Election Results 2019: लोकसभा चुनाव में पूरे देश में एनडीए ने सफलता का परचम लहराया। खासकर पश्चिम बंगाल में भगवा पार्टी की सीटें 2 से बढ़कर 18 पहुंच गई। वहीं, राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन पिछली बार के मुकाबले काफी निराशाजनक रहा। टीएमसी ने पिछले चुनाव में 34 सीटें जीती थी। वहीं, इस बार उसकी सीटें महज 22 पर सिमट गई। वहीं, वोट के प्रतिशत में भी भाजपा और टीएमसी के बीच महज 3 प्रतिशत का अंतर रह गया है। पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद टीएमसी प्रमुख और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को बैठक की और अपने इस्तीफे की पेशकश की।
पार्टी की बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए ममता बनर्जी ने कहा, “केंद्रीय बलों ने हमारे खिलाफ काम किया। राज्य में आपातकाल जैसी स्थिति पैदा कर दी गई। लोगों को हिंदू-मुस्लिम में बांट दिया और वोट भी बंट गए। हमने इस बात की शिकायत चुनाव आयोग से की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैंने पार्टी की बैठक की शुरूआत में ही कि अब मैं अपने पद पर बने नहीं रहना चाहती हूं। मैंने अपना पद छोड़ने की पेशकश की, लेकिन पार्टी ने इसे ठुकरा दिया। हो सकता है कि मैं अपने पद पर बनी रहूं।”
तृणमूल कांग्रेस को स्तब्ध करने वाले प्रदर्शन के पीछे मोदी लहर और गत वर्ष खून-खराबे के साथ हुए पंचायत चुनावों के बाद टीएमसी द्वारा अल्पसंख्यकों का कथित तौर पर तुष्टीकरण मतदाताओं के ध्रुवीकरण की वजह माना जा रहा है। भगवा पार्टी का जानाधार अचानक बढ़ने से हैरान तृणमूल कांग्रेस खेमा बंट गया है। स्थानीय नेताओं ने शीर्ष पार्टी पदों पर काबिज लोगों की ‘‘दूरर्दिशता की कमी’’ और उनके ‘‘अहंकार भरे रवैये’’ को खराब चुनावी प्रदर्शन के पीछे की मुख्य वजह बताया। हालांकि टीएससी का वोट प्रतिशत इस बार बढ़ा है। उसे 2014 के 39 प्रतिशत के मुकाबले इस बार 43 प्रतिशत वोट मिले हैं लेकिन वह दक्षिण बंगाल के आदिवासी बहुल जंगलमहल और उत्तर में चाय बागान वाले क्षेत्रों में अपना गढ़ बचाए रखने में नाकाम रही।
पार्टी के एक नेता ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, ‘‘हम लहर को पहचानने में नाकाम रहे। हम वाकई नहीं जानते कि आगे क्या होगा। पार्टी को एकजुट रखना वास्तव में कठिन होगा।’’ टीएमसी ने जिन 22 सीटों पर जीत दर्ज की उनमें अंतिम चरण की मतगणना तक कांटे का मुकाबला देखा गया क्योंकि मिनटों में उम्मीदवारों की बढ़त बदल रही थी। टीएमसी सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक आकलन में पता चला कि ग्रामीण इलाकों में पार्टी के खिलाफ नाराजगी थी। इसके पीछे कई वजह थी जिनमें अहम पंचायत चुनावों के दौरान हुई हिंसा रही जिसके कारण कई लोग अपने वोट नहीं डाल पाए। अन्य वजहों में स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार और ‘‘तुष्टीकरण’’ को लेकर आक्रोश के बीच ध्रुवीकरण हुआ। पार्टी के लोगों ने बताया कि दरअसल टीएमसी, भाजपा के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे का जवाब देने में नाकाम रही जिससे राज्य में ध्रुवीकरण हुआ जहां मुस्लिमों की 27 प्रतिशत आबादी है।
विश्लेषकों के अनुसार, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कार से उतरने और ‘‘जय श्री राम’’ का नारा लगा रहे कुछ युवकों को धमकाने वाले वायरल वीडियो से ठीक संदेश नहीं गया और भाजपा ने चुनाव के ध्रुवीकरण के लिए इस घटना को भुनाया। उन्होंने बताया कि पार्टी रैंक में कलह भी हार की वजह बनी। टीएमसी के एक वर्ग के कैडर ने अपनी पार्टी के नेताओं को सबक सिखाने के लिए भाजपा के लिए मतदान किया। भाजपा की शानदार जीत से तृणमूल कांग्रेस की भौंहे तन गई है लेकिन भाजपा के चुनावी चिन्ह कमल को खिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले मुकुल रॉय के अनुसार, यह जीत अनुमान के अनुरूप थी। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में दो साल का वक्त है जबकि नगर निगम चुनाव अगले साल हैं। ऐसे में उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखना है। (भाषा इनपुट के साथ)
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