Lok Sabha Election 2019: भाजपा ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव चुनाव के दौरान प्रदेश की 74 सीटों पर जीत का लक्ष्य निर्धारित किया है। भाजपा द्वारा टिकट बंटवारे को देख ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें जातीय समीकरण का खास ध्यान रखा गया है। राज्य की कुल 80 लोकसभा सीटों के लिए पार्टी ने अभी तक 61 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है। इसमें सबसे ज्यादा ब्राह्मणों को तवज्जो दी गई है। इसके बाद पिछड़े समुदाय और फिर दलितों को मैदान में उतारा गया है। पार्टी नेताओं ने बताया कि 15 सीट ब्राह्मणों के खाते में गई है। 14 पिछड़े समुदाय और 13 दलितों को दिया गया है। 10 सीटों पर क्षत्रिय समुदाय को उम्मीदवार बनाया गया है। 4 सीटों पर जाट और 2 पर गुर्जर को प्रत्याशी बनाया गया है। वहीं, एक सीट वैश्य, एक पारसी और एक भूमिहार जाति को दी गई है। हालांकि, पार्टी का कहना है कि सीट बंटवारे में जाति को आधार नहीं बनाया गया है।
पीटीआई से बात करते हुए भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमारी पार्टी जाति की राजनीति में विश्वास नहीं करती है। टिकट बंटवारा जीतने वाले उम्मीदवारों और स्थानीय समीकरण का ध्यान रखते हुए दिया गया है। टिकट देने से पहले सभी बातों को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचाया गया।” वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशलेषक हेमंत तिवारी कहते हैं, “यदि आप भाजपा की लिस्ट को देखते हैं तो यह पता चलेगा कि पार्टी ने टिकट बंटवारे में कम से कम रिस्क लिया है। जिस सीट से वर्तमान सांसदों का टिकट काटा गया है, वहां नए उम्मीदवार उसी जाति के उतारे गए हैं। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को लागू किया है। इस चुनाव में इसका मुख्य जोर गैर-यादव ओबीसी, गैर-जाटव एससी और ऊंची जातियों खासकर ब्राह्मणों और क्षत्रियों पर है। ऐसा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वजह से है।”
नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी एलायंस (NDA) ने पिछले 2014 के चुनाव में राज्य की 73 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसमें 71 सीटों पर भाजपा और 2 सीटों पर अपना दल के उम्मीदवार विजयी हुए थे। भाजपा इस बार भी अपना प्रदर्शन दोहराना चाहती है और इसके नेताओं को 74 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य दिया गया है। राजनीतिक विशलेषक का मानना है कि चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की नजर मुस्लिम, ओबीसी और एससी वोट है। इस बार रालोद बसपा और सपा के साथ गठबंधन में शामिल होकर लोकसभा चुनाव लड़ रही है।
