौंप दिया गया।

अब 23 तारीख से लेकर अब तक 50 दिन के करीब होने को हैं, लेकिन खुद को गठबंधन बताने वाला ये इंडिया बिखर चुका है। ये एक ऐसा गठबंधन साबित हो रहा है जहां कोई किसी के साथ बंधने को तैयार ही नहीं दिख रहा। बात अगर एक- दो राज्यों तक सीमित रहती, समझा जा सकता था, लेकिन अभी तो जहां नजर जा रही है, वहां से ही इंडिया गठबंधन को झटका लग रहा है।

बिहार में नीतीश का खेला

बात सबसे पहले बिहार की करनी चाहिए जहां पर नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारी है। कसमें तो खाई थीं कि बीजेपी के साथ कभी नहीं जाएंगे, लेकिन सियासत ऐसी चीज है कि उसने कसमों की अहमियत भी अब खत्म कर दी है। वर्तमान में नीतीश फिर एनडीए के साथ चले गए हैं। यानी कि बिहार में विपक्ष में आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट और कुछ अन्य बच गए हैं। दूसरी तरफ एनडीए के पास बीजेपी, जेडीयू, चिराग की एलजेपी, मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा साथ खड़े हैं।

बंगाल में ममता का एकला चलो मंत्र

बिहार में ज्यादा बड़ा झटका ये इसलिए भी है क्योंकि इस इंडिया गठबंधन के सूत्रधार तो नीतीश कुमार ही थे, उनकी मेहनत ने ही सभी को साथ लाने का काम किया था। ऐसे में जब वे ही अलग हो चले हैं, इंडिया की विश्वनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। बिहार से ही सटे अगर पश्चिम बंगाल में जाया जाए तो वहां तो ममता बनर्जी पूरी तरह एकला चलो वाली नीति पर चलती दिख रही हैं। कहां पहले इस राज्य में भी टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन होने वाला था। लेकिन सीटों को लेकर कोई सहमति ही नहीं बनी और इस वजह से अब टीएमसी सभी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही है।

ओडिशा-आंध्र में गायब इंडिया

ओडिशा में कांग्रेस का किसी के साथ कोई गठबंधन नहीं दिख रहा है, मुकाबला सीधे-सीधे बीजेपी और बीजेडी के बीच बना हुआ है, ऐसे में यहां तो इंडिया गठबंधन ही आउट चल रहा है। आंध्र प्रदेश की बात करें तो यहां पर कोई गठबंधन ही विपक्षी इंडिया द्वारा नहीं खड़ा किया गया है। रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस अकेले जा रही है, चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी बीजेपी से हाथ मिलाने के करीब है और कांग्रेस की स्थिति काफी लचर रही है। बड़ी बात ये है कि इस राज्य से लोकसभा की 25 सीटें निकलती हैं।

यूपी में जयंत से दूरी, कांग्रेस अखिलेश की मजबूरी

एक और बड़े राज्य की बात करें तो उत्तर प्रदेश में भी इंडिया गठबंधन का सफाया हो गया है। इसका कारण ये है कि अखिलेश यादव और कांग्रेस के बीच में सीट शेयरिंग को लेकर कुछ भी फाइनल नहीं हो पाया है। सपा प्रमुख अपनी तरफ से जरूर कांग्रेस के लिए 11 सीटों का ऐलान कर दिया है, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी 20 सीटों पर अडिग है। वहीं दूसरी तरफ जयंत चौधरी की सपा से दूरियां बढ़ गई हैं, माना जा रहा है कि किसी भी दिन वे बीजेपी के साथ डील पक्की कर सकते हैं। यानी कि कांग्रेस असमंजस में, आरएलडी छोड़ने की कगार पर और सपा खड़ी अकेली। कुछ छोटे दल जरूर और हैं, लेकिन मुख्य पार्टियां ही अलग राह पकड़ती दिख रही हैं। वहीं मायावती का अकेले जाना भी समीकरण बदल गया है। 80 सीटों वाले राज्य में विपक्ष का ऐसा हाल बीजेपी को बड़ी बढ़त दिलवा सकता है।

पंजाब में मान के मन ने बिगाड़ा गेम

पंजाब में तो सीएम भगवंत मान ने पहले ही अपनी तरफ से ऐलान कर दिया है कि आम आदमी पार्टी 13 की 13 सीटें जीतने वाली है। यहां भी पहले गठबंधन था, लेकिन कांग्रेस, आप के ही साथ में थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर ही इतनी दरारें आ गईं कि अलग होना पक्का माना जा रहा है। वैसे पंजाब इंडिया गठबंधन के लिए उन राज्यों में शामिल था जहां पर क्लीन स्वीप किया जा सकता था क्योंकि बीजेपी का यहां पर ज्यादा जनाधार नहीं। लेकिन वर्तमान स्थिति में इंडिया भी इस राज्य में बिखर गया है।

गुजरात में नहीं दिख रही गुंजाइश, हरियाणा भी फंसा

26 सीटों वाले गुजरात में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस से कुछ सीटों की उम्मीद लगाए बैठी थी, लेकिन अभी तक कोई निर्णय वहां भी नहीं हो पाया है। इंडिया गठबंधन के दूसरे साथियों के लिए तो वैसे भी वहां पर ज्यादा गुंजाइश की स्थिति ही नहीं चल रही है। ऐसे में ये राज्य भी हाथ से अभी के लिए जाता दिख रहा है। हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अपनी राहें अलग कर ली हैं। भूपेंद्र हुड्डा तो साफ कर चुके हैं कि कांग्रेस सभी 10 सीटों पर अकेले लड़ने में सक्षम है। ऐसे में यहां भी गठबंधन बनता दिख नहीं रहा है।

400 पार वाली बीजेपी थ्योरी

अब इस बिखरते विपक्ष के बीच पीएम मोदी के 400 पार वाली थ्योरी को समझने की कोशिश करें तो पता चलता है कि विपक्ष का जो वोट बंट सकता है, उसे बीजेपी अपने फायदे के रूप में देख रही है। यूपी से लेकर बंगाल तक, कई राज्यों में एक सीट एक प्रत्याशी वाला रूल इंडिया गठबंधन के लिए टूट रहा है, ऐसे में एकजुटता वाले सारे दांवे खोखले साबित हो रहे हैं और इसी वजह से बीजेपी का कॉन्फिडेंस इतना हाई चल रहा है।